शिमला: एक तरफ सरकार और प्रशासन जनता को हर सुविधा मुहैया कराने का डंका बजाती रहती है, लेकिन धरातल पर जब इसकी तस्वीर देखी जाती है, तो हकीकत कुछ और ही बयां करती है. दरअसल राजधानी शिमला के उपमंडल चौपाल के तहत आने वाला मड़ावग गांव एशिया के सबसे अमीर गांव की सूची में टॉप 4 पर अपनी जगह बनाए हुए है, लेकिन ये गांव सरकार की अनदेखी का शिकार बना हुआ है, क्योंकि यहां पर पुल सुविधा ना होने से रोज सैकड़ों लोग जान जोखिम में डालकर सफर करते हैं और प्रशासन आंख पर काली पट्टी बांधे बैठा हुआ है.
स्थानीय निवासी भरत सिंह ने बताया कि सेब की बम्पर पैदावार की वजह से मड़ावग को एशिया के सबसे अमीर गांव की सूची में शमिल किया गया है और कई नामी कंपनियां अपने ग्राहकों तक सेब का जूस पहुंचाने के लिए इसी गांव पर निर्भर हैं. उन्होंने बताया कि पूरे विश्व में सबसे ज्यादा सेब उत्पादन का खिताब भी इसी गांव के नाम है, लेकिन हिमाचल प्रदेश को विश्व भर में एक अलग पहचान दिलाने वाले गांव के प्रति सरकार का उदासीन रवैया है, जिसके चलते ग्रामीणों को मजबूरन लकड़ी के जर्जर पुल से गुजरना पड़ता है.
बागवान रमेश चामटा ने बताया कि बरसात के मौसम में गौरली-मड़ावग और माटल पंचायत के किनारे पर बहने वाली लोहना खड्ड का जलस्तर बढ़ जाता है और इन दिनों सेब की सीजन चरम सीमा पर है. ऐसे में सेब से भरी गाड़ियों और निजी वाहनों को लोहना खड्ड से पार करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि सरकार ने लोहना खड्ड पर 1 करोड़ 68 लाख रुपये की लागत से बनने वाले पुल का टेंडर भी एक ठेकेदार को दे दिया है, जिसका कार्य जून 2019 को पूरा होना था. साथ ही पुल के एक छोर पर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का बोर्ड लगाकर लोकनिर्माण विभाग ने उसमें पुल निर्माण से संबंधित सभी जानकारियां भी अंकित की है, लेकिन आज तक कोई काम पूरी नहीं हुआ है.