शिमला: आज देशभर में जन्माष्टमी का त्योहार (Krishna Janmashtami 2022) मनाया जा रहा है. मथुरा का कृष्ण मंदिर हो या फिर हिमाचल के भगवान कृष्ण के मंदिर (Lord Krishna Temple). हर जगह कहीं हांडी फोड़ी जा रही है तो कहीं लड्डू गोपाल की घरों में स्थापना की जा रही है. पहाड़ी प्रदेश हिमाचल के किन्नौर में दुनिया का सबसे ऊंचा श्री कृष्ण (World tallest Shri Krishna in Kinnaur) मंदिर रोराघाटी में बना हुआ है, जिसकी समुद्र तल से 12000 फीट है. यह मंदिर युला कुंडा झील के बीचोंबीच है. मान्यता है कि पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण अपने वनवास के दौरान करवाया था. इस मंदिर (famous Lord Krishna Temple in himachal ) तक पहुंचने के लिए टापरी से लगभग 15 किलोमीटर का ट्रैक करना पड़ता है.
उल्टी टोपी डाली जाती है झील में:बुशहर रियासत के राजा के समय यहां जन्माष्टमी मेले की शुरुआत हुई थी जो अभी तक जारी है. जन्माष्टमी के दिन यहां श्रद्धालु किन्नौरी (kinnauri cap) टोपी उल्टी करके झील में डालते हैं. मान्यता है कि अगर टोपी डूबे बिना दूसरे छोर तक पहुंच जाती है तो मनोकामना पूरी हो जाती और आगामी साल खुशहाली लेकर आता है.
यहां श्री कृष्ण विराजमान हैं मीरा के साथ:भगवान श्रीकृष्ण को या तो राधा के साथ मूर्ति रूप में स्थापित देखा जाता है या द्वारका की पटरानी रुक्मिणी के साथ, लेकिन कांगड़ा जिले के ऐतिहसिक नगर नूरपुर के किले में स्थापित ब्रज स्वामी मंदिर में भगवान श्री कृष्ण अपनी अनन्य भगत मीरा बाई के साथ मूर्ति रूप में विराजमान हैं. वर्ष 1629 से 1623 ई. में जब नूरपुर के राजा जगत सिंह अपने राज पुरोहित के साथ राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के राजा के निमंत्रण पर वहां गए.राजा जगत सिंह व उनके पुरोहित को रात्रि विश्राम के लिए जो महल दिया, उसके बगल में एक मंदिर था.
जहां रात के समय राजा को उस मंदिर से घुंघरुओं और संगीत की आवाजें सुनाई दी. राजा ने जब मंदिर में बाहर से झांक कर देखा तो एक औरत कमरे में श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने भजन गाते हुए नाच रही थीं. राजा ने सारी बात राज पुरोहित को सुनाई. पुरोहित ने भी वापसी पर राजा (चित्तौड़गढ़) से इन मूर्तियों को उपहार स्वरूप मांग लेने का सुझाव दिया, क्योंकि श्री कृष्ण व मीरा की यह मूर्तियां साक्षात हैं. जगत सिंह ने पुरोहित बताए अनुसार वैसा ही किया. चित्तौड़गढ़ के राजा ने भी खुशी-खुशी वे मूर्तियां व मौलश्री का पेड़ राजा जगत सिंह को उपहार स्वरूप दे दिया. मीरा के साथ श्री कृष्ण का यह इकलौता मंदिर भी सिर्फ हिमाचल प्रदेश की धरती पर है.
यहां उलटी बांसुरी बजाते हैं मुरली मनोहर: ब्रह्माण्ड में श्री कृष्ण की इकलौती मूर्ति ऐसी है, जिसमें बांसुरी उलटी दिशा में पकड़ कर श्री कृष्ण बजाते दिखेंगे. यह मंदिर जिला हमीरपुर के ऐतिहासिक नगर सुजानपुर का मुरली मनोहर (Murli Manohar Temple of Sujanpur) मंदिर है. इस मंदिर का निर्माण कांगड़ा के कटोच राजा संसार चंद कटोच ने कराया था.
राष्ट्रीय होली मेले की शुरुआत:इसी मंदिर में स्थित राधा कृष्ण की मूर्तियों को गुलाल लगाकर , सुजानपुर के ऐतिहासिक होली मेले की शुरुआत होती थी जो आज भी वैसे ही जारी है. कहा जाता है संसार चंद कटोच ने भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति को पुरे विधि विधान से स्थापित करने को मूर्तिकारों से कहा. राजा संसार चंद कटोच खुद निर्माण स्थल पर पहुंचे और मूर्ति से सबंधित कई प्र्शन मूर्तिकारों से पूछे जिनका वो संतोषजनक जवाब न दे पाए. महाराजा को लगा श्याद यह कार्य पूर्ण विधि विधान से नहीं हो रहा. उन्होंने मूर्तिकारों को सुबह तक अपने सवालों के जवाब खोजने को कहा.
उत्तर नहीं दे पाने की स्थिति में हाथ काटने की चेतावनी दी गई. मूर्तिकार कृष्ण स्तुति कर जान की भीख मांगकर अपने-अपने आवास में चले गए. सुबह उठकर फिर मंदिर पहुंचे तो देखा बांसुरी उलटी दिशा की तरफ अपने आप हो गई.उन्होंने दौड़कर यह बात राजा को बताई. तब राजा ने यह माना की साक्षात श्री कृष्ण यहां विराजित हैं इसलिए उन्हें किसी से कोई शिकायत नहीं रही.
पहाड़ी रियासत के राजा श्री कृष्ण: यूं तो श्री कृष्ण को मथुरा और द्वारिका का ही राजा कहा गया, लेकिन श्री कृष्ण हिमाचल प्रदेश की पहाड़ी रियासत मंडी के भी राजा माने जाते हैं. वे यहां माधोराय नाम से सिहांसन पर बैठे. यहां 16 वीं सदी में मंडी में राजा सूरज सेन हुए. सूरज सेन की 10 रानियां और 18 पुत्र थे, मगर एक के बाद एक सभी बेटे काल का ग्रास बन गए. इससे राजा भयभीत हो उठे. राजा सूरज सेन ने भीमा सुनार से 16 मार्च, 1648 को माधोराय श्री कृष्ण की चांदी की प्रतिमा बनवाई थी. फिर उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित करके राज प्रतिमा सिहांसन पर विराजित कर दी और खुद राज्य के संरक्षक बनकर राजकाज देखने लगे. मंडी शिवरात्रि में इसी प्रतिमा रूप में विराजित माधोराय से मिलने जनपद के देवता आते हैं और माधोराय के नेतृत्व में ऐतिहासिक जलेब भी चलती है. मंडी शिवरात्रि में शैव मत का प्रतिनिधित्व मंडी नगर के अधिष्ठदाता बाबा भूतनाथ करते हैं. इसी तरह वैष्णव का प्रतिनिधित्व राज देवता माधोराय और लोक देवताओं की अगुवाई बड़ादेव कमरूनाग और देव पराशर करते हैं.
बुशहर रियासत के समधी श्री कृष्ण: पौराणिक गाथा के अनुसार शोणितपुर आज का सराहन के राजा असुर राज वाणासुर थे. बाणासुर, अशना से उत्पन्न, असुरराज बलि वैरोचन के सौ पुत्रों में सबसे ज्येष्ठजो भगवन शिव के अनन्य भगत थे. सकी बेटी उषा को पार्वती से मिले वरदान के अनुसार उसका विवाह भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से हुआ. परंतु इससे पहले अचानक विवाह के प्रसंग को लेकर वाणासुर और श्रीकृष्ण में घमासान युद्ध हुआ था ,जिसमें वाणासुर को बहुत क्षति पहुंची थी.
अंत में पार्वती जी के वरदान की महिमा को ध्यान में रखते हुए असुर राज परिवार और श्रीकृष्ण में सहमति हुए. फिर पिता प्रद्युम्न के निर्देशानुसार पुत्र अनिरुद्ध घर जमाई बनकर वाणासुर राज्य वर्तमान सराहन के राजा बने. इस तरह श्री कृष्ण यहां के समधी हुए. उसके बाद यह वंश अनिरुद्ध और उषा से चला.बुशहर रियासत राजवंश अपने आप को अनिरुद्ध के वंशज ही कहता है और श्री कृष्ण से अपना अपना इतिहास जोड़ता है. हिमाचल प्रदेश के दिवगंत मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह इसी रियासत के अंतिम राजा थे.
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