शिमला:राजधानी शिमला के 200 साल पुराने कालीबाड़ी मंदिर में हर साल की तरह इस बार भी दुर्गा अष्टमी धूमधाम से मनाई गई. दरअसल, शिमला के कालीबाड़ी मंदिर में दुर्गा अष्टमी पर खास पूजा की जाती है. यहां पर 108 कमल के फूलों से माता की मूर्ती को सजाया गया था. यह मंदिर बंगाल के लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है. बता दें कि कालीबाड़ी मंदिर में स्थापित माता बंगाल से लाई गई हैं और शिमला में इन्हें स्थापित किया गया है. ऐसे में बंगाल के लोगों की यह कुल इष्ट हैं. बंगाल के लोग अष्टमी पर यहां पर खासतौर पर पूजा करने आते हैं.
वैश्यालय से लाई गई मिट्टी से होता है मूर्ति का निर्माण:दरअसल, इस मंदिर में मनाए जाने वाले नवरात्रि की एक खासियत यह भी है कि यहां पर जो मूर्तियां बनाई जाती है, उसके लिए कारीगर विशेष रूप से बंगाल से आते हैं. इन मूर्तियों को बनाने के लिए करीब 15 दिनों का वक्त लगता है. कारीगर जब मूर्ति बनाते हैं तो उस दौरान कुछ नहीं खाते. इसके अलावा माता की मूर्ति में सबसे अंत में आंखों को बनाया जाता है. ऐसा इसीलिए किया जाता है क्योंकि आंखों के श्रृंगार के साथ माता का स्वरूप पूर्ण हो जाता है और मूर्ति देखने पर वह जीवंत नजर आती है. इस मूर्ति का निर्माण वैश्यालय से लाई गई मिट्टी का इस्तेमाल किए बिना अधूरा माना जाता है.
बताया जाता है कि माता दुर्गा ने वरदान दिया था कि वेश्यालय की मिट्टी से बनाई गई मूर्ति की स्थापना करने से ही उनका व्रत फलीभूत होगा और तभी से मां दुर्गा की मूर्ति वेश्यालय के आंगन से लाई गई मिट्टी से बनाई जाने लगी. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार दुर्गा पूजा के लिए माता दुर्गा की जो मूर्ति बनाई जाती है, उसके लिए 4 चीजें बहुत जरूरी होती हैं. पहली गंगा तट की मिट्टी, दूसरी गोमूत्र, गोबर और वेश्यालय की मिट्टी या किसी भी ऐसे स्थान की मिट्टी जहां जाना निषेध हो. इन सभी को मिलाकर बनाई गई मूर्ति ही पूर्ण मानी जाती है. ये रस्म कई वर्षों से चली आ रही है.