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आईजीएमसी में दो साल से किडनी ट्रांसप्लांट ठप, मरीजों को जाना पड़ रहा दूसरे राज्य

Kidney Transplant in IGMC: इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज एवं अस्पताल (आइजीएमसी) अब महज किडनी ट्रांसप्लांट की परमिशन देने का केंद्र बन कर रह गया है. दो साल में अस्पताल में किसी भी प्रकार का कोई भी किडनी ट्रांसप्लांट नहीं हुआ है. पढ़ें पूरी खबर..

Kidney Transplant in IGMC
आईजीएमसी में किडनी ट्रांसप्लांट ठप

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jan 6, 2024, 8:41 AM IST

शिमला:हिमाचल की राजधानी में स्थित सबसे बड़े सरकारी अस्पताल इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में पिछले दो साल से किडनी ट्रांसप्लांट ठप है. दरअसल, आइजीएमसी अब सिर्फ मरीजों को किडनी ट्रांसप्लांट की परमिशन देने के लिए ही रह गया है. जिन लोगों ने किडनी ट्रांसप्लांट करवाना होता है, उन लोगों को आइजीएमसी से किडनी ट्रांसप्लांट का अनापत्ति पत्र लेना होता है. मरीजों का इससे पहले अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट शुरू हो गया था, अब अस्पताल में नेफ्रोलॉजिस्ट ना होने के कारण इसे फिर से बंद कर दिया गया है. बता दें कि दो साल में अस्पताल में किसी भी प्रकार का कोई भी किडनी ट्रांसप्लांट नहीं हुआ है.

बता दें कि किडनी ट्रांसप्लांट ठप होनो को कारण अब मरीजों को अन्य राज्यों में किडनी ट्रांसप्लांट करवाने के लिए जाना पड़ता है. एक ट्रांसप्लांट जो अपने राज्य के अस्पताल में करवा रहे थे, इसके लिए दूसरे राज्यों के अस्पतालों में लाखों रुपये खर्च पड़ रहे हैं. अस्पताल की प्रिंसिपल डॉ. सीता ठाकुर ने कहा कि किडनी ट्रांसप्लांट के लिए अनापत्ति पत्र अनिवार्य रहता है. इसको लेकर डोनर और मरीज के साथ बैठक थी. फिलहाल डॉक्टर न होने के कारण किडनी ट्रांसप्लांट नहीं हो रहे हैं.

एम्स की टीम के लिए आइजीएमसी में किए थे ट्रांसप्लांट: इससे पहले अस्पताल में दिल्ली एम्स की टीम के साथ दो सफल किडनी ट्रांसप्लांट हो चुके हैं. फिर कोरोना के दो साल में अस्पताल प्रशासन ने ट्रांसप्लांट बंद किए थे. दो साल से अस्पताल में कोई भी किडनी ट्रांसप्लांट नहीं हुआ है. इसके कारण मरीजों को अधिक खर्च में इलाज में हो रहा है. बीमारी के चलते मरीज को अस्पताल के कई चक्कर काटने पड़ते थे.

किडनी खराब होने पर ट्रांसप्लांट के अलावा नहीं हैं कोई विकल्प:मरीज की दोनों किडनी खराब होने की अंतिम स्टेज पर ट्रांसप्लांट के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं रहता है. प्रदेशभर के स्वास्थ्य संस्थानों में यह सुविधा न होने पर मरीजों को अन्य राज्यों का रुख करना पड़ता था. पीजीआइ, दिल्ली एम्स में किडनी ट्रांसप्लांट के लिए मरीज को कई गुना ज्यादा खर्च करना पड़ता है. इलाज पूरा होने के लिए कई दिन तक अस्पताल में रहना होता है. डायलिसिस बार-बार होने के कारण मरीज पर और अधिक आर्थिक बोझ बढ़ जाता है.

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