झालावाड़. जिले में दीपावली पर्व के जागदेव गांव मेले में भारी संख्या में जनसैलाब उमड़ता है. इस मेले में प्रेमी प्रेमिका मिलने आते है. ये मेला सदियों सालों से चला आ रहा है. वहीं ईटीवी भारत की टीम इस मेले की हकीकत जानने पहुंची.
राजस्थान के झालावाड़ जिले के जगदेव जी गांव में बताया जाता है कि सदियों पुरानी इस मेले में आज भी सारी परंपरा निभाई जाती है. झालावाड़ मुख्यालय से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर नेवज नदी किनारे एक प्राचीन देवनारायण भगवान का मंदिर है.
यहां पर तीन दिवसीय मेला वर्ष में एक बार लगता है. जहां पर लोग परंपरा अनुसार खरीदारी करते हैं. मेले की मान्यता के अनुसार युवक और युवतियां अपने मनपसंद जीवन साथी की तलाश के लिए ही यहां आते हैं. वे पान खिलाकर अपने प्रेम का इजहार करते हैं और दिल जीतने की कोशिश करते हैं.
बांसुरी की आवाज पर थिरकते हैं कदम
मेले में विवाह के योग्य युवक और युवतियां सज-धजकर आते हैं, लेकिन दिल जीतने का काम इतना आसान भी नहीं होता. इसके लिए युवक जहां हाथ में बांसुरी थामे मांदर की थाप पर थिरकते हैं, वहीं युवतियां घूंघट की ओट से अपने प्रियतम को रिझाती हैं.
मेले में भागकर शादी करने की प्रथा
इन मेलों में आने वाले मौज-मस्ती का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते. मेले में झूलों से लेकर आइस्क्रीम और गोलगप्पों का बाजार सजा है. स्थानीय ग्रामीण कहते हैं कि जागदेव गांव मेले को लेकर मान्यता है कि इस मौके पर युवक-युवती एक दूसरे को पान खिला दें या एक दूसरे के लगा दें तो मान लिया जाता है कि दोनों में प्रेम हो गया है. इतना ही नहीं वे दोनों मौका पाकर भाग जाते हैं और विवाह बंधन में बंध जाते हैं. भाग कर शादी करने के कारण ही इस पर्व को जागदेव गांव कहा जाता है.
जगदेव जी मेला नदी के किनारे आयोजित होता है. आसपास के बड़े-बड़े पेड़ पौधे लगे हुए हैं. मेले में किसी रेस्टोरेंट या होटल पर प्रेमी प्रेमिका मिल जाएंगे तो मौके से ही फरार हो जाते हैं और यहां की पहले से चली आ रही मान्यता है अब मान्यता क्या हकीकत है क्या सही है पर कहा जाता है कि इस मेले में आने के बाद प्रेमी अपनी प्रेमिका के साथ वर्षों भर इंतजार करता है.
इस मेले के लिए और दोनों इस मेले में मिल जाते हैं तो यहीं से अपना जीवन साथी का जीवन सफल यात्रा को शुरू करते हैं. पौराणिक परंपराओं के अनुसार आ रहा है इस मेले में आज ही के दिन अमावस्या पर्व पर ज्वारे, गन्ने, कुमुदिनी के फूल मटकी, मिट्टी का कलश, दीपक, मोरपंखी, तीर-तलवार, खंजर, लाठी, घूंगरू, घंटियां खरीदते हैं.
यहां का मुख्य मेला है और यहां का मुख्य बाजार है जो कि वर्ष में सिर्फ एक बार 3 दिन लगता है. जिसमें दूरदराज सहित विभिन्न क्षेत्रों के लोग बड़ी संख्या में आकर्षक का केंद्र बना हुआ रहता है. अभी वर्तमान में कुछ ही दूरी पर जावर थाना क्षेत्र पुलिस प्रशासन द्वारा यहां पर बड़ी संख्या में पुलिस जाब्ता इस मेले में सुरक्षा व्यवस्था के लिए लगाया जाता है. फिर भी कहीं ना कहीं चुपके से कोई प्रेमी वाली घटना आज भी घट जाती है. इसका पता तक नहीं लग पाता है. आज भी इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. मेला उसी पद्धति के आधार पर परंपराओं अनुसार लगता है.