शिमला. पहाड़ की सत्ता की जिम्मेदारी राजपूतों के कंधों पर है. पहाड़ी राज्यों में भाई-भाई कहलाने वाले हिमाचल और उत्तराखंड (Uttarakhand) की सत्ता की कमान राजपूतों के हाथ में है. उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और हिमाचल के सीएम जयराम ठाकुर राजपूत परिवार से हैं. हिमाचल में तो मुख्यमंत्री के अलावा कई ताकतवर कैबिनेट मंत्री ठाकुर हैं. हिमाचल प्रदेश विकास के मामले में उत्तराखंड से आगे है.
यहां कुल 68 विधानसभा सीटें हैं और वर्ष 2017 के चुनाव में जनरल कैटेगरी वाली 48 सीटों पर 33 विधायक राजपूत हैं. उत्तराखंड के नए सीएम के राजपूत समुदाय से आने के बाद ये जानना दिलचस्प रहेगा कि पहाड़ की सियासत में ठाकुरों के दबदबे का क्या समीकरण है. इससे पहले भी उत्तराखंड में सीएम के तौर पर तीर्थ सिंह रावत, त्रिवेंद्र सिंह रावत राजपूत समुदाय से ही संबंध रखने वाले थे.
हिमाचल प्रदेश के 12 जिलों में 68 विधानसभा क्षेत्र और 4 संसदीय क्षेत्र हैं. यहां 17 सीटें एससी, 3 सीटें एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा 48 सीटें ओपन कैटेगिरी में आती हैं. 2017 के विधानसभा चुनावों में 48 सामान्य सीटों पर 33 विधायक राजपूत चुन कर आए हैं.
इनमें से भाजपा के 18, कांग्रेस के 12, दो आजाद उम्मीदवार प्रकाश सिंह राणा और होशियार सिंह, सीपीआईएम के राकेश सिंघा विधानसभा पहुंचे. सदन में राजपूत विधायकों की संख्या करीब 50 प्रतिशत है.
कैबिनेट में भी राजपूतों की धमक
हिमाचल प्रदेश की जयराम सरकार में राजपूत मंत्रियों की धमक है. खुद सीएम जयराम ठाकुर राजपूत परिवार से हैं. उनकी कैबिनेट के सबसे ताकतवर मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर भी राजपूत हैं. इसके अलावा कैबिनेट में बिक्रम सिंह ठाकुर, शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर, वन मंत्री राकेश पठानिया हैं.
2011 की जनगणना के अनुसार हिमाचल की आबादी 68 लाख 56 हजार 509 है. शेड्यूल कास्ट की आबादी 17 लाख 29 हजार 252( 25.22 प्रतिशत) एसटी 3 लाख 92 हजार 126 (5. 71 परसेंट) ओबीसी 9 लाख 27 हजार 452 (13.52 प्रतिशत) स्वर्ण 50.72 प्रतिशत और अल्पसंख्यक 4.83 प्रतिशत हैं. स्वर्ण जातियों में राजपूत 32.72 प्रतिशत, ब्राह्मण 18 प्रतिशत हैं.
हिमाचल के छह में से पांच सीएम ठाकुर
हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में अब तक छह नेताओं ने मुख्यमंत्री का पद संभाला है. इनमें से पांच सीएम राजपूत परिवार से संबंध रखते हैं. प्रदेश के पहले सीएम और हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार, रामलाल ठाकुर, वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल व अब जयराम ठाकुर, ये सभी राजपूत समुदाय (Rajput community) से आते हैं.
वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) कुल छह बार सीएम रहे हैं. इसी तरह प्रेम कुमार धूमल दो बार, रामलाल ठाकुर भी दो बार और शांता कुमार बतौर ब्राह्मण नेता दो बार सीएम रहे. पूर्व में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती और कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष कुलदीप राठौर राजपूत समुदाय से हैं. अलबत्ता इस समय भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष जरूर एससी वर्ग से हैं.
सुरेश कश्यप अनुसूचित जाति से हैं. जनसंख्या को देखते हुए राजपूत और एससी समुदाय के बाद ब्राह्मण समुदाय भी हिमाचल की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका हैं. ब्राह्मण समाज (Brahmin Society) ने प्रदेश को कई कद्दवार नेता दिए.
कांगड़ा से शांता कुमार दो दफा प्रदेश के सीएम बने. पंडित सुखराम वीरभद्र सिंह के सियासी दांव में उलझ कर मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए. इसके अलावा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी ब्राह्मण समाज से हैं. वहीं, उत्तराखंड की सियासत में देखें तो वहां भी राजपूतों व ब्राह्मण नेताओं की अधिक तूती बोलती है.
हिमाचल की सियासत के दमदार ठाकुर
हिमाचल प्रदेश की सियासत की बात करें तो यहां राजपूतों का आरंभ से ही दबदबा है. बड़े नेताओं में डॉ. वाईएस परमार, वीरभद्र सिंह, रामलाल ठाकुर, प्रेम कुमार धूमल, कर्म सिंह ठाकुर, ठाकुर जगदेव चंद, जयराम ठाकुर, अनुराग ठाकुर, जेबीएल खाची, कौल सिंह ठाकुर, गुलाब सिंह ठाकुर, महेश्वर सिंह, गंगा सिंह ठाकुर, महेंद्र सिंह ठाकुर, कुंजलाल ठाकुर, गोविंद सिंह ठाकुर, मेजर विजय सिंह मनकोटिया, प्रतिभा सिंह, स्व. सुजान सिंह पठानिया, गुमान सिंह ठाकुर, हर्षवर्धन सिंह, रामलाल ठाकुर, सुखविंद्र सिंह ठाकुर का नाम शामिल है. भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही राजपूत नेताओं की धमक रही है.
ये भी पढ़ें-उत्तराखंड में सीएम का इस्तीफा, अब हिमाचल में भी होगा इसका असर: राठौर