शिमला: चिकित्सक को धरती पर भगवान का रूप माना जाता है. मन लगाकर काम करने वाले डॉक्टर सांसों की टूटती डोर को थाम कर अपने ज्ञान से मरीजों की जान बचाते हैं. ऐसे ही एक डॉक्टर हैं, आईजीएमसी अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजीव मारवाह. मन लगाकर काम करने वाले दिल के इस डॉक्टर पर मरीजों का खूब भरोसा है. डॉ. राजीव इस भरोसे को कैसे कायम रखते हैं, इसका उदाहरण आगे की पंक्तियों में दर्ज है.
पकड़ में नहीं आ रही थी बीमारी: जून के पहले हफ्ते में आईजीएमसी अस्पताल में एक मरीज आया. बिलासपुर से आए इस मरीज का पेट फूल रहा था. विभिन्न विभागों में जांच के बाद कारण का पता नहीं चल रहा था. केस डॉ. राजीव मारवाह के पास आया तो, उन्होंने गहन पड़ताल की. डॉ. मारवाह ने पाया कि मरीज के एब्डोमेन में पानी भर गया है और ऐसा एक नस के दबने के कारण हुआ है. अब उस नस को खोलना था. ऐसा केस अभी तक अस्पताल में किसी ने हैंडल नहीं किया था.
चिवार टेक्निक से किया इलाज: डॉ. राजीव ने ये चुनौती स्वीकार की और तीन स्टंट डालकर नस को खोला. ऑपरेशन की ये चिवार टेक्निक कही जाती है. ऑपरेशन के दौरान कई परेशानियां आई. एक बार तो जरूरी मशीन खराब हो गई. उसका भी विकल्प डॉ. राजीव ने निकाल लिया. अब मरीज स्वस्थ है और बिलासपुर के घुमारवीं में घर पर स्वास्थ्य लाभ ले रहा है. इलाज में छह लाख रुपए से अधिक की रकम लगी. पांच लाख रुपए हिमकेयर योजना से जारी हो गए थे. डॉ. राजीव मारवाह ने बताया कि इस तकनीक से आईजीएमसी अस्पताल में ये पहला केस ऑपरेट किया गया था. डॉ. राजीव की चिकित्सीय पारी में ऐसे कई सफल केसिज का रिकार्ड है.
इलाज के बाद मरीज स्वस्थ: ईटीवी ने घुमारवीं में स्वास्थ्य लाभ ले रहे मरीज से भी बात की. यहां निजी कारणों से मरीज का नाम नहीं दिया जा रहा. उसने बताया कि लगातार पेट फूलने से उसका जीवन दूभर हो गया था. किसी भी डॉक्टर को मर्ज पकड़ में नहीं आ रहा था. आईजीएमसी अस्पताल में भी कई दौर की जांच के बाद जब कुछ कारण पता नहीं चला तो डॉ. राजीव ने ही केस को समझ कर रिस्क लेकर उसे जीवनदान दिया है.