नाहन: इसे पीसीपीएनडीटी एक्ट की सख्ती कहें या फिर अभिभावकों की जागरूकता, सिरमौर जिला में अभिभावक अब बेटियों को बोझ नहीं समझ रहे हैं. इसको लेकर अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिला में लिंगानुपात में ज्यादा अंतर नहीं है. इस साल सिरमौर जिला में 1000 लड़कों की तुलना में 943 लड़कियां है. साथ ही पीसीपीएनडीटी एक्ट के उल्लंघन की कोई शिकायत भी स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं पहुंची है.
पहले जानिये क्या है पीसीपीएनडीटी एक्ट
पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (PCPNDT) अधिनियम 1994 भारत में कन्या भ्रूण हत्या और गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए देश की संसद द्वारा पारित एक संघीय कानून है. इस अधिनियम से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.
प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक 'पीएनडीटी' एक्ट 1996 के तहत जन्म से पूर्व शिशु के लिंग की जांच पर पाबंदी है. ऐसे में अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी करवाने वाले जोड़े या करने वाले डॉक्टर, लैब कर्मी को तीन से पांच साल सजा और जुर्माने की सजा का प्रावधान है.
सिरमौर जिला में 22 अल्ट्रासाउंड मशीनें
सीएमओ सिरमौर डॉ. केके पराशर ने बताया कि सिरमौर जिला में सरकारी व गैर सरकारी अस्पतालों में करीब 22 अल्ट्रासाउंड की मशीनें लगी हुई है. जहां भी यह अल्ट्रासाउंड मशीनें लगी हैं, वहां पर पीसीपीएनडीटी एक्ट को लेकर नियम लगाए गए हैं. समय-समय पर इनकी जांच भी की जाती है. इसके लिए सीएमओ, एमओएच व बीएमओ समय-समय पर निरीक्षण करते रहते हैं.
सही शिकायत पर होती है सख्त कार्रवाई
सीएमओ ने बताया कि यदि कन्या भ्रूण जांच संबंधी कोई शिकायत आती है और शिकायत सही पाई जाती है तो इसमें सजा का भी प्रावधान है. लिहाजा जिला में स्वास्थ्य विभाग पीसीपीएनडीटी एक्ट के नियमों की सख्ती से पालना करते हुए समय-समय पर औचक निरीक्षण होते हैं.
1000 लड़कों के मुकाबले 943 लड़कियां, समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम सीएमओ डॉ. केके पराशर ने बताया कि जिला में लिंगानुपात अच्छा है. यहां 1000 लड़कों के मुकाबले 943 लड़कियां हैं. उन्होंने बताया कि प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टरों को लेकर समय-समय पर पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत जागरूकता शिविर भी आयोजित किए जाते हैं. जब भी इसको लेकर नया नियम आता है तो डाक्टरों को ट्रेनिंग दी जाती है.