शिमला: विख्यात शायर अमर सिंह फिगार ने कारगिल शहीदों को बेहद मार्मिक शब्दों में याद किया है. उनकी रचना में दर्ज है- हर कदम बिखरा के अपना खून, अपनी बोटियां, जब शहीदों ने बचाई कारगिल की चोटियां...कारगिल की चोटियों में भारतीय सेना का शौर्य लहू के रूप में अनंतकाल तक चमकता रहेगा. कारगिल की इन्हीं चोटियों में हिमाचल के वीर बलिदानियों की शौर्य गाथा भी पत्थरों पर अमिट छाप के साथ-साथ यहां की मिट्टी के एक-एक कण में लिपटी हुई है. हिमाचल के वीर मेजर परमवीर चक्र विजेता सोमनाथ शर्मा ने जिस परंपरा की नींव रखी थी, उसे कैप्टन विक्रम बत्रा, राइफलमैन संजय कुमार (अब सूबेदार मेजर) जैसे वीरों ने अभेद मजबूती प्रदान की है. कारगिल विजय दिवस पर हिमाचल के वीरों की स्मृति बरबस ही हो आती है. देश अपने वीरों को लेकर किस कदर भावुक हो जाता है, उसकी बानगी हाल ही में मिली.
फ्लाइट में सूबेदार संजय कुमार को सम्मान: इंडिगो की फ्लाइट से परमवीर चक्र विजेता सूबेदार मेजर संजय कुमार पुणे की यात्रा पर थे. जहाज के क्रू ने संजय कुमार की मौजूदगी को अपना सम्मान मानते हुए यात्रियों को उनका परिचय दिया कि आज हमारे साथ भारत के महान सपूत यात्रा कर रहे हैं. सूबेदार मेजर संजय कुमार के सम्मान में यात्रियों ने करतल ध्वनि की. ट्विटर पर इंडिगो ने इससे जुड़ा वीडियो साझा किया तो यूजर्स ने बहुत भावुक कमेंट किए और पीवीसी संजय कुमार को सैल्यूट किया. ये दिखाता है कि भारतवासी अपने वीरों का दिल से सम्मान करते हैं. आइए, कारगिल के वीर सपूतों को आदर के साथ याद करते हैं.
पाकिस्तान को भारत ने दिखाई औकात: वर्ष 1999 में नापाक फौज ने भारत की वीरता को ललकारा था. भारतीय सेना ने दुश्मन को करारा जवाब देकर वो सबक सिखाया, जिसे पाकिस्तान हमेशा याद रखेगा. दुनिया के सबसे कठिन पहाड़ों पर हुए इस युद्ध में भारत के हर प्रांत के वीरों ने अपने अतुल्य साहस और युद्ध कौशल से दुश्मन को नाकों चने चबवाए थे. देश को पहला परमवीर देने वाले हिमाचल के सपूतों ने भी अपना लहू मातृभूमि को अर्पित किया. युद्ध के मैदान से बलिदानी सैनिकों की पवित्र देह आती तो, हजारों नम आंखें उन्हें आदरांजलि देने के लिए उमड़ पड़ती.
कारगिल युद्ध में शहीद हुए यशवंत सिंह: युद्ध के दौर में ऐसा ही एक मार्मिक दृश्य शिमला में देखने को मिला. शिमला के रिज मैदान पर हजारों की भीड़ के बावजूद गहरी खामोशी थी. शिमला जिला के यशवंत सिंह रणभूमि में भारत मां पर बलिदान हुए थे. उनका पवित्र पार्थिव शरीर शिमला के रिज मैदान पर देशवासियों के दर्शन के लिए रखा था. हजारों की भीड़ नम आंखों से खामोश होकर अपने वीर सपूत का अंतिम दर्शन करने कतार में खड़ी थी. इस युद्ध में हिमाचल के दो शूरवीरों को परमवीर चक्र मिला. कैप्टन विक्रम बत्रा और राइफलमैन संजय कुमार. विक्रम बत्रा ने तो सर्वोच्च बलिदान देकर खुद को आकाश में अमिट सितारे के रूप में प्रतिष्ठित कर लिया, लेकिन राइफलमैन संजय कुमार (अब सूबेदार मेजर) कारगिल युद्ध की गाथा सुनाने के लिए हम सबके बीच मौजूद हैं.
विक्रम बत्रा का अदम्य साहस देख थर्राया पाकिस्तान: इसी युद्ध में हिमाचल के 52 जांबाजों ने अपने प्राण मातृभूमि की सेवा में अर्पित किए थे. महान योद्धा कैप्टन विक्रम बत्रा का अदम्य साहस देखकर नापाक दुश्मन थर्रा गया था. इन्हीं विक्रम बत्रा के लिए तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक ने कहा था-काश! कैप्टन बत्रा बलिदान न होते तो देश को सबसे युवा सेना अध्यक्ष बनते. संजय कुमार के साहस की कहानियां देश के हर निवासी को प्रेरित करती है. इस युद्ध में भारत मां को प्राणों की बलि देने वाले हिमाचल के 52 वीर सपूत थे. कैप्टन बत्रा भारतीय सेना के ताज में जड़े बेमिसाल हीरों में से एक हैं.
विक्रम ने साथियों संग प्वॉइंट 5140 की चोटी पर किया कब्जा: हिमाचल में कांगड़ा जिला के पालमपुर के गांव घुग्गर में 9 सितंबर 1974 को विक्रम बत्रा का जन्म हुआ था. बचपन में पिता से अमर शहीदों की गाथाएं सुनकर विक्रम को भी देश की सेवा का शौक पैदा हुआ. वर्ष 1996 में वे मिलेट्री अकादमी देहरादून के लिए सिलेक्ट हुए. कमीशन हासिल करने के बाद उनकी नियुक्ति 13 जैक राइफल में हुई. जून 1999 में कारगिल युद्ध छिड़ गया. ऑपरेशन विजय के तहत विक्रम बत्रा भी मोर्चे पर पहुंचे. उनकी डैल्टा कंपनी को प्वॉइंट 5140 को कैप्चर करने का आदेश मिला. दुश्मन सेना को ध्वस्त करते हुए विक्रम बत्रा और उनके साथियों ने प्वॉइंट 5140 की चोटी को कब्जे में कर लिया. इस महान नायक ने युद्ध के दौरान कई दुस्साहसिक फैसले लिए.
कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए विक्रम बत्रा: जुलाई 1999 की 7 तारीख थी. कई दिनों से मोर्चे पर डटे विक्रम को उनके ऑफिसर्स ने आराम करने की सलाह दी थी, लेकिन वे नहीं माने. इसी दिन वे प्वॉइंट 4875 पर युद्ध के दौरान मां भारती पर बलिदान हो गए. सर्वोच्च बलिदान देने से पहले वे भारतीय सेना के समक्ष आने वाले सारे अवरोध दूर कर चुके थे. युद्ध के दौरान उनका नारा ये दिल मांगे मोर था, जिसे उन्होंने सच कर दिखाया. वहीं, बिलासपुर जिला के बकैण गांव के संजय कुमार ने भी करगिल युद्ध में अदम्य शौर्य दिखाया. करगिल की प्वॉइंट 4875 चोटी पर पाकिस्तान ने भारतीय सेना के इस योद्धा का साहस देखा. संजय का सामना पाकिस्तानी सैनिकों की ऑटोमैटिक मशीनगन से हो गया था. संजय कुमार ने निहत्थे ही उनकी मशीनगन ध्वस्त कर सैनिकों को मार गिराया था. संजय के साहस से घबराए पाकिस्तानी सैनिक अपनी यूनिवर्सल मशीनगन छोड़ कर भाग गए थे.