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SPECIAL: बाल, सखा, प्रेमी या ज्ञानी किस रूप में कान्हा लगते हैं आपको अच्छे

भगवान श्रीकृष्ण को एक रूप में बांधना मुश्किल है. वृंदावन के प्रसिद्ध भागवताचार्य आचार्य बद्रीनाथ कहते हैं कि व्यक्ति जिस तरह ईश्वर की शरण में जाता है, भगवान उसी प्रकार कृपा करते हैं.

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Published : Aug 23, 2019, 7:45 AM IST

शिमला/मथुरा: श्रीकृष्ण, जिन्होंने बाल रूप में हमारे अंदर वात्सल्य भरा, सखा रूप में हमें मित्रता सिखाई, पुत्र रूप में ममता और प्रेमी के रूप में प्रेम. कृष्ण वो हैं, जिन्हें कई रूपों में हम पूजते आए हैं. वृंदावन के प्रसिद्ध भागवताचार्य आचार्य बद्रीनाथ कहते हैं कि व्यक्ति जिस तरह ईश्वर की शरण में जाता है, भगवान उसी प्रकार कृपा करते हैं.

भगवान श्रीकृष्ण ने अलग-अलग रूपों में सब को दर्शन दिए. भागवताचार्य आचार्य बद्रीनाथ ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण को एक रूप में बांधना मुश्किल है. वे कहते हैं कि 16 कलाओं से युक्त कृष्ण के हर रूप में रस है. जो अलग-अलग काल में बरसता गया.

जन्माष्टमी स्पेशल.

बालकृष्ण में क्या रस था
सबसे पहले बात कान्हा के सबसे मोहक बाल रूप की. आचार्य बद्रीनाथ ने बताया कि कान्हा ने बाल रूप में रास किया. वे यह भी कहते हैं कि भगवान को 9 साल से बड़ा नहीं बताना चाहिए. वे कहते हैं जहां सारे रस इकट्ठा हो जाएं, उसे रास कहते हैं. भगवान ने बाल्यकाल में माता-पिता को वात्सल्य रस प्रदान किया. सखाओं को मित्र रस दिया. गाय और ग्वाल वालों से अधिक प्रेम करते थे तो उनको प्रेम रस प्रदान किया.

कृष्ण, सखा रूप में कैसे थे-

  • प्रसिद्ध आचार्य बद्री नाथ ने बताया कि कृष्ण का अर्थ मन मोह, मदनमोहन, मन को मोह लेना कामधेनु की तरह से प्रसन्न रहना. सारे संसार को त्रिलोक को मोहित करना. गोपी ब्रज वासियों के साथ बालक के रूप में कृष्ण भगवान रासलीला करते नजर आते.
  • कृष्ण अपनी मित्रता के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते. सुदामा और अर्जुन इसका उदाहरण हैं. बाल रूप की बात करें तो ग्वालों के साथ कान्हा खेलते थे. एक बार कृष्ण ने जोर से गेंद मारी, जो यमुना में चली गई. ग्वालों ने श्रीकृष्ण से गेंद लाने को कहा. जिसके बाद गोपाल की यमुना में गेंद खोजने और शेषनाग का फन कुचलने की कहानी हम सब जानते हैं. भगवान कृष्ण ने शेषनाग के फन पर बैठकर अपना अपली रूप दिखाया.
  • बाल मित्र सुदामा के लिए तो कृष्ण ने दो लोक ही दान कर दिए. अर्जुन को गीता का उपदेश देकर तार दिया. महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथी बन भगवान कृष्ण ने विजय दिला दी. ये विजय बल नहीं श्रीकृष्ण की नीति की थी.

प्रेमी कृष्ण राधा के साथ दास में उनकी लीला

  • आचार्य बद्री नाथ ने कहा कि कृष्ण का नाम राधा के बिन अधूरा है. जैसे सीता के साथ राम की जोड़ी, शिव के साथ पार्वती और विष्णु के साथ लक्ष्मी का नाम आता है, वैसे ही राधा के बिन कृष्ण का नाम नहीं जपा जाता. आचार्य बताते हैं रुक्मणी श्रीकृष्ण की रानी थी लेकिन नाम उनका राधा के साथ लिया जाता है.
  • वे कहते हैं कि क्या कारण है केवल राधा के साथ ही कृष्ण का नाम आता है. आचार्य बताते हैं कि इस अटूट और निश्छल प्रेम में दूर-दूर तक वासना नहीं थी. राधा और कृष्ण का प्रेम वासना से कोसों दूर था. शायद यही वजह है कि आज भी जब प्रेम की बात होती है तो राधा-कृष्ण की जोड़ी सबसे पहले याद आती है.

समाज सुधारक कृष्ण के बारे में-

  • आचार्य बद्रीनाथ ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कठिन परिस्थितियों में हुआ. उस समय मथुरा नरेश कंस का साम्राज्य और कुशासन था. समाज की विचारधाराओं को दबा कर रख रखा था. कृष्ण के माता-पिता को कैद कर दिया गया, उनके भाइयों को मामा कंस ने मार डाला.
  • श्रीकृष्ण को पैदा होने के बाद ग्वालों के पास भेजा गया. गांववालों के साथ उनकी परवरिश हुई. श्रीकृष्ण ने ऐसा समाज को शिक्षित किया जहां समान विचारधारा हो. कंस की विशाल सेना सशक्त सेना थी उन सब को रोकने के लिए ब्रजवासियों को प्रशिक्षण किया, जिसमें गोपियां भी शामिल थीं. कृष्ण ने बताया कि अपनी क्षमता से कैसे सशक्त दुश्मनों को हराया जा सकता है.
  • श्रीकृष्ण ने गीता में जो उपदेश दिया, वो हमें जीवन के हर पथ पर सीख देता है. सुख और दुख में समान रहने की शक्ति और नीतियों पर चलना सिखाता है. कर्म पर भरोसा करना सिखाता है, दूसरों का अच्छा करना सिखाता है. गीता के रूप में श्रीकृष्ण दुनिया के हर कोने में विद्यमान हैं, उन्होंने गीता में सिर्फ उपदेश नहीं बल्कि जीवन दर्शन को प्रस्तुत किया है.
  • आप जिस रूप में चाहें कान्हा, कृष्ण, मदनमोहन, देवकीनंदन को मना लें.

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