सिरमौर: जिले के सिरमौरी ताल में आज भी नटवणी के श्राप से कई खेत बंजर हैं. कई जगह भारी भूस्खलन होते रहते हैं. यहां विकास की गति बिल्कुल थमी हुई है. आज भी यहां के लोग फसल न होने से काफी परशान हैं.
मान्यता है कि, सिरमौर राज्य के शुरुआती इतिहास के दौरान जब राजा मदन सिंह शासन करते थे तो उस समय एक महिला ने राजा के समक्ष अपनी कलाबाजी के बारे में बताया. राजा ने उससे शर्त रखी कि अगर वह एक रस्से पर नाचते हुए गिरी नदी को पार करते हुए पोका गांव से टोका पहाड़ी पर आ जाए, तो उसे अपने राज्य का आधा हिस्सा दें देंगे.
राजा के आदेश के बाद नटनी जैसे ही यह करतब पूरा कर सिरमौर की टोका पहाड़ी पर पहुंचने ही वाली थी कि आधा राज्य हाथ से जाने के भय से दीवान जुझार सिंह ने रस्सी काट दी. जिसके बाद नटनी गिरी नदी में गिरते हुए श्राप दे दिया. उसने कुछ इस तरह से वहां के लोगों को श्राप दिया कि 'आर टोका पार पोका, डूब मरो सिरमौरो रे लोका' अर्थात ( इधर टोका और उधर पोका और डूब मरो सिरमौर के लोगों). इस नटनी के नदी में गिरने पर ही इस नदी का नाम गिरी नदी पड़ा. किंवदंती है कि नटनी के श्राप के कारण नदी में भयंकर बाढ़ आई और सिरमौर रियासत पूरी तरह नष्ट हो गई.
ऐतिहासिक बाबा पत्थर नाथ मंदिर के संन्यासी रामानंद ने बताया कि नतवाणी की आत्मा की शांति के लिए लोगों को पूजा पाठ करवाने चाहिए ताकि यहां का रुका हुआ विकास आगे बढ़ सके.
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