शिमला: लोकसभा चुनाव 2019 के लिए मतदान संपन्न हो गया है. हिमाचल में रिकॉर्डतोड़ वोटिंग ने कई संकेत दिए हैं. इस चुनाव में हिमाचल के कई दिग्गज नेताओं की साख दांव पर लगी है. हालांकि बहुत से वरिष्ठ नेताओं ने चुनावी राजनीति से किनारा कर लिया है, लेकिन उनकी पार्टी के प्रत्याशी की जीत-हार से उनके राजनीतिक अनुभव को आंका जाएगा.
हॉट सीट मंडी में ये लोकसभा चुनाव 'तुंगल के शेर' कहे जाने वाले पंडित सुखराम के राजनीतिक सफर का इतिहास लिखेगा. केंद्र और प्रदेश की राजनीति में प्रभाव रखने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम ने इस बार कांग्रेस के टिकट से अपने पोते आश्रय शर्मा को लोकसभा चुनाव में उतारा.
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लोकसभा चुनाव में आश्रय की हार और जीत के साथ ही ये तय होगा कि दिग्गज नेता सुखराम के राजनीतिक सफर को स्वर्णिम जीत के साथ या हार के जख्म के साथ विराम लगता है.
प्रदेश समेत देश की राजनीति में सुखराम का प्रभाव रहा है. केंद्र सरकार में सुखराम मंत्री पद पर भी आसीन रहे हैं. प्रदेश और देश में संचार क्रांति के लिए भी इन्हें जाना जाता है. हालांकि केंद्र में दूरसंचार मंत्री रहते हुए सुखराम पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और सीबीआई द्वारा छापेमारी के दौरान उनके बंगले से करोड़ों रुपये बरामद किए गए. बाद में आरोप साबित होने पर उन्हें जेल भी जाना पड़ा.
सुखराम ने सदर विधानसभा क्षेत्र से 13 बार चुनाव लड़े और हर बार जीत हासिल की. इसके साथ ही उन्होंने लोकसभा के चुनाव भी लड़े और केंद्र में अलग-अलग मंत्री पद पर आसीन हुए. 1984 में सुखराम ने कांग्रेस के टिकट से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था और भारी बहुमत से जीत कर संसद पहुंचे.
1989 के लोकसभा चुनाव में सुखराम को हार का सामना करना पड़ा और भाजपा के महेश्वर सिंह जीतकर संसद पहुंचे. 1991 के लोकसभा चुनाव में सुखराम ने महेश्वर सिंह को हराकर संसद में कदम रखा. 1996 में सुखराम फिर से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे.