शिमला:हिमाचल प्रदेश में गर्मियों का मौसम शुरू होते ही आग लगने की घटनाएं सामने आती हैं, अमूमन वनों में लगने वाली आग को फॉरेस्ट फायर सीजन से जोड़ा जाता है. गर्मियों में हिमाचल में हर साल हजारों हेक्टेयर जंगल आग लगने से सुलगते हैं और करोड़ों की वन संपदा राख हो जाती है. इसी तरह सर्दियों के मौसम में ग्रामीण इलाकों में घरों और गौशालाओं में आग लगने की घटनाएं सामने आती हैं.
जंगल और रिहायशी इलाकों में लगने वाली आग से हर साल लाखों का रुपये का नुकसान होता है. ग्रामीण इलाकों में घरों और गौशालाओं में लगने वाली आग का मुख्य कारण लकड़ी के स्ट्रक्चर हैं इसके अलावा लापरवाही के कारण भी आग लगती है. इसके अलावा कस्बों और शहरों के साथ औद्योगिक क्षेत्रों में आंख से तबाही देखने को मिलती है.
हर सीजन में हो रही अग्निकांड की 80 से 100 घटनाएं
हिमाचल में दो फायर सीजन होते हैं. हर सीजन में करीब 80 से 100 आग लगने की घटनाएं घटती है. पहले फायर सीजन (दिसंबर से फरवरी माह) में आग की घटनाएं ज्यादा होती हैं. क्योंकि इस दौरान ठंड से बचने के लिए लोग घरों और गौशालाओं में आग और अंगीठी जलाते हैं. ऐसे में आग लगने का अंदेशा अधिक हो जाता है. वहीं, दूसरे फायर सीजन (मई से जून माह) में गर्मी की वजह से जंगलों में आगजनी की घटना अधिक होती है. कई लोग धूम्रपान करने के बाद जलती बीड़ी सिगरेट जंगलों में फेंक देते हैं इससे भी आग लगती है.
जंगल में घटती हैं अधिकांश घटनाएं
हिमाचल में आग लगने की अधिकांश घटनाएं जंगलों में पेश आती हैं. वनों की आग से होने वाले नुकसान को कम करने के प्रयास होते हैं. लेकिन दुर्गम क्षेत्रों में अग्निशमन वाहन समय पर नहीं पहुंच पाते. यही हालात ग्रामीण इलाकों में लकड़ी से बने घरों और गौशालाओं में भी देखने को मिलते हैं.
आग की घटनाओं पर समय रहते पाया जा सकता है काबू
यूनाइटेड नेशन के साथ आपदा प्रबंधन में काम कर चुकीं विशेषज्ञ मीनाक्षी रघुवंशी बताती हैं कि आग लगने की घटनाओं को कम किया जा सकता है मीनाक्षी के अनुसार सरकार को समय-समय पर अग्निकांड के लिहाज से संवेदनशील जगहों में मॉक ड्रिल करनी चाहिए इससे सरकारी मशीनरी की क्षमता का भी आकलन हो जाता है.
ग्रामीण इलाकों में सामूहिक स्तर पर प्रयास करके वाटर टैंक बनाए जाने चाहिए वहां हर समय खाली पार्टियों को भी रखना चाहिए ताकि आपात स्थिति में सबसे पहले ग्रामीण खुद आग बुझाने का प्रयास कर सकें उन्होंने बताया कि सरकारी स्तर पर भी फायर सीजन में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए.
घटनाओं से बचने के लिए करें ये उपाय
⦁ अपने घरों में पुरानी बिजली की तारों की रिपेयर करवाएं और अच्छी किस्म की तारों का प्रयोग करें, ताकि किसी तरह का शॉर्ट सर्किट न हो सके. आज कल आधुनिक तरीके के उपकरण बाजार में उपलब्ध है, जो शॉर्ट सर्किट के खतरे को निष्क्रिय करते हैं.
⦁ अपने घरों में लकड़ी/ कोयले की अंगीठी न जलाएं. कई बार हम लोग आग का ताप लेकर सो जाते हैं और अंगीठी जलती रहती है. कई बार उससे निकली चिंगारी भी घर को नुकसान पहुंचा सकती है. इसलिए इस प्रकार की अंगीठी को सोने से पूर्व बुझाकर घर से बाहर रख दें व प्रयोग के दौरान वायु प्रवाह के लिए खिड़की को थोड़ा खुला रखें.
⦁ अपने घरों में सूखी घास, जंगलों व ज्वलनशील पदार्थों के पास धूम्रपान न करें. अगर धूम्रपान कर ही रहे हैं तो जले हुए माचिस की तीली व बीड़ी-सिगरेट के जले हुए टुकड़ों को लापरवाही से इधर-उधर न फेंके और इन्हें ठीक से बुझाना सुनिश्चित करें.
⦁ घास काटने के बाद आग न लगाएं. अक्सर यह आग हवा के साथ तेजी से फैल जाती है, जिसमें नियंत्रण नहीं रहता. इससे अत्यधिक नुकसान होता है और आग फैलती-फैलती गांव तक आ सकती है.