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आयोग ने तीन विश्वविद्यालयों के चांसलर किए तलब, चितकारा विवि के कुलपति का इस्तीफा

हिमाचल प्रदेश निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग की ओर से प्रदेश के तीन निजी विवि के चांसलरों से आयोग के आदेशों की अनुपालना ना करने को लेकर जवाब मागा हैं. इन विवि के कुलपतियों को आयोग ने अयोग्य करार दिया था और पद से हटाने के निर्देश जारी किए थे .

हिमाचल प्रदेश निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग
हिमाचल प्रदेश निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग

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Published : Jan 5, 2021, 11:36 AM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग की ओर से प्रदेश के तीन निजी विवि के चांसलरों से आयोग के आदेशों की अनुपालना ना करने को लेकर जवाब तलब किया गया है. इन तीन विवि के कुलपतियों को आयोग ने अयोग्य करार दिया था और पद से हटाने के निर्देश जारी किए थे.

निर्देश के बावजूद कोई कार्रवाई और जवाब इन विश्वविद्यालयों की ओर से आयोग को नहीं आया है. जिस पर आयोग ने अब एक सप्ताह के अंदर मामले में जवाब उक्त विश्वविद्यालयों के चांसलरों से मांगा हैं.

चितकारा यूनिवर्सिटी के कुलपति ने दिया इस्तीफा

इन तीन निजी विश्वविद्यालयों में इंडस, आईसीएफएआई और एपीजी शिमला यूनिवर्सिटी शामिल हैं, जबकि एक अन्य विवि चितकारा के कुलपति ने खुद ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया है.

निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग की ओर से इन तीन विश्वविद्यालय के चांसलर को 11 ओर 12 जनवरी को आयोग कार्यालय में बुलाया गया है. यहां उन्हें आयोग के समक्ष यह बताना होगा कि उन्होंने आदेशों की अनुपालना क्यों नहीं की और अयोग्य कुलपतियों को पदों से क्यों नहीं हटाया गया.

जवाब नहीं देने की स्थिति में कड़ी कार्रवाई करेगा आयोग

आयोग की ओर से अभी कोई बड़ी कार्रवाई इन विश्व विद्यालयों पर ना करते हुए उन्हें जवाब देने के लिए समय दिया गया है. अगर इसके बाद भी यह विवि आयोग के आदेशों की अनुपालना नहीं करते हैं तो आयोग इन पर कड़ी कार्रवाई करेगा.

बता दें कि जिन 10 निजी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को आयोग ने अयोग्य करार दिया था उसमें से चार कुलपतियों ने अपने पद से खुद इस्तीफा दे दिया है, जबकि दो को पदों से हटा दिया गया है. वहीं, आईसीएफएआई विवि के कुलपति ने अयोग्यता के फैसले पर दोबारा रिव्यू मांगा है.

आयोग ने कुलपति को सभी आवश्यक दस्तावेजों सहित बुलाया है. इस से पहले भी सात कुलपतियों ने अपनी योग्यता पर उठे सवालों की दोबारा जांच मांगी थी, जिसमें सात कुलपति दोबारा से अयोग्य पाए गए थे.

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