शिमला: हिमाचल प्रदेश में मतगणना के बाद नई सरकार का चेहरा साफ हो जाएगा. नतीजों से पहले आए एग्जिट पोल में ज्यादातर में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली है. हालांकि कांग्रेस का दावा है कि हिमाचल में कांग्रेस की सरकार बनना तय है. लेकिन सवाल है कि अगर कांग्रेस चुनाव जीतती है तो मुख्यमंत्री कौन होगा ? ये सवाल इसलिये क्योंकि कांग्रेस ने हिमाचल में सीएम फेस तय नहीं किया और 6 बार के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह का निधन हो चुका है.
प्रियंका गांधी तय करेंगी मुख्यमंत्री-दरअसल हिमाचल प्रदेश में अगर कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई तो इस बार राहुल गांधी, सोनिया गांधी या कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के सीएम फेस का फैसला नहीं करेंगे. हिमाचल में कांग्रेस का चेहरा कौन होगा, ये इस बार प्रियंका गांधी तय करेंगी.
प्रियंका ने प्रचार में बहाया पसीना- हिमाचल में चुनाव प्रचार के दौरान ना तो राहुल गांधी नजर आए और ना ही सोनिया गांधी. स्टार प्रचारकों के नाम पर कांग्रेस के लिए प्रियंका गांधी ने अकेले मोर्चा संभाले रखा. इस बार हिमाचल में प्रचार के दौरान प्रियंका गांधी ने हिमाचल की जनता और यहां के राजनीतिक माहौल को नजदीक से परखा है. साथ ही राज्य के कांग्रेस नेताओं की कमिटमेंट और सिंसियरिटी को भी तौला है. चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस को मिले समर्थन के बाद प्रियंका वाड्रा को भी आस बंधी है कि पार्टी हिमाचल में सत्ता में वापिसी करेगी. इसलिये प्रियंका गांधी की सक्रियता के कारण ये तय है कि अगले मुख्यमंत्री की फाइल पर प्रियंका गांधी के ही दस्तखत होंगे. मुख्यमंत्री के चेहरे के लिए प्रियंका गांधी का एक फॉर्मूला भी है जिसमें फिट होने वाला ही सीएम की कुर्सी पर बैठेगा. (congress chief ministerial face hp) (congress cm face himachal) (himachal pradesh election)
कांग्रेस के सीएम फेस का बायोडेटा- हिमाचल में चुनावी नतीजों से पहले ही कांग्रेस नेताओं में सीएम की कुर्सी को लेकर बेचैनी और बयानबाजी देखी गई, उससे प्रियंका वाड्रा नाराज थीं. उन्होंने लॉबिंग के लिए दिल्ली की दौड़ लगाने वाले नेताओं को सख्त लहजे में संकेत दिया कि सीएम की कुर्सी उसी को मिलेगी, जो तय फार्मूले में फिट बैठेगा. बताया जा रहा है कि प्रियंका ने प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ व काबिल नेताओं का एक ओवरऑल बायोडाटा तैयार करवाया है. इसमें सीनियरिटी, एक्सेबिलिटी, पॉपुलैरिटी, लॉयलिटी एंड एक्सपीरियंस जैसे फैक्टर शामिल किए गए हैं. इसके अलावा पांच साल में विपक्ष में रहते हुए पार्टी के लिए किए गए कार्य और सक्रियता को भी पैमाना बनाया गया है.