शिमला: हिमाचल सरकार 1500 करोड़ रुपए का कर्ज ले रही है. इसकी अधिसूचना जारी हो चुकी है. सुखविंदर सिंह सरकार का कर्ज को लेकर ये पहला अनुभव कहा जा सकता है. हिमाचल सरकार को आने वाले समय में भी प्रदेश की आर्थिक गाड़ी खींचने के लिए कर्ज लेना होगा. हिमाचल प्रदेश के पास खुद के आर्थिक संसाधन न के बराबर हैं. ऐसे में कर्ज ही सहारा है. अब सुखविंदर सिंह सरकार ने ओपीएस भी बहाल कर दी है.आने वाले समय में इसका बोझ भी खजाने पर ऐसा पड़ेगा कि नौबत दिवालिया होने की आ जाएगी.
हिमाचल में करीब 2 लाख कर्मचारी:हिमाचल प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों का बड़ा वर्ग है. इस समय 1.36 लाख कर्मचारी एनपीएस के तहत थे, जो अब ओपीएस के अंतर्गत आ जाएंगे. प्रदेश में सभी प्रकार के कर्मचारियों की संख्या 2 लाख के करीब है. इसके अलावा पेंशनर्स की संख्या पौने 2 लाख के करीब है. हिमाचल के बजट का अधिकांश हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च होता है. पहले ये खर्च 39.42 रुपए था. यानी 100 रुपए में से इस मद में करीब 40 रुपए खर्च होते थे. नए वेतन आयोग के लागू होने के बाद ये खर्च बढ़ गया है.
वेतन और पेंशन का खर्च बढ़ा:नए वेतन आयोग के लागू होने से पहले के आंकड़े देखें तो उनके अनुसार सरकारी कर्मियों के वेतन पर 100 रुपए में से 25.31 रुपए खर्च हो रहे थे. इसी तरह पेंशन पर 14.11 रुपए खर्च किए जा रहे हैं. इसके अलावा हिमाचल को ब्याज की अदायगी पर 10 रुपए, लोन की अदायगी पर 6.64 रुपए चुकाने पड़ रहे थे. इसके बाद सरकार के पास विकास के लिए महज 43.94 रुपए ही बचते हैं. अब यह परिस्थितियां और विकट हो गई हैं. कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च बढ़ गया है.
नए कर्ज के बाद 59 रुपए खर्च:वेतन, पेंशन, कर्ज और ब्याज पर 55 रुपए खर्च हो रहे हैं. ये रकम नए वेतनमान के बाद और नए कर्ज के बाद 59 रुपए के करीब पहुंच गई है. नियंत्रक व महालेखा परीक्षक यानी कैग हर बार हिमाचल प्रदेश को कर्ज के लिए सचेत करता है. कैग ने दशक भर पहले ये चेतावनी दे दी थी कि यदि आर्थिक प्रबंधन न किया गया तो हिमाचल दिवालिया हो जाएगा. इस बार विंटर सेशन में कैग की रिपोर्ट में कई चिंताजनक खुलासे हुए हैं. रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल में मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान राजस्व प्राप्तियां 37110.67 करोड़ रुपए रहने का अनुमान है.
राजकोषीय घाटा 1642.49 करोड़ तक पहुंच जाएगा:इसमें कर राजस्व के रूप में 11268.14 करोड़, गैर कर राजस्व के रूप में 2797.99 करोड़ रूपए, केंद्रीय करों में हिमाचल की हिस्सेदारी के तौर पर 18770.42 करोड़ के अलावा केंद्रीय अनुदान से 4274.4 करोड़ मिलने का अनुमान है. वहीं, केंद्र से जीएसटी मुआवजे के तौर पर राज्य को मिलने वाला हिस्सा जून 2022 से बंद हो गया है. इस कारण मौजूदा वित्त वर्ष में सरकार को जीएसटी कंपनसेशन के रूप में मिलने वाले 558.37 करोड़ रुपए का नुकसान होगा. वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद हिमाचल में पेंशनरों को एरियर के भुगतान पर सरकार को 1009.80 करोड़ का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ेगा. नियंत्रक महालेखा परीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इन मदों से प्रदेश का राजस्व घाटा 1456.32 करोड़ होगा. साथ ही राजकोषीय घाटा 1642.49 करोड़ तक पहुंच जाएगा. ये चिंताजनक स्थिति है.
हिमाचल में कर्मियों के वेतन पर सालाना खर्चा:आंकड़ों के अनुसार देखें तो कैग की रिपोर्ट बता रही है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में हिमाचल में कर्मियों के वेतन पर सालाना खर्चा 1125 करोड़ रुपए था. यह चालू वित्त वर्ष में 1329 करोड़ रुपए से अधिक है. वर्ष 2025-26 में सरकार को वेतन पर 1675 करोड़ रुपए सालाना खर्च करने होंगे. इसी तरह बीते साल पेंशन भुगतान पर 650 करोड़ रुपए खर्च हुए थे. इस साल 779 करोड़ रुपए से अधिक खर्च होने का अनुमान है. आगामी वर्ष में यह राशि करीब 850 करोड़ रुपए तथा वर्ष 2025-26 में 1008 करोड़ रुपए से अधिक हो जाएगी.
सब्सिडी पर 1256 करोड़ रुपए खर्च हो रहा:मौजूदा वित्त वर्ष में सरकार कर्ज पर ब्याज की अदायगी के तौर पर 5104 करोड़ रुपए खर्च कर रही है. आगामी वित्त वर्ष में यह खर्च 5400 करोड़ रुपए हो जाएगा. फिर वर्ष 2025-26 में ब्याज पर खर्च होने वाली राशि 6200 करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगी. सामाजिक सुरक्षा पेंशन पर मौजूदा वित्त वर्ष में करीब 1000 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं. वर्ष 2024-25 में यह राशि 1123 करोड़ रुपए तथा वर्ष 2025-26 में बढक़र 1190 करोड़ रुपए से अधिक होने का अनुमान लगाया गया है. मौजूदा वित्त वर्ष में सरकार सब्सिडी पर 1256 करोड़ रुपए खर्च कर रही है.
ओपीएस बहाली को बोझ संभालना मुश्किल होगा:वर्ष 2025-26 में उपदानों यानी सब्सिडी पर सरकार को करीब 1497 करोड़ रुपए खर्च करने होंगे. इससे साफ पता चलता है कि हिमाचल की आर्थिक स्थिति कितनी चिंताजनक है. ओपीएस बहाली का बोझ भी आने वाले समय में संभालना मुश्किल होगा. राज्य के पूर्व आर्थिक सलाहकार प्रदीप चौहान का मानना है कि हिमाचल को नए आर्थिक संसाधन जुटाने की सबसे अधिक जरूरत है. पर्यटन, कृषि व उर्जा के सेक्टर में नवीन उपाय खोजने होंगे. वरिष्ठ मीडिया कर्मी उदय सिंह का कहना है कि हिमाचल में मुफ्त बांटने का चलन आने वाले समय में घातक साबित होगा. फ्री बिजली देने की बजाय बिजली की दरें कम की जा सकती थीं.
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