नाहन: हिमाचल प्रदेश में अब नई तकनीक के जरीए स्कूली बच्चों की दिमागी क्षमता का पता चल सकता है. डर्मेटोग्लिफिक्स साइंस की मदद से स्कूली बच्चों की बायोलॉजिकल और साइकोलॉजिकल क्षमता का पता लगाया जा सकेगा. इस तकनीक के अंतर्गत बायोमेट्रिक मशीन से फिंगर प्रिंट के माध्यम से मिलने वाली रिपोर्ट से स्कूली बच्चों की क्षमताओं की पूरी जानकारी मिल सकेगी.
विद्यार्थियों पर डर्मेटोग्लिफिक्स का प्रयोग: इस आधुनिक तकनीक को हिमाचल में पहली बार किसी सरकारी स्कूल में अपनाने का दावा स्कूल प्रबंधन की तरफ से किया गया है. ब्रेन बुक के नाम से स्कूल में इसके लिए बाकायदा एक केंद्र भी स्थापित किया गया है. बता दें कि स्कूली बच्चों की बौद्धिक, पारिवारिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक व स्वाभाविक क्षमता का वैज्ञानिक तरीके से आकलन करने के लिए सिरमौर जिले के सरकारी स्कूल नौरंगाबाद ने इस आधुनिकतम विधि डर्मेटोग्लिफिक्स का सफल प्रयोग किया है. स्कूल प्रबंधन का दावा है कि प्रदेश में पहली बार इस आधुनिकतम विधि का सफल प्रयोग किया गया है.
क्या है डर्मेटोग्लिफिक्स साइंस: स्कूल के मुख्य अध्यापक डॉ. संजीव अत्री ने बताया कि इस विधि में स्कूली बच्चे के हाथों की उंगलियों के फिंगर प्रिंट लिए जाते हैं. इन फिंगर प्रिंट को एक सॉफ्टवेयर के माध्यम से विश्लेषण करके डर्मेटोग्लिफिक्स रिपोर्ट प्राप्त की जाती है. करीब एक घंटे में 31 से 51 पन्नों की रिपोर्ट में पता चलता है कि विद्यार्थी को अभिभावकों से कितनी बुद्धि/ज्ञान की प्राप्त हुई है और बच्चे की अपनी कितनी है. व्यक्तित्व के चार मुख्य प्रकारों में से बच्चे का प्राथमिक व द्वितीयक व्यक्तित्व कौन सा है. साथ ही यह भी पता चल सकता है कि बच्चा किस व्यवसाय में कितना सफल हो सकता है.
'बच्चे का पूरा लेखा-जोखा होगा सामने': डॉ. अत्री के अनुसार डर्मेटोग्लिफिक्स विधि से प्राप्त रिपोर्ट में यह भी सामने आ सकेगा कि बच्चा किस सहगामी गतिविधि में सर्वाधिक सफल रहेगा और किनमें कम सफल हो सकता है. बच्चे की सफलता और असफलता की प्रतिशतता कितनी हो सकती है. इस परीक्षण तकनीक से यह भी पता लगाया जा सकता है कि विद्यार्थी किस तकनीक से सुगमता से सीख सकता है. इसके साथ-साथ अध्यापक को कौन सी तकनीक मूक विद्यार्थी को पढ़ाने के लिए अपनानी चाहिए. यह तकनीक स्पष्ट तौर से यह भी बताती है कि विद्यार्थी का दायां और बायां कौन सा दिमाग ज्यादा क्रियाशील है. इसका उसके व्यक्तित्व और क्रियाशीलता पर क्या प्रभाव पड़ेगा. यह तकनीक विद्यार्थी के करीब 39 विभिन्न गुणों की जानकारी प्रदान कर सकती है.
'जापान के स्कूलों से मिला आइडिया': डॉ. अत्री ने बताया कि उन्होंने अपने जापान दौरे के समय यह तकनीक वहां के स्कूलों में देखी थी. इसके बाद अपने विद्यालय के ग्रामीण छात्र-छात्राओं के लिए यह तकनीक विद्यालय में स्थापित की है. अभी तक 3 विद्यार्थियों व दो शिक्षकों पर डर्मेटोग्लिफिक्स विधि का प्रयोग किया गया. इसका प्रयोग सफल रहा है. डॉ. अत्री ने बताया कि इस विधि से विद्यार्थी की सारी रिपोर्ट तैयार करने का उन्होंने स्वयं अहमदाबाद में स्थित विदेशी कंपनी से प्रशिक्षण भी लिया है. उन्होंने अपने प्रशिक्षण केंद्र का नाम ब्रेन बुक रखा है. इस केंद्र में स्थापित करने के लिए कुछ राशि स्वयं व कुछ दान से व्यय की गई है. बता दें कि इससे पहले इसी स्कूल में विश्व के सबसे बड़े इंक पेन को भी तैयार किया जा चुका है. यह क्षेत्र गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र है, जहां बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए स्कूल प्रबंधन लगातार प्रयास कर रहा है.
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