नाहन: 1621 में बसे करीब 402 साल पुराने नाहन शहर की ऐतिहासिक सैरगाह शमशेर विला राउंड अपने आप में खास स्थल है. चीड़ के घने जंगलों के बीच बसी इस ऐतिहासिक सैरगाह के झरोखों से नाहन का इतिहास झांकता है. इस सैरगाह की स्थापना के पीछे भी बड़ा ही रोचक इतिहास छिपा है. 18वीं शताब्दी में अपनी प्रिय रानी के विरह में महाराजा शमशेर प्रकाश ने राजमहल को त्याग दिया था और इस जगह पर अलग से आवास बनाकर रहने लगे थे.
प्रिय रानी की मृत्यु के बाद त्यागा महल-तब से लेकर आज तक नाहन शहर की यह ऐतिहासिक सैरगाह टॉक ऑफ द टाउन बनी हुई है. ईटीवी भारत से बात करते हुए शाही परिवार के सदस्य एवं पूर्व विधायक कंवर अजय बहादुर सिंह बताते हैं कि महाराजा शमशेर प्रकाश ने नाहन में अपने लिए सन् 1889 में राजमहल से अलग एक आवास बनवाया था. अपनी प्रिय रानी क्योंथल (जुन्गा) की मृत्यु के पश्चात महाराजा शमशेर प्रकाश ने महल त्याग दिया और एक नई इमारत शमशेर विला में रहने लगे.
यूरोपियन स्टाइल में भव्य तरीके से बनाई इमारत-उन्होंने बताया कि महाराजा शमशेर प्रकाश ने अपने नाम के साथ अंग्रेजी शब्द विला शब्द को संयुक्त कर इस आवास को शमशेर विला नाम दिया. इस आवास के नाम से ही नाहन शहर के इस स्थान का नाम शमशेर विला पड़ा है, जिसे वर्तमान में विला राउंड भी कहा जाता है. उन्होंने बताया कि उस समय तैयार की गई इमारत को यूरोपियन स्टाइल में भव्य तरीके से बनाया गया था. वर्तमान महल के प्रमुख द्वार पर रखे गए दो क्षेत्र भी उस समय शमशेर विला में ही रखे गए थे.
महल में हर किस्म की यूरोपियन सुविधा मौजूद-यहां टेनिस कोड, एडीसी के लिए कमरा, गेस्ट्स के लिए वेटिंग रूम व अन्य हर किस्म की यूरोपियन सुविधा मौजूद होती थी. कंवर अजय बहादुर सिंह बताते हैं कि उस समय सैरगाह में जंगल का आनंद लेने के लिए यहां एक छतरी का भी निर्माण किया गया था, जो आजादी के बाद भी रेनोवेट की गई थी. यह ऐतिहासिक छतरी भी महाराजा शमशेर प्रकाश की ही देन है. महाराजा यहां घूमने के लिए जाते थे और वहां जाकर बैठते थे. सैरगाह में जाने के लिए उस समय भी आम आदमी को जाने की कोई पाबंदी नहीं थी.
यूरोपियन गेस्ट हाउस के रूप में महल का इस्तेमाल-शहर का कोई भी व्यक्ति यहां आ सकता था और महाराजा भी बड़े ही आदर भाव से यहां आने वाले लोगों से मिलते थे. कंवर अजय बहादुर सिंह ने बताया कि महाराजा शमशेर प्रकाश की मृत्यु के पश्चात शमशेर विला आवास को यूरोपियन गेस्ट हाउस के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा. इसके बाद जितने भी ब्रिटिश मेहमान आएं, उनके ठहरने का इंतजाम इसी इमारत में किया गया था. बाद में 1947-48 में शमशेर विला में आग लग गई थी.