शिमला: राजधानी में ब्रिटिश हुकूमत के दौर के कनलोग कब्रिस्तान में अतिक्रमण से जुड़े मामले में रिपोर्ट सौंप दी गई है. हाईकोर्ट ने इस मामले में रिपोर्ट तलब की थी. जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने विरासत स्थल कनलोग कब्रिस्तान से जुड़ी ये रिपोर्ट अदालत में सबमिट की है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने अब मामले की सुनवाई 30 जून को निर्धारित की है.
कनलोग में ब्रिटिश हुकूमत के समय का कब्रिस्तान है. यहां सबसे पुरानी कब्र वर्ष 1850 की है. शहर के नागरिक शिवेंद्र सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर अतिक्रमण की शिकायत करते हुए उसे हटाने का आग्रह किया था. हाईकोर्ट ने याचिका पर संज्ञान लिया और कनलोग कब्रिस्तान में किसी भी निर्माण कार्य कर रोक लगा दी. हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि कनलोग में विरासत स्थल पर कार पार्किंग नहीं की जा सकेगी और न ही निजी तथा धार्मिक कार्यक्रम होंगे.
कनलोग कब्रिस्तान शिमला के दक्षिण-पूर्व में स्थित है. यह देश के सबसे पुराने कब्रिस्तानों में से एक है. यहां सबसे पुरानी कब्र वर्ष 1850 की है. ईसाइयों और पारसियों के अंतिम विश्राम स्थलों का आवास यह स्थल राष्ट्रीय महत्व रखता है. यह इतिहास में कई महत्वपूर्ण हस्तियों की यादें संजोए हुए है. यह कब्रिस्तान स्थानीय समुदाय, पर्यटकों और आने वाली पीढिय़ों के लिए एक प्रमुख विरासत है. प्रार्थियों के अनुसार जिन लोगों ने इस कब्रिस्तान के रखरखाव की जिम्मेदारी संभाली है, वे इसके संरक्षण के प्रयासों की जगह निजी हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं. बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण ने कब्रिस्तान के मूल स्वरूप को बिगाड़ दिया है.
कब्रिस्तान में बेतरतीब बनाए गए शेड देखने में भद्दे लगते हैं. यहां पचास से अधिक लोगों के लिए कई निजी आवास बना दिए गए. जगह-जगह पानी की टंकियां रखी गई हैं और यहां तक कि ग्रीन जोन पर अतिक्रमण कर पार्किंग बना दी गई है. रात के समय चुपके से भारी मशीनरी का उपयोग करके कब्र के ऊपर एक सड़क बनाई जा रही है. यहां दो सौ साल से अधिक पुरानी कब्रें तो पहले से ही उखाड़ दी गई है. इसके अतिरिक्त कब्रिस्तान के हरे भरे स्थान के भीतर पादरी के निजी वाहन के लिए पार्किंग बनाई गई है. हाईकोर्ट ने इन सब पहलुओं पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से रिपोर्ट मांगी थी. अब मामले में अगली सुनवाई 30 जून को होगी.
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