शिमला:प्रदेश भर के मुसाफिरों को उनके गणतव्य तक पहुंचने वाली एचआरटीसी की आर्थिकी खुद पटरी से उतरी हुई है. डीजल के बढ़ते दाम ने परिवहन निगम की परेशानियां और बढ़ा दी हैं.
70 प्रतिशत आय डीजल पर होती है खर्च
एचआरटीसी के प्रदेश भर में कुल 27 डिपो हैं. निगम की बसें एक महीने में करीब 1 करोड़ 90 लाख किलोमीटर का सफर तय करती हैं. पहाड़ी राज्य होने के कारण यहां सड़कें भी घुमावदार हैं जिसके कारण ईंधन की खपत प्लेन क्षेत्रों की तुलना में अधिक होती हैं. परिवहन निगम की बसों में हर महीने 50 से 55 लाख लीटर के करीब डीजल इस्तेमाल होता है. ऐसे में तेल के दामों में बढ़ोतरी का निगम की आर्थिकी पर असर खुद ही समझा जा सकता है.
हालांकि प्रदेश में निगम के अपने फिलिंग स्टेशन हैं. इस कारण तेल बाजार भाव से करीब डेढ़ से दो रुपये कम मिलता है. ताजा मार्केट भाव के अनुसार निगम को डीजल करीब 77 रुपये प्रति लीटर मिल रहा है. इस हिसाब से नगम की कुल आय का 70 प्रतिशत हिस्सा ईंधन की खरीद में ही चला जाता है.
इलेक्ट्रिकवाहनों का खर्चा डीजल से कम
शिमला के रीजनल मैनेजर के अनुसार मार्च महीने में डिपो की कुल आय 2 करोड़ 30 लाख रही. इसमें से लगभग 1 करोड़ 80 लाख रुपये का तेल खरीदना पड़ा. वहीं, शहर में 50 के करीब इलेक्ट्रिक बसें और 10 इलेक्ट्रिक कैब चलती हैं जिनका खर्च डीजल से चलने वाली गाड़ियों की तुलना में बहुत कम है. इलेक्ट्रिक बसों का खर्च डीजल बसों की तुलना में करीब 20 रुपये प्रति किलोमीटर कम पड़ता है. ऐसे में अगर प्रदेश सरकार भविष्य में इलेक्ट्रिक बसों के विस्तार पर ध्यान देती है तो डीजल के लगातार बढ़ते दामों से निगम पर पड़ने वाले अतिरिक्त बोझ को कम किया जा सकता है.
कर्मचारियों की तनख्वाह और पेंशन का भार
ईंधन के अलावा निगम पर दूसरा बड़ा आर्थिक बोझ कर्मचारियों की तनख्वाह और पेंशन है. वर्तमान में करीब 34 करोड़ रुपये निगम को हर महीने सैलरी के रूप में अदा करना होता है. इसके अलावा करीब 10 करोड़ रुपए पेंशन के रूप में चुकाए जाते हैं. कई बार तो कर्मचारियों को तनख्वाह और पेंशन के लिए लंबा इंतजार भी करना पड़ता है. ऐसे में निगम के कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित होती है.
निगम का तीसरा बड़ा खर्च रिपेयर मेंटेनेंस पर होता है. निगम के अपने वर्कशॉप हैं लेकिन डीजल गाड़ियों की मेंटेनेंस पर काफी खर्च होता है. अधिकतर गाड़ियां पुरानी होने के कारण समय-समय पर पार्ट्स चेंज करने पड़ते हैं. बड़ी संख्या में परिवहन निगम की गाड़ियां बाहरी राज्यों में भी जाती हैं. इसके लिए इंटर स्टेट टैक्स भी चुकाना पड़ता है.
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