शिमला: सेब और हिमाचल आज एक सिक्के के दो पहलू हैं. सेब की बदौलत ही हिमाचल के बागवानों की चांदी हुई है. आज प्रदेश की जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा इसी सेब की बदौलत आता है. यही वजह है कि बीते कुछ दशकों में सेब के उत्पादन के प्रति बागवानों का रुझान बढ़ा है. ठियोग के विनोद चौहान की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.
विनोद चौहान पिछले करीब 3 दशक से सेब उगा रहे हैं. सेब के साथ ऐसी शिद्दत से जुड़े कि दिन दुगुनी और रात चौगुनी तरक्की हुई. बच्चों की पढ़ाई से लेकर घर और गाड़ी तक, सब कुछ सेब की बदौलत पाया. पहले कोटगढ़ में बगीचा बनाया. कारोबार फला फूला तो ठियोग तक जा पहुंचे.
नौकरी छोड़ पिता का हाथ बंटा रहे सुहैल चौहान को भी लगता है कि आजकल पढ़े लिखे युवा नौकरी से महरूम हैं. डिग्री लेने पर भी नौकरी नहीं मिलती,ऐसे में सेब का सौदागर बनना फायदे का सौदा है.