डेस्क रिपोर्ट: दुनिया का इतिहास तानाशाहों की कहानी से भरा पड़ा है. चंगेज खान से लेकर हिटलर तक दुनिया में कई उदाहरण मिल जाएंगे, जिनकी तानाशाही के आगे इंसानियत की रूह कांप जाए. ऐसा ही एक तानाशाह था ईदी अमीन, जो अफ्रीकी देश युगांडा का वो तानाशाह था. कहते हैं कि उस सनकी तानाशाह ने अपने आठ साल के राज में लाखों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था. इतिहास के पन्नों में उस क्रूर तानाशाह का इंडियन कनेक्शन भी है क्योंकि उसने इंसानियत को धता बताकर सबसे बड़ा दर्द भारतीय और एशियाई मूल के लोगों को दिया था. उस क्रूर शासक का नाम ईदी अमीन था जिसके किस्से सुनने में किसी फिल्मी विलेन जैसे लगते हैं लेकिन उसकी हकीकत झेल चुके लोगों के साथ-साथ उसकी हैवानियत के किस्से भी रूह कंपा देते हैं.
भारतीयों को देश से निकाला-ईदी अमीन के शासन का ये वो दौर था जब युगांडा में भारतीय ही नहीं बल्कि एशिया के कई देशों के लोग रहते थे. एशियाई मूल के लोगों की अच्छी खासी आबादी युगांडा में रहती थी. देश की आर्थिकी में इन लोगों की बड़ी हिस्सेदारी थी, माना जाता है उस दौर में युगांडा की 20 फीसदी संपत्ति के मालिक एशियाई थे. अच्छे बिजनेस, कारोबार और संपत्ति का मालिकाना हक एशियाई लोगों के पास था. जो कट्टरपंथी समूहों को बिल्कुल भी पसंद नहीं था और 1950 और 60 के दशक में विद्रोह की वजह बन गया.
युगांडा में कट्टरपंथियों ने एशियाई लोगों के खिलाफ ऐसा माहौल खड़ा किया कि भीड़ सड़कों पर उतर आई थी. इस बीच ईदी अमीने ने अगस्त 1962 में अपने सैनिकों को आदेश दिया कि एशियाई मूल के लोगों को देश से बाहर निकाल दो. अपने संबोधन में ईदी अमीन ने कहा कि ये अल्लाह का फरमान है और अल्लाह ने उससे कहा है कि सारे एशियाई लोगों को देश से निकाला जाए. जिसके बाद युगांडा में कोहराम मच गया और एशियाई मूल के लोग देश छोड़ने पर मजबूर हो गए.
सिर्फ एक सूटकेस और 50 पाउंड ले जाने की इजाजत-1947 में भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ तो 1960 के दशक की शुरुआत में ही ब्रिटिश हुकुमत ने युगांडा को भी आजाद कर दिया. ये आजादी युगांडा में रहने वाले भारतीयों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गई. कट्टरपंथियों के दिल में भारतीयों के लिए दबी कड़वाहट जुबान और फिर सड़कों पर आ गई. जिसे ईदी अमीन ने और भड़काया और एशियाई लोगों को देश से बाहर निकालने का फरमान सुना दिया.दरअसल ईदी अमीन का मकसद भारतीयों की कमाई पर हक जमाना था वो उन्हें देश से निकालकर उनकी संपत्ति पर कब्जा करना चाहता था. रातोंरात देश निकाले का ऐलान हुआ तो भारतीय समेत तमाम एशियाई मूल के लोगों में पैरों तले मानों जमीन खिसक गई. सालों में कमाई गई पूंजी को छोड़कर जाने का फरमान सुनाया गया था.
ईदी अमीन का फरमान था कि 3 महीने में देश छोड़ दें और साथ में सिर्फ 2 सूटकेस और 50 पाउंड ले जाने की अनुमति होगी. सालों साल की मेहनत को एक सनकी तानाशाह के कारण हजारों लोग युगांडा छोड़ने को मजबूर हो गए. कुछ लोगों ने कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों की शरण ली तो कुछ वापस भारत लौट आए. लेकिन भारतीयों को देश से निकालने का अंजाम युगांडा ने भी भुगता क्योंकि युगांडा की अर्थव्यवस्था पटरी पर आ गई और वहां भूखों मरने जैसी नौबत आ गई. कुछ साल बाद फिर तख्तापलट हुआ और इस बार ईदी अमीन को गद्दी छोड़कर भागना पड़ा.