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ऐसे ठिकाने लगता है कोरोना का मेडिकल वेस्ट, देखिए ETV भारत की ग्राउंड रिपोर्ट - health news himachal

प्रदेश के बड़े अस्पतालों में से एक इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के प्रबंधन ने बताया कि कोरोना मरीजों के कचरे के निपटारे के लिए केंद्र सरकार और राज्य प्रदूषण नियंत्रण के दिशा निर्देशों का पालन किया जा रहा है. अस्पताल में आइसोलेशन वार्ड और क्वारंटाइन सेंटरों से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट के निस्तारण की गाइडलाइन के अनुसार ही काम किया जा रहा है.

Disposal of Medical Waste at IGMC hospital
संक्रमण संकट से कैसे निपटते हैं हॉस्पिटल

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Published : Apr 17, 2020, 8:12 PM IST

शिमला:अस्पतालों में भर्ती कोरोना मरीजों के कचरे का सही तरीके से निपटारा भी एक बहुत बड़ी चुनौती है. प्रदेश में 3 जोनल अस्पताल, 12 रीजनल अस्पताल और 6 मेडिकल कॉलेज अस्पताल हैं. जिनमें से कोविड 19 के अधिकतर मरीज मेडिकल कॉलेजों में ही उपचारित हैं. प्रदेश के बड़े अस्पतालों में से एक इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के प्रबंधन ने बताया कि कोरोना मरीजों के कचरे के निपटारे के लिए केंद्र सरकार और राज्य प्रदूषण नियंत्रण के दिशा निर्देशों का ध्यान रखा जाता है. अस्पताल में करीब 235 सफाई कर्मचारी काम करते हैं, जिनको अलग-अलग यूनिट में बांटा गया है और उसी अनुसार स्वास्थ्य सुरक्षा का समान दिया गया है.

आईजीएमसी के एमएस डॉक्टर जनक ने बताया कि कोरोना मरीजों के रखे जाने वाले आइसोलेशन वार्ड और क्वावरंटाइन सेंटर्स से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट के निस्तारण की गाइड लाइन के अनुसार ही काम किया जा रहा है. जहां कोरोना मरीज होता है, वहां वार्ड में विशेष टीम की ड्यूटी होती है. टीम के सभी सदस्यों का पीपीई किट पहनना अनिवार्य होता है.

वीडियो रिपोर्ट

राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के निर्देशों के अनुसार वार्ड में ही कचरे को अलग- अलग रंग के लिफाफा में डाला जाता है. यह लिफाफे दोहरी लेयर के होते हैं. जिसके बाद इनको पैक कर दिया जाता है और बैग के बाहर करोना वेस्ट का स्टिकर लगाया जाता है ताकि जो भी व्यक्ति आगे इनको छुए वह पूरी सावधानी बरतें. इन लिफाफे को सील करने के बाद दूसरे सफाई कर्मचारी इन्हें उठाकर कचरा घर तक पहुंचाते हैं और इन्हें रंगों के हिसाब से अलग-अलग रखा जाता है.

जिसके बाद विशेष कचरा वाहन इन्हें प्लांट तक पहुंचाता है. यहां सुपरवाइजर की मौजूदगी में इसे सोडियम हाइड्रोक्लोराइड और अन्य केमिकल के घोल में 1 घंटे तक रखा जाता है. जिसके बाद आगे का निपटारा किया जाता है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वार्ड में इन लिफाफा को सील कर दिया जाता है. जिसके बाद कोई भी व्यक्ति इनको नहीं खोल सकता, केवल केमिकल के घोल में से निकालने के बाद ही इसे खोला जाता है.

सफाई कर्मचारियों की एजेंसी के सुपरवाइजर गौरव ठाकुर ने कहा की कर्मचारियों को टीपीई किट सहित सभी सुरक्षा उपकरण दिए गए हैं. कलेक्शन के बाद सीधा कचरे को एजेंसी अपने प्लांट में ले जाती है. उस बैग को खोला नहीं जाता है सिर्फ वजन और केंद्र का नाम दर्ज करके उसे इंसुलेटर में डाल दिया जाता है.

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