पांवटा साहिब: एक वक्त था जब लोहारों के काम को सराहा जाता था, लेकिन अब धीरे-धीरे आधुनिक चीजों ने लोहारों के कामकाज को कम कर दिया है. पहले तो काम और मांग ही कम हुई थी लेकिन कोरोना काल ने तो रोजी-रोटी पर ही ग्रहण लगा दिया है.
दिन में 100 रुपये तक कमाना हुआ मुश्किल
महंगाई बढ़ती जा रही है और लोहारों का काम खत्म होता जा रहा है. ऐसे में लोहार अपने परिवार का पालन-पोषण करने में भी असमर्थ महसूस कर रहे हैं. लोहारों पर लॉकडाउन का हथौड़ा ऐसा पड़ा कि पहले एक दिन में जो आमदनी 700-800 रुपये हुआ करती थी, आज वह आंकड़ा 100 रुपये तक भी नहीं पहुंच पा रहा है. लोहार घरेलू लोहे के बर्तन और कृषि उपकरण जैसे कुल्हाड़ी, चाकू, हथौड़े आदि बनाते हैं. इन उत्पादों का उपयोग किसानों, निर्माण श्रमिकों, माली और अन्य लोगों द्वारा किया जाता है लेकिन कोरोना की वजह से किसान लोहारों से सामान खरीदने पहुंचे ही नहीं.
कारीगरों को तनख्वाह नहीं दे पा रहे लोहार
पांवटा साहिब में 24 के करीब लोग लोहार का काम करते हैं. ऐसे में करीब 24 परिवारों के लोगों के सामने चुनौतियों का पहाड़ बना हुआ है जो कब खत्म होगा, कोई नहीं जानता. लोहारों की आमदनी का जरिया उनकी दुकान पर आने वाला रोज का ग्राहक होता है जो अब कर्फ्यू की वजह से बाजार का रुख ही नहीं कर रहे. ऐसे में लोहारों की खुद की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब है तो वह अपने कारीगर को तनख्वाह कहां से देगा. तपती गर्मी में लोग घरों से बाहर तक निकलना पसंद नहीं करते लेकिन एक लोहार तपती आग में काम कर औजारों का निर्माण करता है. महंगाई की मार ने लोहारों को घुटनों पर ला दिया है.
लोहारों को जयराम सरकार से मदद की आस
घर का राशन, किराया. बच्चों का खाना-पीना, स्कूल की फीस और न जाने क्या-क्या, यह सारी चीजें एक लोहार के लिए कोरोना काल में किसी बोझ से कम महसूस नहीं होती. लोहारों को काम करने के लिए लोहा खरीदना पड़ता है जिससे वह औजार बनाते हैं. अब लोहे के दाम में आई वृद्धि ने लोहारों की मुश्किलों को बढ़ा दिया है. दुकान के मालिक से लेकर दुकान पर काम करने वाले करीगर, सब पर कोरोना वायरस की वजह से संकट के बादल छा गए हैं. कोरोना काल में सभी तरह के कामकाज पर रोक सी लग गई है. लोहारों का काम भी ठप पड़ा हुआ है. ऐसे में लोहार सरकार से ही आस लगाए बैठे हैं कि उनकी बिगड़ती आर्थिक स्थिति को वह पटरी पर लाएं.
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