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1946 की कहानी स्वतंत्रता सेनानी ज्ञान सिंह की जुबानी...

शिमला जिले के खनोला गांव के स्वतंत्रता सेनानी ज्ञान सिंह को राष्ट्रपति की तरफ से भेंट के तौर पर शॉल और अंगवस्त्र भेजे गए. अधिकारियों ने उन्हें घर जाकर सम्मानित किया. ज्ञान सिंह 1944 में इंडियन रॉयल नेवी में भर्ती हुए थे.

Story of 1946 by freedom fighter Gyan Singh
स्वतंत्रता सेनानी ज्ञान सिंह

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Published : Aug 13, 2020, 5:04 PM IST

रोहड़ू :देश को आजाद कराने में स्वतंत्रता सेनानियों की अहम भूमिका रही है. खनोला गांव के स्वतंत्रता सेनानी ज्ञान सिंह जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ हुए विद्रोह में शामिल होकर अहम किरदार निभाया था. स्वतंत्रता सेनानी ज्ञान सिंह को भारत छोड़ा आंदोलन की सालगिरह पर कुछ दिन पहले सम्मानित किया गया था. उन्हें राष्टपति की तरफ से शॉल और अंगवस्त्र सहित शुभकामना संदेश भेजा गया. इसके बाद अधिकारियों ने घर जाकर उन्हें सम्मानित किया. उन्हें यह सम्मान एसडीएम बीआर शर्मा ने भेंट किया.

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1944 में इंडियन रॉयल नेवी में भर्ती हुए

शिमला जिले के खनोला गांव में वर्ष 1928 में ज्ञान सिंह का जन्म हुआ था. उनकी शुरुआती शिक्षा गांव में हुई. इसके बाद रामपुर में रहकर उन्होंने शिक्षा हासिल की. वर्ष 1944 में वह इंडियन रॉयल नेवी में भर्ती हुए. 92 साल के हो जाने के बाद आज भी ज्ञान सिंह स्वस्थ हैं. उनको गुजरे जमाने की सारी बातें याद हैं. रोज घुमना और बिना चश्मे के अखबार पढ़कर देश-दुनिया का हाल जानना उनकी दिनचर्या में शामिल है. लोगों की मानें तो वे ज्ञान सिंह से मिलकर उर्जा महसूस करते हैं.

देश प्रेम की भावना होनी चाहिए

जानकारी के मुताबिक स्वतंत्रता सेनानी पुराने लकड़ी के तीन मंजिला मकान में रहते हैं. ज्ञान सिंह ने बताया कि देश प्रेम की भावना हर नागरिक में होना जरूरी है. उन्होंने बताया कि जब वह वर्ष 1946 में कराची में समुद्री पोत पर थे, तब वहां अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ विद्रोह हो गया. अग्रजों ने इस विद्रोह को कुचलने के लिए सेना को भेजना चाहा. जिस पर सेना के जवानों ने यह कह कर मना कर दिया कि ये सब हमारे भाई हैं.

अंग्रजों ने स्वतंत्रता सेनानियों की दमकारी नीतियों के खिलाफ प्रर्दशन की मांग ठुकरा दी. अगले दिन सुबह अंग्रेजों ने 15 हजार सैनिकों को बुलाकर हमला करा दिया. जिस पर दोनों तरफ भारी गोलीबारी हुई और स्वतंत्रता सेनानियों ने उस डिविजन को तबाह कर दिया. बाद में अंग्रेजों ने उन्हें कोर्ट मार्शल में नौकरी से निकाल दिया. सन 1972 में ज्ञान सिंह जी को पता चला की उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वतंत्रता सैनानी घोषित किया.

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