शिमला: लोकसभा चुनाव 2019 के लिए हिमाचल के वोटर्स तैयार हैं और सरकार के पिछले 5 सालों के काम कसौटी पर कसे जाएंगे. चुनावी वादों को अमलीजामा पहनाया गया या नहीं इस पर जनता ने विचार कर रही है. अकसर देखा जाता है कि चुनाव के दौरान जितनी आसानी से लोगों के साथ विकास के वादे किए जाते हैं उनको जमीनी स्तर पर उतारने के लिए बाद में उतनी ही परेशानियां दिखाई जाती है.
प्रदेश की चार लोकसभा सीटों में से शिमला संसदीय सीट आरक्षित है. इस सीट पर भाजपा के वीरेंद्र कश्यप लगातार दो बार जीत चुके हैं. इस बार भाजपा ने उनका टिकट काट कर सुरेश कश्यप को टिकट दिया है. हालांकि वीरेंद्र कश्यप ये दावा करते रहे हैं कि उनके 10 साल के कार्यकाल में क्षेत्र में विकास के नए आयाम स्थापित किए गए हैं. लेकिन जनता की कुछ ऐसी मांगें थी जिन्हें सांसद पूरा नहीं कर पाए.
शिमला संसदीय सीट पर पिछले 5 साल में कुछ ऐसे मुद्दे रहे जिसके लिए लोग सड़कों पर उतरे और अभी तक लोगों की मांग पूरी नहीं हो पाई है.
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दशकों से पूरी नहीं हुई गिरीपार की मांग
करीब 52 सालों से सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र को जनजातीय दर्जा नहीं मिला है. सिरमौर की करीब 132 पंचायतों की करीब पौने 3 लाख आबादी दशकों से इस मुद्दे के लिए संघर्ष कर रही है, लेकिन बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दल इस मुद्दे को पूरा करवाने में असफल साबित हुए है. वहीं लाखों हाटियों की इस मुख्य मांग को पूरा करवाने के लिए संघर्ष में जुटी हाटी समीति भी इस चुनाव में अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं है.
लोकसभा चुनाव 2019 के आते ही कांग्रेस-बीजेपी दोनों ही दल इस अहम मुद्दे को फिर से भुनाने में जुट गए है. हाटियों को पिछले 5 दशक से केवल आश्वासन ही मिल पाया है. केंद्र में मोदी सरकार के कार्यकाल में भी हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने का मुद्दा पीएम मोदी तक भी पहुंचा, लेकिन आज तक कुछ नहीं बना.
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मांगों को लेकर सड़कों पर उतरे किसान-बागवान
हिमाचल प्रदेश की कुल आबादी का अस्सी फीसदी किसान-बागवान हैं. शिमला संसदीय क्षेत्र के अधिकतर लोगों की आर्थिकी का सबसे बड़ा साधन कृषि और बागवानी है. किसानों-बागवानों की सबसे बड़ी मांग स्वामीनाथन कमीशन के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य की है. कमीशन के अनुसार किसानों को उत्पादन लागत का पचास फीसदी अधिक मूल्य दिया जाए. ये मांग अधूरी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 से पूर्व हिमाचल में हुई चुनावी रैलियों में कहा था कि यहां के किसानों को उनके स्थानीय उत्पादन जैसे शहद, दूध, सेब, ऊन आदि का भी समर्थन मूल्य दिया जाएगा. ये नहीं मिला है.