नाहन: सिरमौर जिला के मुख्यालय नाहन व हरियाणा के सीमांत क्षेत्रों में नवरात्रों के दौरान घरों में सांझी माता की भी पूजा-अर्चना हो रही है. यहां आज भी बहुत से लोग प्राचीन परंपराओं को कायम रखे हुए है. संबंधित क्षेत्रों में नवरात्रों की शुरुआत सांझी माता की पूजा के साथ की जाती है. ईटीवी भारत अपने पाठकों को आज इसी प्राचीन परंपरा से रूबरू करवा रहा है.
दरअसल, सांझी माता को धन वैभव दात्री माना जाता है. सांझी माता की पूजा के लिए माता का स्वरूप दीवार पर गोबर, मिट्टी, रूई आदि से बनाया जाता है. पूरे नवरात्रों में इनकी पूजा की जाती है. नवरात्रों की समाप्ति पर इसका विसर्जन किया जाता है.
मास्क पहने सांझी माता की प्रतिमा नाहन में भी बरसों से यह परंपरा चली आ रही है, लेकिन बदलते परिवेश में अब इस प्रतिमा का स्थान कैलेंडर लेने लगे हैं, लेकिन आज भी कुछ परिवार ऐसे हैं, जो इस परंपरा को जीवित रखे हुए है.
नाहन में रहने वाले राकेश गुप्ता व उनका परिवार हर वर्ष दूर-दूर से गोबर, मिट्टी लेकर सांझी माता की प्रतिमा बनाते हैं, जिसे देखने लोग भी पहुंचते हैं. राकेश गुप्ता इस प्रतिमा के लिए विशेष तौर पर कालाअंब से मिट्टी और गोबर लाते हैं और उनकी पत्नी व बेटी रूई, रंग बिरंगे कागजों इत्यादि से सुंदर प्रतिमा को दीवार पर बनाती हैं. इन्हें देखने को लोग काफी संख्या में यहां आते हैं.
सांझी माता की पूजा करते हुए गुप्ता दंपति बरसों से चली आ रही पुरानी परंपरा को आगे भी कायम रखने का प्रयास कर रहे हैं. इस वर्ष वैश्विक महामारी कोरोना से सारी दुनिया त्रस्त है, तो संक्रमण से बचाव के मद्देनजर सांझी माता की प्रतिमा से जागरूकता दिखाने का भी प्रयास किया गया है. माता की प्रतिमा को मास्क पहनाया गया था. साथ ही घर की दीवारों पर बनाई गई सांझी माता की प्रतिमा के साथ अन्य वस्तुओं में सेनिटाइजर को भी विशेष रूप से बनाया गया है, ताकि लोग इसको समझे और सुरक्षित रहे.
राकेश गुप्ता ने बताया कि यह परंपरा काफी समय से चली आ रही है और वह लोग इसे आज भी कायम रखे हुए हैं. वह प्रतिमा के लिए विशेष मिट्टी और गोबर कालाअंब से लेकर आते हैं. फिर प्रतिमा का निर्माण किया जाता है. वह चाहते हैं कि लोग इस परंपरा से जुड़े और मां का आशीर्वाद प्राप्त करें.
अलीशा ने बताया कि उनका परिवार हमेशा से गोबर, मिट्टी, रूई, पेपर आदि से सांझी बनाते आ रहे हैं और इसमें बहुत आनंद मिलता है. लोग उनके घर इसे देखने भी आते हैं. सुनीता गुप्ता ने बताया कि वह इस परंपरा को जीवित रखने के लिए लगातार प्रयासरत हैं और कैलेंडर से पूजा की बजाए लोगों को गोबर, मिट्टी से प्रतिमा बनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं.
गौरतलब है कि आधुनिकता के दौर में जहां अब लोग कैलेंडर के माध्यम से ही सांझी माता की पूजा करते हैं. वहीं गुप्ता दंपति का परिवार आज भी प्राचीन परंपरा को कायम रखे हुए हैं, जिससे उन लोगों को भी प्रेरणा लेने की आवश्यकता है, जो आधुनिकता की दौड़ में इस परंपरा को भूलते जा रहे हैं.