शिमला: केंद्र सरकार लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र पर पुनर्विचार के लिए गठित समिति की सिफारिशों पर मानसून सत्र के दौरान फैसला लेने जा रही है. समिति की सिफारिशों में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल की बजाय 21 साल करना शामिल है.
शादी की न्यूनतम उम्र को 21 साल किए जाने के पीछे कई तर्क हैं. विवाह की उम्र का सीधा संबंध मातृत्व से भी है और साथ ही शिशु की सेहत भी इससे जुड़ी है. शिशु मृत्यु दर को न्यूनतम करने के लिए मां का स्वास्थ्य अच्छा होना जरूरी है. साथ ही राज्य विशेष की स्वास्थ्य सेवाओं का भी बेहतर होना आवश्यक है. नवजात का पोषण भी इसी से जुड़ा है. ये सारी बातें गर्भनाल की तरह लड़कियों की शादी की उम्र से संबंध रखती हैं.
यदि हिमाचल की स्थिति देखी जाए तो यहां साक्षरता का प्रभाव होने से मां-बाप लड़कियों की शादी में जल्दबाजी नहीं करते हैं. ग्रामीण इलाकों में भी जागरुकता है. यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश में शिशु मृत्यु दर भी देश भर में न्यूनतम है. इसका बड़ा कारण बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं भी हैं.
नीति आयोग की रिपोर्ट का अध्ययन करें तो हिमाचल प्रदेश में शिशु मृत्यु दर घटी है. नीति आयोग के 'हेल्थ इंडेक्स' में तीन साल के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि हिमाचल प्रदेश में शिशु मृत्यु दर 1000 शिशुओं पर तीन तक घट गई है.
वहीं, पांच साल तक के बच्चों पर यह 6 तक घटी है. हालांकि, लिंगानुपात की बात करें तो 1000 लड़कों के अनुपात में अध्ययन वर्ष 2019 तक 917 लड़कियां पैदा हो रही हैं, जबकि इससे तीन साल पहले यह आंकड़ा 924 था. इस तरह से इस आंकड़ें के अनुसार सात लड़कियां पैदा होनी और कम हो गई हैं.
रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल में आधार वर्ष 2015-16 में शिशु मृत्यु दर 1000 शिशुओं पर 19 थी, वहीं यह संदर्भ वर्ष 2017-18 में घटकर 16 रह गई है. पांच साल तक के बच्चों की मृत्यु दर भी जहां पहले 33 थी, अब यह 27 रह गई है.
आधार वर्ष 2015-16 में जहां एक हजार लड़कों पर 924 लड़कियां पैदा हो रही थीं, वहीं संदर्भ वर्ष 2017-18 में 7 लड़कियों की गिरावट दर्ज की गई है. यह बाल लिंग अनुपात एक हजार लडक़ों पर 917 लड़कियों का रह गया है. यह रिपोर्ट नीति आयोग ने देश के सभी राज्यों के स्वास्थ्य मानकों पर जारी की थी.
नवजात शिशु मृत्यु दर व पांच साल से कम आयु के बच्चों की मृत्युदर में गिरावट लाने वाला हिमाचल देश का अव्वल राज्य है. नवजात शिशु मृत्यु दर में हिमाचल में 15.8 फीसदी व पांच साल की आयु के बच्चों की मृत्युदर में 18.2 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है.