शिमला: हम एक वोट से देश की दशा और दिशा को खुद तय करते हैं. इसलिए किस पर उंगली ऊठाने की जगह खुद की जिम्मेदारी तय करें. आपके एक वोट की कीमत क्या है इसे पहचाने. शायद कुछ लोगों को मालूम नहीं होगा कि आपके एक वोट की कीमत क्या है. मात्र एक वोट के ही अंतर से कोई सत्ता पर काबिज हुआ तो किसी के हाथ से सत्ता छिन्न गई है. नजदीकी मुकाबले में एक वोट की कीमत कैसे लाखों वोट के बराबर हो जाती है. देखिए हमारी इस रिपोर्ट में.
साल 1998 के आम चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. गठबंधन से एनडीए ने केंद्र में पहली बार सरकार बनाई थी. 13 महीनों के बाद ही अप्रैल 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार संकट से घिर गई. कारण था तमिलनाडू की तत्कालीन सीएम जयललिता. जयललिता की पार्टी AIDMK ने NDA से नाता तोड़ लिया था. अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार को सदन में विश्वास मत हासिल करना था. सरकार के अल्पमत में आने के बाद राष्ट्रपति ने सरकार को अपना बहुमत साबित करने के लिए बुलाया. 17 अप्रैल 1999 को जब लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई, सरकार एक वोट से हार गई और सरकार गिर गई.
उस दौरान ये कहा गया कि उस समय ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री गिरधर गमांग ने सरकार के खिलाफ वोट दिया था. वह ठीक दो माह पहले, 18 फरवरी को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके थे, लेकिन उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा नहीं दिया था. ऐसे में उनके पास लोकसभा सदस्यता होने के कारण उन्हें संसद में वोट देने का अधिकार था.
सीपी जोशी एक वोट से मिली हार के कारण नहीं बन पाए थे सीएम
चुनाव में हार-जीत चलती रहती है, लेकिन हार मात्र एक वोट से मिले तो ये हार हमेशा जख्मों पर नमक छिड़कती है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सीपी जोशी का भी नाम शुमार है. वह भी महज एक वोट से विधायक बनने से चूक गए थे. 2008 में हुए राजस्थान विधानसभा चुनाव में वह अपनी किस्मत आजमा रहे थे. सीपी जोशी के पास उस समय मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे, लेकिन वो एक वोट से चुनाव हार गए. उनकी मां, पत्नी और चालक ने ही मतदान नहीं किया था. इन सब ने मतदान किया होता तो जोशी आसानी से चुनाव जीत जाते.
अहमद पटेल
2017 में गुजरात की तीन राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव हुआ था. एक सीट पर कांग्रेस की ओर से अहमद पटेल लड़ रहे थे. कांग्रेस के ही दो विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर दी थी जिससे अहमद पटेल की जीत मुश्किल हो गई थी. क्रॉस वोटिंग करने वाले दो एमएलए यह भूल गए थे कि वे वोट करते वक्त भी कांग्रेस के सदस्य थे और वे पोलिंग बूथ पर खड़े होकर अपनी बदली हुई वफादारी का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं कर सकते. इससे उनके वोट रद्द हो गए जिससे जीतने के लिए वोटों की संख्या 43.5 हो गई. अहमद पटेल को 44 वोट मिले थे, इस तरह वह आधे वोट से जीत गए और राज्यसभा के लिए टिकट कटवा लिया.
अपने ड्राइवर के वोट से मिल सकती थी जीत
2004 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जेडीएस की टिकट पर चुनाव लड़ रहे एआर कृष्णामूर्ति भी सिर्फ एक वोट से हार गए थे. उनके प्रतिद्वंद्वी धुरवनारायण ने उन्हें एक मत से हराया था. कृष्णामूर्ति को 40,751 और धुखनारायण को 40, 752 मत प्राप्त हुए थे. ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने ड्राइवर को वोट देने से रोक दिया था. ड्राइवर ने वोट किया होता तो जीत शायद उनकी झोली में होती.
कंजरवेटिव हेनरी ड्यूक
ब्रिटेन के इतिहास में कंजरवेटिव हेनरी ड्यूक ने सबसे कम मार्जिन से जीत हासिल की थी. शुरूआत में सेंट मौर कॉमन्स आगे चल रहे थे, लेकिन अंतिम परिणाम में हेनरी ड्यूक को 4777 और कॉमन्स को 4776 वोट मिले और कंजरवेटिव एक वोट से हेनरी ड्यूक चुनाव में विजयी रहे.
रदरफोर्ड बी हेंस
1876 में राष्ट्रपति पद के चुनाव में हेस और टिल्डेन दो उम्मीदवार खड़े हुए थे. शुरुआती चुनाव में टिल्डेन 2,50,000 के वोटों के अंतर से पॉप्यूलर जीत गए थे, लेकिन इलेक्टोरल वोट की गिनती हुई तो हेस को 185 और टिल्डेन को 184 वोट मिले. जिससे हेस ने राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता. वह अमेरिका के 19वें राष्ट्रपति बने थे.
फ्रांस में राजशाही खत्म
लोकतंत्र पाने के लिए संघर्षों की तमाम गाथाएं इतिहास में दर्ज हैं. लोकतंत्र की स्थापना के लिए लोगों ने राजशाही के खिलाफ लंबी लड़ाईयां लड़ी. फ्रांस में राजशाही के खिलाफ जनता ने मोर्चा खोल रखा था. 1875 में जनमत के जरिए फ्रांस का भविष्य तय करने का फैसला लिया गया. परिणाम आने पर एक वोट से नेपोलियन राजशाही की वापसी का फैसला खारिज हुआ और लोकतंत्र बरकरार रहा. एक वोट की जीत से फ्रांस में सत्ता का स्वरूप ही बदल दिया.