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भाजपा का दावा हमने खत्म किया तेरी टोपी, मेरी टोपी का रिवाज, ऐसी है हिमाचल में टोपियों की राजनीति

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Published : Nov 6, 2022, 2:08 PM IST

Updated : Nov 6, 2022, 2:46 PM IST

हिमाचल में टोपी की सियासत और हिमाचल की राजनीति में क्षेत्रवाद हमेशा से रहा है. हिमाचल की सियासत में टोपी के क्या मायने हैं और आखिर क्षेत्रवाद को लेकर किस तरह की राजनीति हिमाचल में होती है, इस आर्टिकल के माध्यम से आपको बताएंगे....(Politics on Himachali Cap) (Topi politics in himachal) (Upper and Lower Himachal Politics)

हिमाचल में टोपियों और क्षेत्रवाद की राजनीति
हिमाचल में टोपियों और क्षेत्रवाद की राजनीति

शिमला:'अब हरी टोपी भी हमारी है और लाल टोपी भी', 'अब ऊपर का हिमाचल भी बीजेपी का है और नीचे का भी'. ये दो बयान इन दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह हिमाचल में अपनी चुनावी जनसभाओं में दोहराते हैं. दरअसल टोपियों का रंग और ऊपरी-निचला क्षेत्र हिमाचल की सियासत का हिस्सा रहे हैं. उसी पर निशाना साधते हुए अमित शाह पूर्व की कांग्रेस सरकारों पर निशाना साधते हैं लेकिन प्रदेश के सियासी इतिहास के इन किस्सों का हिस्सा बीजेपी भी रही है. (Politics on Himachal Cap) (Topi politics in himachal) (Upper and Lower Himachal Politics)

हिमाचली टोपी की सियासत- हिमाचल के राजनेताओं की बात करें तो सिर पर हरी और मैरून टोपी वाले चेहरे आंखों के सामने तैर जाते हैं. प्रदेश के सबसे कद्दावर नेता स्व. वीरभद्र सिंह हरी टोपी के साथ नजर आते थे तो प्रेम कुमार धूमल की पहचान मैरून कलर की टोपी थी. सत्ता बदलते ही राज्य सचिवालय शिमला सहित सत्ता के गलियारों में टोपियों का रंग भी बदल जाता था. 1985 के बाद से कोई सियासी दल सत्ता में रिपीट नहीं हो पाया. ऐसे में हर 5 साल में सत्ता कांग्रेस और बीजेपी के पाले में आती-जाती रही और टोपियों का रंग भी बदलता रहा.

प्रेम कुमार धूमल और स्वर्गीय वीरभद्र सिंह

कांग्रेस और बीजेपी की टोपियों का रंग- इस तरह मैरून टोपी बीजेपी और हरी टोपी कांग्रेस की पहचान बन गई. वीरभद्र सिंह के कार्यकाल में बुशहरी टोपी का बोलबाला होता था, वो हरे रंग वाली किन्नौरी टोपी ज्यादा पहनते थे तो प्रेम कुमार धूमल के समय मैरून कलर की हिमाचली टोपी दिखती थी कांग्रेस और भाजपा के समर्थक टोपियों के कारण आसानी से पहचान में आ जाते थे. सत्ता परिवर्तन के साथ ही यहां टोपियों का रंग भी बदल जाता था. सत्ताधारी दल के साथ निष्ठा जताते हुए बहुत से लोग उसी रंग की टोपी पहन लेते थे.

अपर हिमाचल और लोअर हिमाचल- हिमाचल की राजनीति में क्षेत्रवाद सिर्फ हिमाचल के ऊपरी यानी पहाड़ी और निचला यानी मैदानी इलाके के रूप में रहा. दरअसल 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद वहां के कुछ इलाके हिमाचल में मिलाए गए. ये इलाके नया हिमाचल कहलाया जिनमें आज का कांगड़ा, ऊना और हमीरपुर जिला शामिल है. ये वो इलाके हैं जो या तो पूरी तरह मैदानी हैं या फिर अर्ध पहाड़ी, जबकि पहले से हिमाचल का हिस्सा रहे महासू यानी आज का शिमला जिला पूरी तरह से पहाड़ी है. एक नजर में ये भौगोलिक बंटवारा कहा जा सकता है. बोली, लोक कलाओं और खान-पान के लिहाज से भी इसे वाजिब कहा जा सकता है लेकिन हिमाचल की राजनीति में क्षेत्रवाद की सबसे बड़ी पहचान बन गया. (Upper and Lower Himachal Politics)

फोटो.

वैसे तो हिमाचल में शिमला और कांगड़ा जिला ही इस क्षेत्रवाद के दो सबसे बड़ा हिस्सा रहे हैं. जिन्हें पहाड़ी और कांगड़ी कहकर संबोधित किया जाता रहा है लेकिन राजनीति की बदौलत इस क्षेत्रवाद की चादर पूरे प्रदेश पर ओढ़ दी. आज शिमला पहाड़ी और कांगड़ा मैदानी इलाकों का प्रतिनिधित्व करता है. इस क्षेत्रवाद के लिहाज से हिमाचल की सियासत पर नजर डालें तो सूबे के मुख्यमंत्रियों को अपर या लोअर हिमाचल की कसौटी पर तौला जाता रहा है. हिमाचल की सियासत पर नजर डालें तो अब तक रहे 6 मुख्यमंत्रियों में से 3 को ऊपरी हिमाचल का कहा जाता है और 3 को निचले हिमाचल का, ये भी दिलचस्प है कि इनमें कांग्रेस के तीनों मुख्यमंत्री यशवंत परमार, रामलाल ठाकुर और वीरभद्र सिंह अपर हिमाचल और बीजेपी के तीनों मुख्यमंत्री शांता कुमार, प्रेम कुमार धूमल और जयराम ठाकुर निचले इलाके के माने जाते हैं.

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की तस्वीर.

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2017 के बाद सियासत का नया युग-साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सीएम उम्मीदवार रहे प्रेम कुमार धूमल चुनाव हारे तो पार्टी की खोज जयराम ठाकुर पर खत्म हुई. 27 दिसंबर 2017 को पहली बार मुख्यमंत्री बने जयराम ठाकुर ने कहा कि हम टोपियों की सियासत को खत्म करेंगे क्योंकि सारी टोपियां और सारे रंग हमारे हैं. सराज से विधायक जयराम ठाकुर भी कुछ वक्त बाद सिराजी टोपी भी चलन में आई, जिसपर कमल का फूल अलग से खिलने लगा था लेकिन वो कई मौकों पर वो हरी और मैरून टोपी भी पहने नजर आए, जो कभी कांग्रेस और बीजेपी की कही जाती थी. इसके अलावा बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर पीएम मोदी तक अलग-अलग रंग वाली हिमाचली टोपियों में नजर आते रहे हैं. अब मौजूदा चुनावी दौर में बीजेपी के नेता ये दावा कर रहे हैं कि उन्होंने कर टोपियों के साथ-साथ अपर-लोअर हिमाचल की सियासत को भी खत्म कर दिया है.

सीएम जयराम ठाकुर

दरअसल जयराम ठाकुर मंडी जिले से आते हैं. इस जिले में पहाड़ी और मैदानी इलाके दोनों पड़ते हैं. अब तक रहे मुख्यमंत्री या तो खालिस पहाड़ी इलाके के थे या फिर प्रदेश के निचले जिलों कांगड़ा और हमीरपुर से, इसलिये जयराम ठाकुर भी कहते रहे हैं कि वो लोअर या अपर के नहीं बल्कि हिमाचल के मुख्यमंत्री हैं. इसीलिये अमित शाह चुनाव प्रचार के दौरान अपनी जनसभाओं में कहते हैं कि हरी टोपी भी हमारी है, लाल टोपी भी और अपर हिमाचल भी हमारा है लोअर भी.

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Last Updated : Nov 6, 2022, 2:46 PM IST

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