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पुलिस विभाग में एक करोड़ का शू-स्कैम: विजिलेंस जांच से संतुष्ट नहीं अदालत, दोबारा इन्वेस्टीगेशन के आदेश

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Published : Feb 19, 2020, 10:34 PM IST

मौजूदा समय में डीजी जेल सोमेश गोयल, पूर्व में हिमाचल के डीजीपी रहे डीएस मन्हास सहित कुछ अन्य अफसरों को परेशानी झेलनी होगी. उल्लेखनीय है कि पुलिस विभाग में नौ साल पूर्व जवानों के लिए जूते खरीदे गए थे. एक करोड़ रुपए की खरीद की गुणवत्ता अच्छी नहीं थी. जूते घटिया क्वालिटी के थे.

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कॉन्सेप्ट फोटो.

शिमला: हिमाचल पुलिस विभाग में नौ साल पूर्व हुए एक करोड़ के शू-स्कैम की नए सिरे से जांच होगी. स्टेट विजिलेंस एंड एंटी करप्शन ब्यूरो की इस केस में कैंसिलेशन रिपोर्ट को अदालत ने नकार दिया है. जिला शिमला की स्थानीय अदालत ने विजिलेंस की रिपोर्ट से संतुष्ट न होने पर फिर से जांच के आदेश जारी किए. स्थानीय अदालत के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विशाल कौंडल की अदालत ने इस केस में जांच के लिए कहा है.

अदालत विजिलेंस की कैंसिलेशन रिपोर्ट में दिए गए तथ्यों से संतुष्ट नहीं हुई. जूता घोटाले में विजिलेंस ने क्या जांच की और नतीजा क्या निकला, इस पर कोई प्रकाश नहीं डाला गया है. अब अदालत के आदेश पर नए सिरे से जांच होने पर कई बड़े पुलिस अफसरों की मुश्किलें बढ़ेंगी.

मौजूदा समय में डीजी जेल सोमेश गोयल, पूर्व में हिमाचल के डीजीपी रहे डीएस मन्हास सहित कुछ अन्य अफसरों को परेशानी झेलनी होगी. उल्लेखनीय है कि पुलिस विभाग में नौ साल पूर्व जवानों के लिए जूते खरीदे गए थे. एक करोड़ रुपए की खरीद की गुणवत्ता अच्छी नहीं थी. जूते घटिया क्वालिटी के थे. वर्ष 2010 में एक करोड़ रुपए से अधिक की रकम खर्च कर जूते खरीदे गए थे. पुलिस जवानों को दिए जाने के कुछ समय बाद जूते फटने लगे. हिमाचल प्रदेश पुलिस कल्याण संघ ने मामला उठाया. उस समय भाजपा सरकार सत्ता में थी.

विपक्षी दल कांग्रेस ने चुनाव में इस मामले को अपनी चार्जशीट में भी शामिल किया था. विधानसभा में भी मामला गूंजा था. खरीद के लिए तीन कंपनियों ने टेंडर भरे थे. इनमें से दो कंपनियां बाहर की थीं. बाद में तकनीकी आधार पर दो कंपनियां टेंडर प्रक्रिया के लायक नहीं थी, फिर भी उन्हीं से खरीद की गई.

शिकायत के बाद मामला विजिलेंस को सौंपा गया. विजिलेंस जांच में डीएस मन्हास सहित सोमेश गोयल व आईपीएस अफसर एसपीएस वर्मा के खिलाफ आरोप तय कर दिसंबर 2013 को सरकार को भेजा गया. मन्हास तब हिमाचल के डीजीपी थे और सोमेश गोयल एडीजी रैंक के अफसर थे. करीब चार साल बाद यानी 6 मई 2017 को केस में नया मोड़ आया. प्रधान सचिव विजिलेंस ने सूचित किया कि उक्त तीनों के खिलाफ विभागीय एक्शन लेने के लिए मामला प्रशासनिक सचिव को सौंपा गया है.

फिर मार्च 2017 में प्रशासनिक सचिव ने सोमेश गोयल के खिलाफ चार्जशीट ड्रॉप कर दी. वहीं, तत्कालीन डीजीपी डीएस मन्हास के खिलाफ विभागीय जांच की अनुमति फरवरी 2015 को मांगी गई. इस केस में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार की तरफ से इस संबंध में एक्शन के लिए भेजे गए प्रस्ताव को मंजूर नहीं किया. वहीं, एक अन्य आईपीएस अफसर एसपीएस वर्मा के खिलाफ विभागीय प्रोसीडिंग शुरू करने के लिए अप्रैल 2014 में मामला गृह मंत्रालय को भेजा गया था.

भी तक केंद्र से इस बारे में कोई सूचना नहीं है. मामले में जांच एजेंसी विजिलेंस ने शिमला की स्थानीय अदालत ने सितंबर 2019 में स्टेट्स रिपोर्ट सौंपी. चूंकि सोमेश गोयल व एसपीएस वर्मा के खिलाफ जांच किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची थी, लिहाजा अदालत ने स्टेट्स रिपोर्ट स्वीकार नहीं की. पूरे मामले में सबसे दिलचस्प बात ये रही कि जांच के दायरे में जो अफसर थे, वे महकमे में टॉप पोजीशन पर थे. यानी डीजीपी मन्हास, एडीजी सोमेश गोयल आदि, लेकिन जांच का जिम्मा डीएसपी रैंक के अफसर को दिया गया.

इस केस में सबसे बड़ा सवालिया निशान यही था. फिलहाल, विजिलेंस जांच में कोई निष्कर्ष नहीं निकला और अदालत ने भी जांच एजेंसी की कैंसिलेशन रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया. अब अदालत ने केस की नए सिरे से जांच को कहा है, देखना है कि ये मामला अंजाम तक पहुंचेगा या फाइलों में ही खो जाएगा.

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