शिमला: ब्रिटिश कालीन खूबसूरत शहर शिमला की पहचान यहां के ऊंचे और भव्य देवदार के पेड़ माने जाते थे. सैलानी इन विशाल पेड़ों की भव्यता देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं, लेकिन अब शिमला की ये खास पहचान ही लोगों की जान ले रही है. शिमला शहर में बीते तीन दिन में 200 से अधिक देवदार के पेड़ गिर चुके हैं. चिंतित राज्य सरकार ने शिमला में हालत का जायजा लिया तो पाया कि शहर में 550 से अधिक देवदार के पेड़ काल का रूप धारण कर सकते हैं. ऐसे में उन्हें काटने के लिए नियमों में भी छूट दी गई है.
देवदार के पेड़ों का होगा कटान: अब जहां भी रिहायशी इलाका है, वहां यदि कोई देवदार का पेड़ खतरनाक दिख रहा है, उसे काटा जाएगा. नियमों के अनुसार नगर निगम शिमला की ट्री कमेटी पेड़ों का निरीक्षण करती थी. ट्री कमेटी खतरनाक पेड़ों को चिन्हित करती थी और फिर कैबिनेट की मंजूरी से उन्हें काटा जाता था. लेकिन अब आपातकालीन परिस्थितियों को देखते हुए नियमों में ढील दी गई है.
शिमला में खतरा बने देवदार के पेड़ 25 हजार लोगों के लिए बसा था शिमला: ब्रिटिश काल में शिमला महज 25 हजार लोगों के लिए बसाया गया था. यहां अधिकतम 25 हजार की आबादी के लिए स्थान, सुविधाएं और गुंजाइश थी, लेकिन इस समय शिमला व आसपास के उपनगरों में कुल 2 लाख की आबादी है. इतनी बड़ी आबादी के लिए कंस्ट्रक्शन भी जमकर हुई. हैरानी की बात है कि शिमला में कोई डंपिंग यार्ड नहीं है. निर्माण के मलबे को जहां दिल किया वहीं फेंका जाता रहा है. शिमला में कई बहुमंजिला इमारतें बन गई. सैकड़ों वाहनों की पार्किंग के लिए विशालकाय ढांचे खड़े किए गए. स्मार्ट सिटी के नाम पर यहां की सड़कें चौड़ी की गई. कई फुट ओवर ब्रिज बनाए गए. इन सबके निर्माण का मलबा कहीं न कहीं शहर में ही डंप किया जाता रहा है.
शिमला में बारिश का कहर:इस मानसून सीजन में जून महीने की शुरुआत में ही बारिश का दौर शुरू हो गया था. पहले जुलाई महीने में तीन दिन तक प्रकृति ने प्रलय मचाया और अब 14 अगस्त सोमवार का दिन शिमला के लिए कभी न भरने वाले जख्म देकर गया है. शिमला शहर में तीन दिन में 20 से अधिक लोगों की मौत हुई है. इसके अलावा नौ लोग अभी भी लापता हैं.
शिमला में देवदार के पेड़ों के कारण लैंडस्लाइड लैंडस्लाइड से शिमला में मौत का तांडव: समरहिल के पास शिव मंदिर के ऊपर आए लैंडस्लाइड में 13 लोगों के शव मिल चुके हैं. नौ लोग अभी भी लापता हैं. फागली में पांच लोग काल का शिकार हुए तो कृष्णानगर हादसे में दो लोग मारे गए. ये जितने भी लैंडस्लाइड हुए, उनमें देवदार के पेड़ों ने भारी तबाही मचाई. लैंडस्लाइड में भारी मलबे ने देवदार के भारी-भरकम पेड़ों को पल भर में उनकी जड़ों से जुदा कर दिया. यही भारी-भरकम देवदार घरों पर कहर बनकर टूट रहे हैं. शिमला में जितने भी हादसे हुए हैं, उनमें देवदार के पेड़ों के गिरने से भारी तबाही हुई है.
इतनी बड़ी संख्या में नहीं गिरे देवदार के पेड़: आठ साल पहले 11 जुलाई के दिन शिमला में मालरोड में विलो बैंक के पास देवदार का पेड़ गिरा. इसके अलावा बड़श व भराड़ी में भी कुल तीन देवदार के पेड़ गिरे. तब 2015 में 11 जुलाई को सुबह से शुरू हुई बारिश देर शाम को थमी थी. शिमला में एक दशक के अंतराल में मानसून सीजन में करीब 82 पेड़ गिरे थे. यानी हर साल आठ से दस देवदार के पेड़ गिरते रहे हैं, लेकिन इस बार तो कमाल हो गया. शिमला में एक ही दिन में 200 देवदार के पेड़ गिरे. इस समय देवदार के कुल खतरनाक पेड़ों की संख्या 550 के करीब है.
देवदार के पेड़ शिमला में दे रहे हादसों को न्यौता ज्यादातर देवदार के पेड़ हुए पुराने: तीन साल पहले तत्कालीन कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज ने भाजपा महिला मोर्चा की तरफ से आयोजित पौधारोपण कार्यक्रम में कहा था कि शिमला में देवदार के पेड़ निर्माण कार्य की अधिकता के कारण कमजोर हो गए हैं. उन्होंने कहा था कि यहां नए पौधे लगाने की जरूरत है. शिमला में कई देवदार के पेड़ सौ साल से भी अधिक पुराने हैं. देवदार के नए पौधे अपेक्षाकृत कम लगे हैं. शिमला में कंक्रीट का जंगल उग आने के कारण देवदार के पौधे लगाने की गुंजाइश न के बराबर है.
शिमला में देवदार के 57 हजार पेड़: वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार शिमला में देवदार के 57 हजार के करीब पेड़ हैं. उनमें से अधिकांश अपनी आयु पूरी कर चुके हैं. देवदार के एक पेड़ की अधिकतम आयु 120 साल होती है. निर्माण कार्य के कारण इनकी जड़ों पर असर पड़ता है. एक आयु के बाद देवदार के पेड़ों की ग्रोथ थम जाती है. अब शिमला के अधिकांश देवदार के पेड़ एक तरह से बूढ़े हो चुके हैं. यदि मानसून सीजन में बारिश की यही रफ्तार रहती है तो आने वाले समय में शिमला में देवदार के पेड़ गिने-चुने ही देखने को मिलेंगे. शिमला के जाखू एरिया में भव्य देवदार के पेड़ हैं, लेकिन अब उनकी आयु पूरी हो रही है. ऐसे में शिमला में देवदार के नए पौधे लगाने की जगह व तलाशने की जरूरत है.
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