सिरमौर:होली रंगों का त्योहार है. होली पर रंग गुलाल ना उड़े तो इसका मजा ही क्या है. बाजार में होली के लिए तरह-तरह के रंग उपलब्ध हैं. बाजार में उपलब्ध ज्यादातर रंगों में कैमिकल मौजूद होते हैं. ये त्वचा के साथ-साथ शरीर को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. साथ ही दिल के मरीजों, अस्थमा के रोगियों के लिए ये रंग काफी नुकसानदायक होते हैं.
समय के साथ बाजार में प्राकृतिक तरीके से बनाए गए हर्बल रंग भी मिलने लगे हैं, लेकिन इनकी सबसे बड़ी समस्या है कि ये आसानी से उतरते नहीं हैं. इन्हें कपड़ों और शरीर से उतारने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन हिमाचल के सिरमौर जिला में स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं ईको फ्रैंडली रंग तैयार कर रही है. इन रंगों को अनाज के साथ फल और फूलों से बनाया जा रहा है.
सिरमौर के 30 स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं इको फ्रैंडली रंगों को तैयार कर रही हैं. इस पहल के दो फायदे सामने आए हैं. एक तो महिलाएं को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिल रही है तो दूसरा होली में रंगों से होने वाला खेल भी सुरक्षित हो गया है.
स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं ने बनाए हर्बल रंग
होली के त्योहार पर अक्सर लोग सिंथेटिक रंगों का इस्तेमाल करते हैं जो सेहत के लिए हानिकारक होते हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए सिरमौर के डीसी आरके परुथी ने एक पहल की और उनकी मेहनत रंग लाई. डीसी सिरमौर ने बताया कि विभिन्न विकास खंडों की करीब 30 स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं को प्राकृतिक तरीके से रंग तैयार करने का प्रशिक्षण दिया गया. रंगों को तैयार करने के लिए आरारोट, मक्की, मैदे इत्यादि के आटे का इस्तेमाल किया गया है. आटे में रंग लाने के लिए पालक, चुकंदर, गुलाब, गेंदे के फूल, गुलाब जल सहित फूड कलर डाले गए हैं. इन रंगों की कीमत 20 से लेकर 50 रुपए तक की रखी गई है.