नाहन:छोटे से पहाड़ी राज्य हिमाचल को यू हीं अद्भुत नहीं कहा जाता. यहां कई लोक परंरपराएं, रीति रिवाज हैं. हिमाचल को त्यौहारों की धरती भी कहा जाता है. यहां हर क्षेत्र का अपना त्यौहार है. एक ऐसा ही त्यौहार है जो ऊपरी हिमाचल में बड़े जश्न के साथ मनाया जाता है. इस दिवाली पर ना तो पटाखों का शोर होता है और ना ही अतिशबाजी का जहरीला धुंआ. इस बूढ़ी दिवाली पर शोर होता है लोक संगीतों का वाद्य यंत्रों की थाप पर थिरकते कदमों का.
बुढ़ी दिवाली पर हाथों में जलती मशालों से पूरा गांव रौशन हो जाता है. बूढ़ी दिवाली शिमला, सिरमौर समेत मंडी के कई इलाकों में मनाई जाती है. बूढ़ी दिवाली दीपावली के एक माह बाद अमावस्या की रात से शुरू होती है.
बूढ़ी दीवाली के पीछे कोई पौराणिक प्रमाण नहीं है. जानकारों का कहना है कि पहाड़ी क्षेत्र होने और आयोध्या से दूर होने के चलते लोगों को श्रीराम के अयोध्या लौटने की खबर एक महीने बाद मिली थी. इसलिए लोग दिवाली के एक महीने बाद बूढ़ी दीवाली मनाते हैं.