शिमला: हिमाचल किसान सभा के राज्य अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर ने कहा कि मौजूदा कृषि कानून किसानों और बागवानों के हित में नहीं है. शिमला में किसान सभा और वाम दलों के विरोध प्रदर्शन के बाद ईटीवी से बात करते हुए डॉ. तंवर ने कहा कि देश भर के किसान आंदोलित हैं.
हिमाचल में 80 फीसदी से अधिक आबादी गांव में रहती है और लोग कृषि बागवानी से जुड़े हैं. प्रदेश में अभी भी किसान सब्जी, मक्की व मसालों आदि उपज पर न्यूनतम समर्थन मूल्य हासिल नहीं कर पाए हैं.
किसान सभा के राज्य अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर कहते हैं कि कृषि कानून के खिलाफ पूरे देश का किसान इसके खिलाफ है. पिछले 13 दिन से किसान दिल्ली के बॉर्ड पर बैठा है. हिमाचल से भी तीन जत्थे शिमला, सोलन और सिरमौर से दिल्ली पहुंचे हैं. आज मंगलवार, को ऊना और बिलासपुर से भी किसान दिल्ली जा रहा है.
हिमाचल के किसानों में गुस्सा
किसान सभा के अध्यक्ष कहते हैं कि हिमाचल में बेमौसमी सब्जियां और फल पैदा करते हैं. अनाज जो पैदा करते हैं उसका अधिकतर इस्तेमाल हिमाचल के लोग खुद कर लेते हैं. जो हमारा सरप्लस है उसे लेकर लोगों में बेहद गुस्सा है.
हिमाचल के किसान जो धान और गेहूं पैदा करते हैं, विशेषकर पांवटा-हमीरपुर-ऊना-नालागढ़-कांगड़ा में उसे बेचने के लिए हिमाचल के किसान को या तो हरियाणा या उत्तराखंड की मंडियों में जाना पड़ता है. हिमाचल में ना तो राज्य सरकार का और ना ही केंद्र सरकार का एफसीआई (Food Corporation of India) का कोई प्रबंध नहीं है.
डॉ. केएस तंवर कहते हैं कि स्वामीनाथन कमेटी द्वारा दिए फार्मूले C2 लागत+50% के तहत 23 किस्म की उपज को जिसे सरकार को खरीदना था उसका हिमाचल में फायदा नहीं है.
पीएम मोदी ने दिया था हिमाचल के किसानों को MSP का आश्वासन
हिमाचल का किसान आंदोलित और आक्रोशित इसलिए है, क्योंकि 2014 के चुनाव से पहले जब नरेंद्र मोदी हिमाचल आए थे तो उन्होंने हिमाचल के किसानों को ये आश्वासन दिया था कि मैं हिमाचल के जो गरीब किसान है वो जो पैदावार करती है विशेष रूप से फल, फूल, सब्जियां, ऊना, शहद, दूध पर भी सरकार की ओर से एमएसपी उपल्बध करवाएंगे, लेकिन अब केंद्र में मोदी 2.0 सरकार है और पर कोई बात नहीं हो रही.
किसानों की और एक प्रमुख मांग है जो निरंतरता में चली है कि हिमाचल में हम जो भी पैदा करते हैं उसपर आधारित उद्योग लगें. इससे हिमाचल के नौजवान को रोजगार के लिए बाहर नहीं भटकना पड़ेगा. अगर इसमें वेल्यू एडिशन होगी तो इससे किसान को फायदा होगा सरकार को फायदा होगा.
हिमाचल में नहीं कोई प्रोसेसिंग प्लांट
इसमें भी सरकार ने आश्वासन के बावजूद कोई भी सब्जियों और फलों पर आधारित उद्योग नहीं लगा. पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय ने ये रिसर्च किया है कि मक्की पर आधारित 32 किस्म के उद्योग लग सकते हैं, लेकिन हिमाचल में हम आज तक देखते हैं कि मक्की का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 1850 है पर हिमाचल में किसान मजबूरी में इसे 800 से 1200 रुपये बेचता है, क्योंकि हिमाचल में इसका कोई प्रोसेसिंग प्लांट नहीं है.
किसानों की जो सरप्लस फसलें हैं उसके लिए वेयर हाउसिंग, कोल्ड स्टोरेज या सीए स्टोरेज की उपलब्धता होनी चाहिए, लेकिन इसका भी सरकार ने कोई प्रबंध नहीं किया है. जो किया है वो केवल प्राइवेट सेक्टर में किया है, जिसका आम किसान को कोई फायदा नहीं होता है.
हिमाचल में फल और सब्जियों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर केएस तंवर कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि जो सब्जी है फल है मसालें हैं उसपर ये नहीं मिल सकता है. आज हमारे देश के अंदर केरल में जो लेफ्ट की सरकार है उसके अंदर आज 16 सब्जियां-फल-मसालें हैं उनपर एमएसपी मिल रहा है, वो लागत मूल्य+20% मुनाफा है.
किसान हित में नहीं नए कृषि कानून- जीयानंद शर्मा
कृषि मामलों को जानकार जीयानंद शर्मा नए कृषि कानूनों पर कहते हैं कि ये किसानों के हित में बिल्कुल नहीं हैं. जिस तरह से सरकार इसे सुधार कानून कहकर जनता को बरगला रही है, ये इस तरह के नहीं है.
इसे सुधार कहना ठीक नहीं रहेगा. यह तो सरकार की ओर से एक बेहद लुभावना शब्द इस्तेमाल किया गया है, 1991 में जब से नव उदारवाद वाली नीति आई है. ये सुधार नहीं है बल्कि ये निजीकरणके पक्ष में ये सुधार है आम जनता के पक्ष में नहीं.
जीयानंद शर्मा कहते हैं कि आने वाले समय में अगर ये तीनों कानून पूरी तरह से कार्य करते हैं तो हिमाचल प्रदेश का किसान को बहुत छोटा है उसको बहुत ज्यादा नुकसान होने वाला है. बड़ा किसान तो फिर भी इसे किसी न किसी तरह से झेल पाएगा, लेकिन छोटा किसान पूरी तरह से खत्म हो जाएगा.