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हर कदम बिखरा के अपना खून, अपनी बोटियां, जब शहीदों ने बचाई कारगिल की चोटियां

कारगिल युद्ध में हिमाचल के 52 सपूतों ने बलिदान रूपी अमृत चखा था. दुनिया के युद्ध इतिहास में भारतीय सेना के शौर्य से लिखी गई कारगिल गाथा बेमिसाल है. आज ही के दिन इस युद्ध में अहम जीत मिली थी. तोलोलिंग पर कब्जे के साथ ही नापाक दुश्मन को धूल में मिलाने की शुरुआत हुई थी. आगे की पंक्तियों में भारतीय सेना से जुड़े हिमाचल के रणबांकुरों को याद करेंगे.

Kargil War Memorial Special, कारगिल युद्ध स्मृति विशेष
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Published : Jun 13, 2021, 3:21 PM IST

Updated : Jun 13, 2021, 7:19 PM IST

शिमला:विजय या वीरगति ये जोशीला नारा 13 जून 1999 को सार्थक हुआ. कारगिल युद्ध में नापाक दुश्मन को धूल चटा कर तोलोलिंग की चोटी पर भारतीय सेना के शौर्य का परचम लहराया था. इस जीत के नायकों में से प्रमुख हिमाचल के वीर ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर थे. कारगिल युद्ध में हिमाचल के वीर सपूतों की बहादुरी के अनमोल किस्से सृजित किए थे. कैप्टन विक्रम बत्रा, राइफलमैन संजय कुमार जैसे परमवीर, ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर जैसे रणनीतिकार, यशवंत सिंह जैसे युवा बलिदानी सदा के लिए शौर्य के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो गए.

भारतीय सेना के बलिदान और समर्पण की कहानी

कारगिल युद्ध में हिमाचल के 52 सपूतों ने बलिदान रूपी अमृत चखा था. दुनिया के युद्ध इतिहास में भारतीय सेना के शौर्य से लिखी गई कारगिल गाथा बेमिसाल है. इतनी ऊंचाई पर बैठे दुश्मन को खदेड़ना और कारगिल की चोटियों को उनसे मुक्त करवाना कठिनतम चुनौती थी, लेकिन वो चुनौतियां ही क्या जिन्हें भारतीय सेना परास्त न कर सके. हिमाचल के विख्यात शायर अमर सिंह फिगार की पंक्तियां भारतीय सेना के बलिदान और समर्पण की कहानी कहती हैं.

फिगार साहिब की पंक्तियां हैं-
हर कदम बिखरा के अपना खून, अपनी बोटियां
जब शहीदों ने बचाई कारगिल की चोटियां

आज ही के दिन इस युद्ध में अहम जीत मिली थी. तोलोलिंग पर कब्जे के साथ ही नापाक दुश्मन को धूल में मिलाने की शुरुआत हुई थी. आगे की पंक्तियों में भारतीय सेना से जुड़े हिमाचल के रणबांकुरों को याद करेंगे. दो दशक पहले शिमला के रिज मैदान पर हजारों की भीड़ के बावजूद गहरी खामोशी छाई थी. कारगिल युद्ध चल रहा था. दुश्मन देश के नापाक सैनिक चोटियों पर थे और भारत के बहादुर वीर उन्हें सबक सिखा रहे थे.

हिमाचल के दो शूरवीरों को मिला परमवीर चक्र

शिमला जिला के जांबाज यशवंत सिंह रणभूमि में भारत मां पर कुर्बान हुए थे. उनका पवित्र पार्थिव शरीर शिमला के रिज मैदान पर देशवासियों के दर्शन के लिए रखा था. हजारों की भीड़ नम आंखों से खामोश होकर अपने वीर सपूत का अंतिम दर्शन करने के लिए कतार में खड़ी थी. भारत की बहादुर सेना ने 26 जुलाई को कारगिल की सभी चोटियां दुश्मन से आजाद करवा ली थी. इस युद्ध में हिमाचल के दो शूरवीरों कैप्टन विक्रम बत्रा और राइफलमैन संजय कुमार को परमवीर चक्र मिला.

बत्रा की बेमिसाल बहादुरी से थर्राया पाकिस्तान

विक्रम बत्रा तो देश पर कुर्बान होकर अमिट सितारे बन गए. राइफलमैन संजय कुमार (अब सूबेदार मेजर) देशवासियों को कारगिल युद्ध की गाथा सुनाने के लिए हम सबके बीच मौजूद हैं. इसी युद्ध में हिमाचल के 52 जांबाजों ने अपने प्राण मातृभूमि की सेवा में अर्पित किए थे. महान योद्धा कैप्टन विक्रम बत्रा की बेमिसाल बहादुरी से पाकिस्तान थर्रा गया था. देशवासी कारगिल विजय दिवस पर हमेशा यही के लिए जीवित होते.

हिमाचल के सपूतों ने लिखी कारगिल की शौर्य गाथा

देवभूमि के दूसरे शूरवीर राइफलमैन संजय अब सूबेदार मेजर हैं. कारगिल युद्ध में हिमाचल के 52 सपूत शहीद हुए थे. शिमला, बिलासपुर, हमीरपुर, सोलन, कांगड़ा आदि जिलों के जांबाज सैनिकों ने बेमिसाल शौर्य गाथा लिखी थी. दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र में चोटी पर बैठे दुश्मन सैनिकों को भारतीय सेना ने बुरी तरह से खदेड़ा था. कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी व शौर्य से पाकिस्तान की सेना में खौफ था. दुश्मन सैनिक उन्हें शेरशाह के नाम से पुकारते थे.

विक्रम बत्रा ने दिया दिल मांगे मोर का नारा

अहम चोटियों पर तिरंगा लहराने के बाद विक्रम बत्रा ने आराम की परवाह भी नहीं की और जो नारा बुलंद किया, वो इतिहास बन गया है. विक्रम बत्रा का ये दिल मांगे मोर, नारा सैनिकों में जोश भर देता था. कैप्टन बत्रा भारतीय सेना के ताज में जड़े बेमिसाल हीरों में से एक हैं. हिमाचल में कांगड़ा जिला के पालमपुर के गांव घुग्गर में 9 सितंबर 1974 को उनका जन्म हुआ था. वर्ष 1996 में वे मिलेट्री अकादमी देहरादून के लिए सिलेक्ट हुए. कमीशन हासिल करने के बाद उनकी तैनाती 13 जैक राइफल में हुई.

जून 1999 में छिड़ा कारगिल युद्ध

ऑपरेशन विजय के तहत विक्रम बत्रा भी मोर्चे पर पहुंचे. उनकी डैल्टा कंपनी को पॉइंट 5140 को कैप्चर करने का आदेश मिला. दुश्मन सेना के ध्वस्त करते हुए विक्रम बत्रा और उनके साथियों ने पॉइंट 5140 की चोटी को कब्जे में कर लिया. विक्रम ने युद्ध के दौरान कई दुस्साहसिक फैसले लिए. जुलाई 1999 की 7 तारीख थी. कई दिनों से मोर्चे पर डटे विक्रम को उनके ऑफिसर्स ने आराम करने की सलाह दी थी, जिसे वे नजर अंदाज करते रहे. इसी दिन वे पॉइंट 4875 पर युद्ध के दौरान शहादत को चूम गए, लेकिन इससे पहले वे भारतीय सेना के समक्ष आने वाले सारे अवरोध दूर कर चुके थे. युद्ध के दौरान उनका नारा ये दिल मांगे मोर था, जिसे उन्होंने सच कर दिखाया.

यूनिवर्सल मशीनगन छोड़ कर भागे थे पाकिस्तानी

वहीं, बिलासपुर जिला के बकैण गांव के संजय कुमार ने भी कारगिल युद्ध में अदम्य शौर्य दिखाया. कारगिल की पॉइंट 4875 चोटी पर पाकिस्तान ने भारतीय सेना के इस योद्धा का साहस देखा. संजय का सामना पाकिस्तानी सैनिकों की ऑटोमैटिक मशीनगन से हो गया था. संजय कुमार ने निहत्थे ही उनकी मशीनगन ध्वस्त कर सैनिकों को मार गिराया था. संजय के साहस से घबराए पाकिस्तानी सैनिक अपनी यूनिवर्सल मशीनगन छोड़ कर भाग गए थे. 13 जैक राइफल के संजय कुमार को इस शौर्य के लिए परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया था.

संजय कुमार 3 मार्च 1976 को बिलासपुर के बकैण गांव में जन्मे थे. वे आरंभ से ही भारतीय सेना का हिस्सा बनना चाहते थे. संजय कुमार अभी भी भारतीय सेना में सेवाएं दे रहे हैं. वे कई संस्थानों में जाकर कारगिल युद्ध के संस्मरण सुना चुके हैं.

देवभूमि के 52 सपूतों ने देश के लिए दी कुर्बानी

इन दोनों के अलावा कारगिल युद्ध में हिमाचल से संबंध रखने वाले सैनिकों व अफसरों की अहम भूमिका रही है. उनमें ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर का भी नाम है. वे कारगिर हीरो के रूप में चर्चित हैं और वर्तमान में भूतपूर्व सैनिक कल्याण निगम के अध्यक्ष हैं. वहीं, शिमला जिला से पहले शहीद यशवंत सिंह थे. शहादत का जाम पीकर जब यशवंत सिंह की पार्थिव देह शिमला के रिज मैदान पर दर्शनों के लिए रखी गई थी, उस समय रिज मैदान पर हजारों की संख्या में नम आंखों ने उन्हें विदाई दी थी. उस दिन रिज मैदान पर तिल धरने को जगह नहीं थी. यशवंत सिंह के साथ देवभूमि के 52 सपूतों ने देश के लिए कुर्बानी दी थी. प्रदेश के हर कोने से कोई न कोई युवा देश के लिए कुर्बान हुआ था.

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Last Updated : Jun 13, 2021, 7:19 PM IST

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