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कोरोना वायरस के बीच जिला शिमला में डी-वार्मिंग डे अभियान शुरू, 10 नवंबर तक पिलाई जाएगी खुराक - Himachal Pradesh news

जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. सुरेखा चोपड़ा ने बताया कि नेशनल डी वार्मिंग डे मई और नवंबर माह की पहली तारीख को मनाया जाता है, लेकिन इस बार कोरोना वायरस के चलते नहीं मनाया गया है. अब विभाग इसे एक अभियान के तहत घर घर जाकर मना रहा है और 10 नवंबर तक इस अभियान के तहत जिला के एक से 19 साल के बच्चों को एल्बेंडाजोल दवा पिलाई जा रही है.

नेशनल डी वार्मिंग डे
नेशनल डी वार्मिंग डे

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Published : Nov 5, 2020, 4:56 PM IST

शिमला: विश्व में होने वाले सॉयल ट्रांसमिटिड हेलमेंस का सबसे ज्यादा बोझ भारत में है. सॉयल ट्रांसमिटिड हेलमेंस को हिंदी में मृदा-संचारित हेलमिंथिसिस कहते हैं. इसका संबंध उन कीड़ों से है, जो बच्चों के पेट में होते हैं.

इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए हर साल पहली मई और पहली नवंबर को नेशनल डी वार्मिंग डे मनाया जाता है, लेकिन कोरोना वायरस के चलते इस बार यह दिवस नहीं मनाया गया है. जिसके चलते अब एक अभियान के तहत यह दिवस मनाया जा रहा है और 10 नवंबर तक जिला शिमला के सभी बच्चों को एल्बेंडाजोल की दवाई और साथ में विटामिन ए की खुराक भी पिलाई जा रही है.

वीडियो.

बता दें कि बच्चों में आयरन की कमी दूर करने के लिए जरूरी खुराक के साथ-साथ एक साल से लेकर 19 साल तक सभी बच्चों को पेट के कीड़ों को खत्म करने के लिए एल्बेंडाजोल दवा पिलाई जाएगी. अभियान के दौरान आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और आशा वर्कर घर-घर जाकर बच्चों को खुराक दे रहे हैं.

घर घर जाकर जिला के सभी बच्चों को पिलाई जा रही खुराक-सीएमओ

जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. सुरेखा चोपड़ा ने बताया कि नेशनल डी वार्मिंग डे मई और नवंबर माह की पहली तारीख को मनाया जाता है, लेकिन इस बार कोरोना वायरस के चलते नहीं मनाया गया है. अब विभाग इसे एक अभियान के तहत घर घर जाकर मना रहा है और 10 नवंबर तक इस अभियान के तहत जिला के एक से 19 साल के बच्चों को एल्बेंडाजोल दवा पिलाई जा रही है. साथ ही विटामिन ए की खुराक भी दी जा रही है.

इसके लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और आशा वर्कर की ड्यूटी लगाई गई है, जो हर बच्चों को यह खुराक पिलाएंगे. इसके अलावा शिमला शहर में यह खुराक स्कूलों में ही दी जाएगी. उन्होंने बताया कि हमारे देश में प्रतिवर्ष बहुत से बच्चे एनिमिया नामक बीमारी से ग्रस्त होते हैं और कमजोरी के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है. बच्चों में चिड़चिड़ापन और शारीरिक कमजोरी इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं. जिससे बचने के लिए एल्बेंडाजोल दवा पिलाई जाती है.

2005-06 के सर्वे में प्रदेश में 20 प्रतिशत बच्चे होते हैं शिकार

बता दें कि इस बीमारी से बच्चों का अपनी आयु के बाकी बच्चों की तुलना में वजन और कद, लंबाई कम होना कुपोषण की निशानी समझी जाती है. एनएफएचएस के 2005-06 में हुए सर्वे से खुलासा हुआ था कि हिमाचल प्रदेश में 20 फीसदी बच्चे जिनकी आयु 5 वर्ष से कम है.

2013 में हुए सर्वे के अनुसार 1000 में से 42 बच्चे 5 वर्ष की आयु पूरी नहीं कर पाते. विशेषज्ञों के अनुसार कुपोषण से बचने के लिए हर बच्चे के शुरु के तीन वर्ष तक हर महीनें वजन कराएं. बच्चों में कुपोषण की मुख्य वजह आहार की कमी होती है.इसलिए गर्भवती स्त्री का स्वस्थ रहना सबसे महत्वपूर्ण है.

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