नाहन :सिरमौर जिले में विलुप्त होते जा रहे वाद्य यंत्रों, लोक नृत्य और लोक गाथाओं के संरक्षण की मांग सरकार से की गई है. कला एवं संस्कृति से जुड़े लोगों का मानना है कि जब तक इन वाद्य यंत्रों से जुड़े कलाकारों को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी तब तक इन्हें बचाना मुश्किल होगा.
सिरमौर के विलुप्त होते वाद्य यंत्रों के संरक्षण की मांग, कलाकारों को प्राथमिकता देने का आग्रह
सिरमौर जिले में विलुप्त होते जा रहे वाद्य यंत्रों, लोक नृत्य और लोक गाथाओं के संरक्षण की मांग कलाकारों ने सरकार से की है. कलाकारों का कहना है कि अगर अब संरक्षण नहीं मिला तो वाद्य यंत्र विलुप्त की कगार पर पहुंच जाएंगे.
दरअसल देवभूमि को समृद्ध संस्कृति, लोक नृत्यों के लिए भी जाना जाता है. गिरीपार क्षेत्र में अलग संस्कृति पाई जाती है, तो अन्य क्षेत्रों में अलग. यहां पर वाद्य यंत्र लगभग जन्म से लेकर मृत्यु तक बजाए जाते हैं. इसी तरह से देव ताल, मृत्यु ताल, शुभ ताल अनेक कार्यों में वाद्य यंत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, लेकिन धीरे-धीरे यह सांस्कृतिक वाद्ययंत्र विलुप्त होने लगे हैं. ऐसे ही अनेक लोक नृत्य और लोक गाथाएं भी विलुप्त होने की कगार पर है, हालांकि सिरमौर जिले में पारंपरिक संस्कृति से जुड़े अनेक लोग प्रयासरत है कि इन्हें विलुप्त होने से बचाया जा सके.
राष्ट्रीय स्तर पर अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुके राजगढ़ के लोक कलाकार जोगिंद्र हब्बी का कहना है कि कलाकारों के लिए एक कल्याण बोर्ड बनाया जाना चाहिए. हितों को प्राथमिकता देंगे तभी यह बजंतरी यंत्रों से जुड़े रहेंगे. साथ ही डीजे जैसे आधुनिक मनोरंजन को चुनौती दे सकेंगे. वहीं ,सांस्कृतिक दलों को और अधिक मंच प्रदान किए जाने की भी आवश्यकता है.
संगीत अकादमी पुरस्कार से सम्मानित विद्यानंद सरेक का मानना है कि वाद्य यंत्रों के बजंतरियों को तरजीह देनी होगी. साथ ही उनके रोजगार व सेमीनार की बात भी करनी होगी, तभी यह कला बचाई जा सकती है. इसके साथ-साथ सरकार को प्राचीन गुरु-शिष्य की परंपरा को भी लागू करना होगा, ताकि विलुप्त हो रही संस्कृति को संरक्षण दिया जा सके.कुल मिलाकर समय रहते सरकार को इस दिशा में उचित कदम उठाने की आवश्यकता है, अन्यथा धीरे-धीरे सिरमौर की लोक संस्कृति विलुप्त होने के कगार पर पहुंच रही है.