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हिमाचल पर बढ़ रहा कर्ज का बोझ, एक हजार करोड़ का कर्ज लेने की तैयारी में जयराम सरकार

प्रदेश सरकार एक बार फिर एक बड़ा कर्ज लेने जा रही है. कर्मचारियों की वित्तीय अदायगी और विकास कार्यों के लिए इस बार सरकार 1000 करोड़ रुपये के कर्ज का बोझ प्रदेश के कंधों पर डालने की तैयारी में है.

loan of 1000 crores
बैठक की अध्यक्षता करते सीएम जयराम.

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Published : Oct 23, 2020, 11:18 AM IST

शिमला: राज्य सरकार जल्द ही एक हजार करोड़ रुपये का लोन लेने जा रही है. बताया जा रहा है कि कर्मचारियों की वित्तीय अदायगी और विकास कार्यों के लिए सरकार ये कर्ज लेगी. इससे पहले भी सरकार ने हाल ही में 500 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था.

गौर हो कि सरकार को आने वाले दिनों में कई तरह की वित्तीय अदायगी करनी है, जिसके लिए लोन लेना पड़ रहा है. अभी तक प्रदेश सरकार पर कर्ज का बोझ बढ़कर करीब 55,000 करोड़ तक पहुंच गया है. ये बीते साल से 6.41 फीसद की रफ्तार से बढ़ा है. राज्य सरकार का कर्ज सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 36 फीसद तक पहुंच गया है.

विधानसभा के मॉनसून सत्र में पेश की गई कैग की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2018-2019 के दौरान राजस्व व्यय का 73 फीसद चार घटकों के वेतन व मजदूरी, पेंशन, ब्याज अदायगी और उपदानों पर खर्च किया गया.

2018-2019 में बीते साल के मुकाबले राजकोषीय घाटा 358 करोड़ कम हुआ है. 2019 तक 5128.42 करोड़ के कुल अनुदानों से जुड़े 5758 उपयोगिता प्रमाण पत्रों में से 2407 प्रमाणपत्र लंबित पड़े हुए हैं. ये 1898.80 करोड़ रुपये के हैं.

हिमाचल प्रदेश की आर्थिक सेहत बेहद चिंताजनक है. राज्य पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है. 70 लाख से अधिक की आबादी वाले प्रदेश में 10 लाख से अधिक युवा बेरोजगार हैं. सरकारी नौकरियों की उपलब्धता लगातार कम होती जा रही है. स्वरोजगार के साधन भी सीमित हैं. प्रदेश में चार लाख बागवान परिवार हैं. 80 फीसदी लोग किसानी से जुड़े हैं. दो लाख से अधिक लोग सरकारी नौकरियों में हैं.

हिमाचल में स्वरोजगार के लिए पर्यटन के क्षेत्र पर अधिक ध्यान दिए जाने की जरूरत है. किसानी को लाभ का सौदा बनाए जाने के उपाय तलाशने की आवश्यकता है. हिमाचल में किसान व बागवान बंदरों और जंगली जानवरों द्वारा फसल को पहुंचाए जाने वाले नुकसान से त्रस्त हैं. खेती-किसानी पर निर्भर कई इलाकों में सिंचाई सुविधा की कमी है. हिमाचल आर्थिक सहायता के लिए केंद्र पर निर्भर रहता है. केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं में 90-10 के अनुपात में खर्च होता है. केंद्र सरकार केंद्रीय योजनाओं में 90 फीसदी राशि देती है.

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