शिमला:देवभूमि हिमाचल में धार्मिक डेरे खूब ताकत रखते हैं. ये ताकत बेशकीमती जमीन के रूप में है. छोटे से पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में वैसे भी जमीन की उपलब्धता कम है, परंतु धार्मिक संस्थाओं के पास हजारों बीघा जमीन है. इस जमीन की कीमत अरबों रुपए हैं. ये धार्मिक संस्थाएं इतनी ताकतवर हैं कि सरकार को भी झुकाने की कोशिश करती हैं. कारण ये है कि इन संस्थाओं के हिमाचल में लाखों श्रद्धालु हैं. ये बड़ा वोट बैंक है. हरियाणा व पंजाब में धार्मिक डेरों से होने वाली वोट अपील के बारे में सब जानते हैं. हिमाचल में भी ये धार्मिक संस्थाएं प्रभावशाली हैं. हिमाचल में इनके इंट्रस्ट और हैं. ये इंट्रस्ट यहां की बेशकीमती जमीन के लालच का है.
दरअसल, हिमाचल प्रदेश में बाहर का कोई भी व्यक्ति जमीन नहीं खरीद सकता. डेरों को ये जमीन दान में मिली हैं. हिमाचल प्रदेश में लैंड सीलिंग एक्ट मौजूद है. इस एक्ट में ये प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति अथवा संस्था 150 बीघा से अधिक जमीन की मालिक नहीं हो सकती. लेकिन इस एक्ट में राधास्वामी सत्संग ब्यास व चाय बागानों को छूट मिली हुई है. इसी छूट का लाभ उठाकर राधास्वामी सत्संग ब्यास अपने पास मौजूद सरप्लस जमीन को बेचने की अनुमति चाहता है. ये अनुमति सरकार को देनी है, लेकिन संवेदनशील मामला होने के कारण कोई भी सरकार अपने हाथ नहीं जलाना चाहती. ये अलग बात है कि समय-समय पर डेरों के दबाव में सरकार कुछ न कुछ प्रयास शुरू करती है, लेकिन ऐन मौके पर जनता के दबाव और डर से पीछे हट जाती है. हाल ही में भी कैबिनेट मीटिंग में एक प्रस्ताव आया था. ये सरप्लस जमीन से जुड़ा था, परंतु कैबिनेट में कुछ मंत्रियों के विरोध के कारण मुहिम सिरे नहीं चढ़ी.
पहले भी मचा है शोर
कुछ समय पहले जयराम सरकार के कार्यकाल में ही राधास्वामी सतसंग ब्यास ने अपनी होल्डिंग की सरप्लस जमीन बेचने की अनुमति मांगी थी. तब उस घटनाक्रम को लेकर हिमाचल में सियासत गर्म हो गई थी. कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह ने चेताया था कि कांग्रेस ऐसे किसी भी कदम का विरोध करेगी. उनके बयान पर तब भाजपा ने पलटवार किया था और कहा है कि ऐसा कहने से पहले विक्रमादित्य सिंह को कांग्रेस का इतिहास देखना चाहिए. खैर, ये सियासत के खेल हैं, परंतु इस खेल में ग्राउंड हिमाचल की बेशकीमती जमीन बनती है. मामला समझने के लिए आगे दर्ज किए जा रहे तथ्यों पर गौर करना पड़ेगा.
बात वर्ष 2017 की है. राधास्वामी सतसंग ब्यास ने वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन हिमाचल सरकार को आवेदन कर कहा कि उनके पास जरूरत से अधिक जमीन हो गई है, लिहाजा उन्हें जमीन बेचने की अनुमति दी जाए. भू-सुधार कानूनों में छूट लेकर दान में मिली और नाममात्र दाम चुका कर खरीदी गई जमीन को राधास्वामी सतसंग ब्यास का प्रबंधन बेचने की जुगत कर रहा था. उसके बाद एक अन्य धार्मिक संस्था निरंकारी सतसंग को भी लगा कि वो भी बहती गंगा में हाथ धो ले. उसी दौरान निरंकारी मिशन प्रबंधन ने भी हिमाचल सरकार ने किसान का दर्जा मांग लिया.
निरंकारी मिशन ने सरकार से मांगा था कृषक का दर्जा
निरंकारी मिशन ने कहा है कि राधास्वामी सतसंग ब्यास की तरह उसे भी हिमाचल में कृषक का दर्जा दिया जाए. यदि मिशन को किसान का दर्जा मिलता है तो वो हिमाचल में जितनी चाहे, उतनी जमीन खरीदने का हकदार हो जाएगा. हालांकि ये दर्जा हासिल करने के लिए मिशन को कैबिनेट की मंजूरी चाहिए थी. हिमाचल में फिलहाल कृषक का दर्जा हासिल करने वाले अधिकतम 150 बीघा जमीन रख सकते हैं. लेकिन धार्मिक संस्थाओं व लोकसेवा के काम करने वाले चैरिटेबल ट्रस्ट 150 बीघा की लैंड सीलिंग एक्ट से बाहर हैं.
धारा-118 से छेड़छाड़ करने से बचती है सरकार
हिमाचल में राधास्वामी सतसंग ब्यास को भी लैंड सीलिंग एक्ट से बाहर किया हुआ है. ऐसे में ब्यास डेरा राज्य में जितनी चाहे उतनी जमीन खरीद सकता है. इसी को देखते हुए निरंकारी मिशन भी पहले किसान का दर्जा चाहता है और फिर वो भी प्रदेश में जितनी चाहे उतनी जमीन खरीद सकेगा. कृषक का दर्जा हासिल करने के बाद मिशन भूमि सुधार कानून की धारा-118 से मुक्त हो जाएगा और जमीन खरीद का रास्ता खुल जाएगा. किसान का ये स्टेट्स मिलने से निरंकारी मिशन भी राधास्वामी सतसंग ब्यास की तरह टैनेंसी एंड लैंड रिफार्म एक्ट की धारा 118 से मुक्त हो जाएगा. हालांकि अभी निरंकारी मिशन की ये कवायद सिरे नहीं चढ़ी है. कारण ये है कि कोई भी सरकार हिमाचल में जमीन से संबंधित धारा-118 व लैंड सीलिंग एक्ट को छेड़ने की जुर्रत करने से पहले सौ बार सोचती है.
बेशकीमती जमीन का लालच, धर्मगुरू बने किसान
हिमाचल की बेशकीमती जमीन के लालच में धर्मगुरू किसान बन गए हैं. धार्मिक संस्थाओं को सरकार ने कृषक कैटेगरी में डाला है. इसी का फायदा उठाकर धार्मिक संस्थाएं हजारों बीघा जमीन दान में लेती आई हैं. प्रदेश में इस समय दस हजार बीघा जमीन पर धार्मिक गुरुओं की संस्थाओं का कब्जा है, यानी वे दस हजार बीघा जमीन के मालिक हैं. अकेले राधास्वामी सतसंग ब्यास के पास छह हजार बीघा जमीन है.
पहले धूमल सरकार ने की थी डेरा ब्यास पर मेहरबानी
हिमाचल में जब प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे, तब डेरा ब्यास पर मेहरबानी की गई. तत्कालीन सरकार ने लैंड सीलिंग एक्ट 1972 में सशर्त संशोधन किया था. उस संशोधन के जरिए राधास्वामी सतसंग ब्यास को लैंड सीलिंग एक्ट से बाहर कर दिया था. लैंड सीलिंग एक्ट का प्रावधान है कि उसके तहत किसी के पास भी 150 बीघा से अधिक जमीन नहीं हो सकती. लैंड सीलिंग एक्ट से इस समय हिमाचल में दो कैटेगरी बाहर हैं. एक चाय बागान व दूसरे राधास्वामी सतसंग ब्यास. डेरा ब्यास से लैंड सीलिंग एक्ट के हटते ही उसके पास अधिकतम जमीन की कोई सीमा नहीं रही. उसके बाद से डेरा ब्यास हिमाचल में छह हजार बीघा से अधिक जमीन का मालिक है.
पहले भाजपा और फिर कांग्रेस सरकार की बारी