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दशकों पहले शुरू हुई माइनिंग को आज तक नहीं मिला उद्योग का दर्जा, कोरोना संकट में काम ठप

सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र में ग्रेनाइट पत्थरों की माइनों के बंद होने के कारण यहां काम करने वाले कामगारों को भी मार झेलनी पड़ी है. यहां काम न होने के कारण कामगारों को बेकार बैठना पड़ रहा है. साथ ही माइनों के बंद होने से क्षेत्र की दस पंचायतों के हजारों लोग बेरोजगार होने की कगार पर है.

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Published : Jun 29, 2020, 9:15 PM IST

mining industry has suffered
कोरोना से माइनिंग कारोबार प्रभावित.

पांवटा साहिब: कोरोना महामारी से पूरा विश्व जूझ रहा है. इस महामारी की मार सभी तरह के उद्योगों पर पड़ी है. जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र में कोरोना के चलते ग्रेनाइट पत्थरों की माइनें बंद पड़ी है, जिसके कारण यहां करोड़ों रूपये का नुकसान हुआ है.

ग्रेनाइट पत्थर का इस्तेमाल कई जरूरी सामानों में भी होता है. इसमें दवाइयां, शीशा, प्लास्टर ऑफ पेरिस, मुर्गी दाना, लाइन केमिकल, सीमेंट ग्रेड, सीमेंट वाइट, चूना पाउडर इत्यादि शामिल हैं. इन माइनों से ग्रेनाइट पत्थर दूसरे राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में जाता था. वहीं, अब काम ठप पड़ने से भारत की अर्थव्यवस्था को भी करोड़ों रुपए का नुकसान झेलना पड़ा है.

वहीं, अब ग्रेनाइट पत्थरों की माइनों के बंद होने के कारण यहां काम करने वाले कामगारों को भी मार झेलनी पड़ी है. यहां काम न होने के कारण कामगारों को बेकार बैठना पड़ रहा है. साथ ही माइनों के बंद होने से क्षेत्र की दस पंचायतों के हजारों लोग बेरोजगार होने की कगार पर है. यहां के लोगों का कहना है कि एक महीने में करीब 1500 वाहन बाहरी राज्यों में चूना पाउडर की सप्लाई करते थे, लेकिन अब कोरोना के कारण 100 वाहन भी नहीं जा पा रहे हैं.

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कोरोना महामारी के चलते भारी नुकसान

इसके अलावा खान मालिकों ने कारोबार के लिए बैंक से करोड़ों रुपये लिए हैं, जिन्हें कोरोना महामारी के चलते काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है. खान मालिकों का कहना है कि वह अपने किश्त भी नहीं निकाल पा रहे हैं. खान मालिकों का कहना है कि सरकार को खान मालिकों के बैंक से लिए गए लॉन पर ब्याज माफ कर देना चाहिए. वहीं, राजेंद्र तिवारी ने बताया कि आज तक प्रदेश सरकार ने यहां माइनिंग को उद्योग का दर्जा नहीं दिया, जिसके चलते माइनिंग कर रहे लोगों को नुकसान झेलना पड़ रहा है.

गौरतलब है कि इस ग्रेनाइट पत्थर के कारण सरकार भी हर साल करोड़ों रुपए एकत्रित करती है. इस कारोबार से लाखों कामगारों को रोजगार मिला हुआ है. साथ ही यह कारोबार देश की अर्थव्यवस्था को संभालने में भी एक मील का पत्थर साबित होता है. वहीं, अब ग्रेनाइट पत्थरों के कारोबार पर कोरोना महामारी का असर देखने को मिल रहा है. इसके कारण देश भर में कई बड़े उद्योग बंद हो गए हैं, जिसके चलते इस पत्थर की डिमांड भी काफी कम होती जा रही है.

गिरिपार क्षेत्र में माइनिंग रोजगार का मुख्य साधन

माइन संचालक राजेंद्र तिवारी ने कहा कि गिरिपार क्षेत्र में माइनिंग ही रोजगार का मुख्य साधन है. 1962 से यहां माइनिंग चल रही है. शुरुआत में यहां करीब 59 माइनिंग थी, लेकिन आज यहां 15 माइनिंग रह गई है. उन्होंने कहा कि गिरिपार में माइनिंग पर पहले से ही दबाव था. उन्होंने कहा कि सरकार ने 10 हजार करोड़ का औद्योगिक पैकेज दिया है, लेकिन गिरिपार क्षेत्र के लिए कोई भी पैकेज नहीं दिया गया. उन्होंने कहा कि सरकार से माइनिंग का पट्टा लीज पर देने पर रॉयलिटी व टैक्स लेती है और इसके बदले में कोई भी सुविधा नहीं देती है. वहीं, अब कोरोना के कारण इस उद्योग को काफी नुकसान हुआ है.

माइनिंग अध्यक्ष खत्री राम ठाकुर ने कहा कि यहां पर सिर्फ 10 प्रतिशत की ग्रेनाइट पत्थर का कारोबार रह गया है. उन्होंने सरकार पर सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया है. खत्री सिंह ने कहा कि दूसरे राज्यों में माइनिंग पर रॉयलिटी भी ज्यादा नहीं है, लेकिन यहां पर प्रदेश सरकार टैक्स बढ़ा रही है.

लॉकडाउन के बाद बाजार के कामों में मंदी

पंचायत प्रधान रामेश्वर शर्मा ने कहा कि लॉकडाउन के बाद बाजार के कामों में मंदी है. यहां के उद्योग से सतौन ही नहीं बल्कि गिरिपार का अधिकांश क्षेत्र निर्भर रहता था, लेकिन आज ये उद्योग शोपीस बने हुए हैं. यहां गाड़ियों के पहिए जाम हो गए हैं. रामेश्वर शर्मा ने सरकार से मांग की है कि सरकार इस क्षेत्र में नई माइनिंग खोलें, ताकि बेरोजगार युवाओं को भी रोजगार मिले. साथ ही यहां रह रहे प्रवासी मजदूरों को भी रोजी रोटी मिले.

मजदूरों की कमी के चलते काम प्रभावित

पंचायत प्रधान ने भी बताया कि उन्होंने यहां पर यूपी बिहार के मजदूरों को राशन और अन्य मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने का प्रयास किया था, ताकि यहां से कोई भी मजदूर अपने राज्य में ना जाएं. उन्होंने कहा कि सतौन पंचायत के लोग चूना पत्थर मंडी के काम पर ही निर्भर रहते थे. वहीं, काम में मंदी आने के बाद युवा व अन्य लोग फैक्ट्रियों के चक्कर काट रहे हैं.

बता दें कि 1962 में पहला उद्योग यहां पर लगा था. उसके बाद 1965 में दूसरा उद्योग और फिर दर्जनों उद्योग यहां पर लगाए गए. वहीं, दशकों पहले शुरू हुई माइनिंग को अभी तक उद्योग का दर्जा नहीं दिया गया है. वहीं, अब कोरोना संकट के दौरान माइनिंग से जुड़े लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

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