हैदराबाद: मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की महिमा अपरंपार है. जिस तरह से उनकी महिमा अपरंपार है वैसे ही उनके रूप भी अनंत हैं. किसी के लिए वे आदर्श पुत्र, किसी के लिए वे आदर्श पति, किसी के लिए वे आदर्श भाई और किसी के लिए वे आदर्श आराध्य देव हैं. एक ओर समाज में सदियों से उनकी आराधना (Lord Shri Ram in Society ) होती आ रही है तो वहीं दूसरी ओर राजनीतिक गलियारों में दशकों से भगवान राम के नाम पर राजनीति (Lord Shri Ram in Politics ) होती आ रही है. आइए आज हम लेखनी में बात करते हैं समाज और राजनीति में अपने-अपने राम की...
समाज में राम: समाज में राम के स्वरूप को व्यापक स्तर पर रूपायित किया गया है. राम समाज में कितने रचे बसे हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज भी किसी से मिलते या बिछड़ते वक्त अभिनंदन या आशीष स्वरूप जय राम जी की, राम-राम, राम तुम्हारा भला करे, राम की मर्जी जैसे शब्द अनायास ही मुख से निकलते हैं. एक अच्छे पुत्र, पति, भाई, मित्र और राजा के रूप में राम के उदाहरण कदम-कदम पर परिवार से लेकर समाज तक में दिए जाते रहे हैं. राम राज्य की देन भी स्वयं अयोध्या के राजा राम की देन है.
घर में जब छोटे-छोटे बच्चे बोलना शुरू करते हैं तो उन्हें ताली बजाते हुए 'सीता-राम, सीता-राम' बोलना सिखाया जाता है. राम नवमी हो या विजय दशमी लोग ह्रर्षोल्लास के साथ भगवान श्री राम के इस त्योहार को मनाते हैं. एक-दूसरे के साथ खुशियां बांटते हैं. बचपन से हमें यही बताया जाता है कि भगवान राम ने सीता हरण के दौरान जो युद्ध किया वह लालच और राज्यलिप्सा के लिए नहीं था, बल्कि धर्म की रक्षा के लिए था. यही वजह है कि रावण वध के बाद श्री राम लक्ष्मण को आज्ञा देते हैं कि लंका जाकर विभीषण का राज्याभिषेक करें.
घर में विवाद होने पर सबसे पहले भगवान श्री राम के आचरण से सीख लेने के लिए कहा जाता है. स्त्री के प्रति भगवान राम का आचरण आदर्श रहा है. ऐसा कहा गया है कि स्त्री के सम्मान की रक्षा के लिए ही भगवान राम को बाली और रावण से युद्ध करना पड़ा था. हालांकि माता सीता की अग्नि परीक्षा को लेकर कुछ लोगों ने सवाल भी खड़े किए हैं.
राजनीति में राम: समाज और सियासत एक दूसरे के बिना मानो अधूरे हैं और इन भारतीय परिप्रेक्ष्य में राम दोनों जगह विद्यमान हैं. भारतीय राजनीति में दशकों से राम के नाम पर राजनीति होती चली आ रही है. राम राज्य का वादा सियासी फिजाओं में ना जाने कब से तैर रहा है. राजनीति में राम की बात होती है तो जेहन में सबसे पहला नाम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आता है. दरअसल महात्मा गांधी की प्रार्थना सभाओं में 'रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम' मुख्य आकर्षण का केंद्र था. समाज को एक माला में पिरोने के लिए 'ईश्वर अल्लाह तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान' गुनगुनाया करते थे. राम काम नाम बापू के जेहन में भी इस कदर घर कर गया था कि उनके मुंह से अंतिम शब्द भी 'राम..हे राम…' ही निकला.