शिमला: लगातार दो बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले रामस्वरूप शर्मा की सबसे बड़ी पूंजी उनकी सादगी थी. आरएसएस में सक्रिय रहते हुए उन्होंने खामोशी से काम करना सीखा था. नाम व शोहरत से बेपरवाह रामस्वरूप चुपचाप संगठन को सींचते रहने में विश्वास रखते थे. यही कारण था कि वे अपने इर्द-गिर्द किसी भी तरह के तामझाम को रखने से बचते थे. उनकी इस नेचर का प्रमाण अकसर मिल जाया करता था. संगठन के काम से जब रामस्वरूप शर्मा को चुनावी राजनीति में आने का अवसर मिला तो भी वे जमीन पर पांव रखकर चले.
मंडी से 2014 में उन्होंने पहला चुनाव लड़ा. चुनावी रण में उतरने से पहले वे मंडी के विख्यात टारना माता मंदिर में आशीष लेने के लिए गए थे. मंदिर से वापस लौटते समय वे अकेले ही थे और जब वे सीढ़ियां उतर रहे थे तो नीचे से वीरभद्र सिंह, उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह व कार्यकर्ताओं की भीड़ टारना मां के मंदिर जाने के लिए आगे बढ़ रही थी. रामस्वरूप शर्मा को उस समय कम ही लोग पहचानते थे. रामस्वरूप शर्मा ने वीरभद्र सिंह व प्रतिभा सिंह का अभिवादन किया और कहा कि वे मंडी से चुनाव लड़ रहे हैं. इस बात का जिक्र रामस्वरूप शर्मा ने कई बार किया था.
कबड्डी के नेशनल खिलाड़ी थे रामस्वरूप शर्मा
रामस्वरूप शर्मा जमीन से जुड़े थे और जमीन से जुड़े खेल कबड्डी के भी माहिर थे. उन्होंने कबड्डी में नेशनल खेला था. जीवन के विभिन्न अनुभव उनके खाते में दर्ज थे. उन्होंने एनएचपीसी में क्लर्की भी की. संगठन के कार्य से वे प्रदेश के हर हिस्से में गए और संवाद की परंपरा को समृद्ध किया. उनकी संगठन क्षमता का लोह सभी मानते थे. यही कारण है कि उन्हें अभी भी हिमाचल में कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण का जिम्मा दिया गया था. हिमाचल भाजपा कार्यकर्ता प्रशिक्षण के प्रभारी भी वहीं थे.
रामस्वरूप शर्मा दो दफा जिला मंडी भाजपा के महामंत्री रहे. फिर छह साल तक हिमाचल के संगठन महामंत्री रहे. दो बार वे हिमाचल भाजपा के वाइस प्रेसीडेंट भी रहे. उनकी सादगी का आलम ये था कि कोई सहयोगी आसपास न हो तो वे खुद ही खाना बना लेते. संगठन के कार्य से किसी जगह जाते तो खाने की पोटली भी साथ ही रखते. सांसद बनने के बाद भी उनकी ये आदत बरकरार रही.