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करोड़ों की फसल मिट्टी में मिला देते हैं बंदर, वन विभाग केवल नसबंदी तक ही सीमित! - बंदरों की नसबंदी

हिमाचल की 48 पंचायतों के लोगों को रोजाना बंदरों की समस्या से जूझना पड़ रहा है. इतना ही नहीं प्रदेश में 1100 स्थान ऐसे हैं, जहां बंदरों की संख्या इतनी अधिक है कि इन स्थानों को वन विभाग ने वानर हॉटस्पॉट की पहचान दे दी है.

Monkeys problem in himachal
हिमाचल में बदरों की समस्या

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Published : Dec 13, 2019, 10:54 PM IST

शिमला: प्रदेश की 48 पंचायतों के लोगों को रोजाना बंदरों की समस्या से जूझना पड़ रहा है. इतना ही नहीं प्रदेश में 1100 स्थान ऐसे हैं, जहां बंदरों की संख्या इतनी अधिक है कि इन स्थानों को वन विभाग ने वानर हॉटस्पॉट की पहचान दे दी है.

2013-14 में बंदरों ने 185 करोड़ रुपये की फसल नष्ट कर दी. करीब इसी अनुपात में हर साल बंदर किसानों की मेहनत को मिट्टी में मिला देते हैं. खेती के साथ-साथ बागवानी को भी बंदर भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं. 2006 से 2011 के आंकड़ों के अनुसार, बंदरों ने बागवानी को 150 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया है. खेती बचाओ संघर्ष समिति संस्था के अनुसार, हर साल करीब 500 करोड़ रुपये की फसल बंदर बर्बाद कर देते हैं जब की फसलों की रखवाली के लिए राखी के तौर पर करीब 1600 करोड़ रुपये सालाना खर्च होते हैं.

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इसकी एवज में किसानों को न तो मुआवजा मिलता है और न ही बंदरों की रखवाली के लिए मनरेगा के तहत राखी रखने की व्यवस्था हो पाई है. यहां किसानी लगातार घाटे का सौदा साबित हो रही है. प्रधान मुख्य अरण्य पाल डॉक्टर सविता ने बताया कि बंदर प्रदेश में लोगों के जीवन और संपत्ति के लिए खतरा बन चुके हैं.

इसको ध्यान में रखते हुए वन्य प्राणी विभाग ने केंद्र सरकार से बंदरों को पीड़ित जंतु घोषित कर दिया है. साल 2016 में प्रदेश की 28 तहसीलों में बंदरों को पीड़ित जंतु घोषित किया गया था. साल 2019 में दोबारा प्रदेश के 11 जिलों की 91 तहसीलों और उप-तहसीलों में बंदरों को पीड़ित जंतु घोषित किया गया था ताकि बंदरों को मारा जा सके.

डॉक्टर सविता ने बताया कि लोगों को बंदरों की समस्या के प्रति जागरूक करने के लिए भी कैंपेन चलाया जा रहा है. इसके अलावा वन विभाग जंगलों में फलदार वृक्ष लगाने को बढ़ावा दे रहा है, जिसके तहत पौधारोपण कार्यक्रम से जंगलों में 40 प्रतिशत फलदार पौधे लगाए जा रहे हैं ताकि बंदरों को जंगलों में सीमित रखा जा सके.

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