शिमला: साल 2018 में राजधानी शिमला में जल संकट की समस्या पैदा हो गई थी. उस समय स्थिति इतनी खराब हो चुकी थी कि शहर में बिना जल के नल, सड़क पर पानी के टैंकर और खाली बर्तनों के ढेर के साथ लोगों में पानी की होड़ मच गई थी.
लोगों को सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरना पड़ा. दूसरी ओर टूरिस्ट सीजन भी पीक पर था और होटल्स भी पानी की इस समस्या से अछूते नहीं थे. राजधानी में गहराए जल संकट का मुद्दा इतना ज्यादा गूंजा कि उस समय प्रदेश सरकार की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी फजीहत हुई. उस साल की यादें अब भी ताजा हैं, लेकिन सुकून इस बात का है कि वो वक्त बीत चुका है और अब पानी की कोई किल्लत नहीं है. राजधानी में इस कदर बिगड़ी स्थिति को सही करने के लिए सीएम जयराम ठाकुर ने खुद कमान संभाली.
कैसे बुझती थी शिमला की प्यास
ब्रिटिश काल में भी गुम्मा पेयजल परियोजना से पानी लिफ्ट किया जाता था. चैड़ और चुरुट पेयजल योजना भी उसी समय की हैं. 1990 में अश्विनी खड्ड परियोजना आई, उस समय प्रदेश में शांता कुमार की सरकार थी. शिमला को दस एमएलडी पानी मिलने लगा. साल 2005 तक सब कुछ ठीक चल रहा था. इसी बीच, साल 2005 में सिंचाई और जनस्वास्थ्य विभाग ने अश्विनी खड्ड पेयजल योजना के ठीक ऊपर मल्याणा में एसटीपी यानी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बना दिया जिससे अश्विनी खड्ड में सीवरेज का पानी मिलने लगा.
इसका परिणाम ये हुआ कि सबसे पहले जनवरी 2007 में पीलिया फैला. उस समय शिमला में डेढ़ हजार से ज्यादा लोग पीलिया का शिकार हुए. दिसंबर 2015 में तो पीलिया ने इस कदर भीषण रूप धारण किया कि 32 लोगों की मौत हो गई. पीलिया शिमला से सोलन तक फैल गया.
साल 2016 में ही अश्विनी खड्ड पेयजल योजना को बंद करवा दिया था. इस तरह शिमला को उक्त योजना से मिलने वाला दस एमएलडी पानी भी बंद हो गया जिस कारण पानी के अचानक बंद होने से शहर में जलसंकट पैदा होना शुरू हुआ. लेकिन इसके कुछ समय बाद अश्विनी खड्ड पेयजल योजना में ट्रीटमेंट प्लांट को ठीक कर दोबारा इसे शुरू कर दिया गया.
जलसंकट पर सियासत
2018 के जल संकट ने दुनियाभर की मीडिया और सोशल मीडिया में सुर्खियां बटोरी थीं. जल संकट के कारण सैलानियों से शिमला ना जाने की अपील की गई थी. सरकार सवालों में थी और सियासत भी जमकर हुई. पानी की किल्लत और फिर वितरण का जायजा लेने के लिए आईपीएच मंत्री महेंद्र ठाकुर भी सड़कों पर उतरे. वहीं, शिमला से विधायक और कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज उस जल संकट का कुछ ठीकरा पिछली सरकार पर भी फोड़ते हैं.
शहर में गहराए संकट को दूर करने के लिए लंबी बैठकों और मंथन के बाद सरकार ने इस मुश्किल से पार पाने का हल खोज लिया था, जिसके लिए अब सरकार के नुमाइंदे अपनी पीठ थपथपाते नहीं थकते हैं.