हिमाचल प्रदेश

himachal pradesh

शादी की उम्र का मां बनने और शिशु सेहत से सीधा संबंध, हिमाचल के आंकड़े बेहतर

By

Published : Sep 13, 2020, 7:16 PM IST

Updated : Sep 14, 2020, 6:50 AM IST

शिशु मृत्यु दर को न्यूनतम करने के लिए मां का स्वास्थ्य अच्छा होना जरूरी है. साथ ही राज्य विशेष की स्वास्थ्य सेवाओं का भी बेहतर होना आवश्यक है. नवजात का पोषण भी इसी से जुड़ा है. ये सारी बातें गर्भनाल की तरह लड़कियों की शादी की उम्र से संबंध रखती हैं. यदि हिमाचल की स्थिति देखी जाए तो यहां साक्षरता का प्रभाव होने से मां-बाप लड़कियों की शादी में जल्दबाजी नहीं करते हैं. ग्रामीण इलाकों में भी जागरुकता है. यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश में शिशु मृत्यु दर भी देश भर में न्यूनतम है. इसका बड़ा कारण बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं भी हैं.

Sex Ratio are good in Himachal
हिमाचल में महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े.

शिमला: केंद्र सरकार लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र पर पुनर्विचार के लिए गठित समिति की सिफारिशों पर मानसून सत्र के दौरान फैसला लेने जा रही है. समिति की सिफारिशों में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल की बजाय 21 साल करना शामिल है.

शादी की न्यूनतम उम्र को 21 साल किए जाने के पीछे कई तर्क हैं. विवाह की उम्र का सीधा संबंध मातृत्व से भी है और साथ ही शिशु की सेहत भी इससे जुड़ी है. शिशु मृत्यु दर को न्यूनतम करने के लिए मां का स्वास्थ्य अच्छा होना जरूरी है. साथ ही राज्य विशेष की स्वास्थ्य सेवाओं का भी बेहतर होना आवश्यक है. नवजात का पोषण भी इसी से जुड़ा है. ये सारी बातें गर्भनाल की तरह लड़कियों की शादी की उम्र से संबंध रखती हैं.

वीडियो.

यदि हिमाचल की स्थिति देखी जाए तो यहां साक्षरता का प्रभाव होने से मां-बाप लड़कियों की शादी में जल्दबाजी नहीं करते हैं. ग्रामीण इलाकों में भी जागरुकता है. यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश में शिशु मृत्यु दर भी देश भर में न्यूनतम है. इसका बड़ा कारण बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं भी हैं.

नीति आयोग की रिपोर्ट का अध्ययन करें तो हिमाचल प्रदेश में शिशु मृत्यु दर घटी है. नीति आयोग के 'हेल्थ इंडेक्स' में तीन साल के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि हिमाचल प्रदेश में शिशु मृत्यु दर 1000 शिशुओं पर तीन तक घट गई है.

वहीं, पांच साल तक के बच्चों पर यह 6 तक घटी है. हालांकि, लिंगानुपात की बात करें तो 1000 लड़कों के अनुपात में अध्ययन वर्ष 2019 तक 917 लड़कियां पैदा हो रही हैं, जबकि इससे तीन साल पहले यह आंकड़ा 924 था. इस तरह से इस आंकड़ें के अनुसार सात लड़कियां पैदा होनी और कम हो गई हैं.

रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल में आधार वर्ष 2015-16 में शिशु मृत्यु दर 1000 शिशुओं पर 19 थी, वहीं यह संदर्भ वर्ष 2017-18 में घटकर 16 रह गई है. पांच साल तक के बच्चों की मृत्यु दर भी जहां पहले 33 थी, अब यह 27 रह गई है.

आधार वर्ष 2015-16 में जहां एक हजार लड़कों पर 924 लड़कियां पैदा हो रही थीं, वहीं संदर्भ वर्ष 2017-18 में 7 लड़कियों की गिरावट दर्ज की गई है. यह बाल लिंग अनुपात एक हजार लडक़ों पर 917 लड़कियों का रह गया है. यह रिपोर्ट नीति आयोग ने देश के सभी राज्यों के स्वास्थ्य मानकों पर जारी की थी.

नवजात शिशु मृत्यु दर व पांच साल से कम आयु के बच्चों की मृत्युदर में गिरावट लाने वाला हिमाचल देश का अव्वल राज्य है. नवजात शिशु मृत्यु दर में हिमाचल में 15.8 फीसदी व पांच साल की आयु के बच्चों की मृत्युदर में 18.2 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है.

अगर नवजात शिशुओं के पोषण की व्यवस्था की बात की जाए तो हिमाचल प्रदेश में 18386 आंगनवाड़ी केंद्र व 539 मिनी आंगनवाड़ी केंद्र हैं. इन केंद्रों में चालीस हजार से अधिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व सहायिकाएं बच्चों के पोषण का ख्याल रखती हैं.

हिमाचल में 54 फीसदी महिलाएं एनिमिक हैं, लेकिन ये तथ्य ध्यान में रखा जाना चाहिए कि महिलाओं में खून की कमी एक यूनिवर्सल समस्या है. हिमाचल में 26 फीसदी बच्चों की ग्रोथ आयु के हिसाब से कम है. इन बच्चों का कद औसत से कम पाया गया है.

हिमाचल में मातृ मृत्यु दर की स्थिति काफी बेहतर है. हिमाचल इस दिशा में उत्कृष्ट करने वाले राज्यों में से एक है. हिमाचल बहुत पहले ही देश में मातृ मृत्यु दर में कमी के लक्ष्य को पूरा कर चुका है. भारत में मातृ मृत्यु दर को 70 तक करने का लक्ष्य है, जबकि हिमाचल में यह दर 65 से कम है.

क्योंकि हिमाचल में 1 लाख से कम बच्चों का जन्म होता है तो मातृ मृत्यु दर की गणना करना संभव भी नहीं है. 2015 में भारत में मातृ मृत्यु दर प्रति एक लाख जन्म पर 167 थी. वहीं, हिमाचल में 2015-16 में मातृ मृत्यु दर 63 थी.

हिमाचल में मातृ मृत्यु दर में कमी की एक बड़ी वजह यहां का हेल्थ सिस्टम भी है. राज्य में कुल 707 स्वास्थ्य संस्थानों में से 87 नामित डिलीवरी पॉइंट्स (Designated Delivery Points) हैं. प्रदेश में गर्भवती महिलाओं को अस्पताल लाने और अस्पताल से घर ले जाने के लिए भी एंबुलेंस मुहैया करवाई जाती है.

इसके अलावा राज्य में राष्ट्रीय एम्बुलेंस सेवा यानि की 108 योजना के तहत 198 एंबुलेंस हैं जो सुरक्षित प्रसव में योगदान दे रही हैं. राज्य में पूर्ण एएनसी (एंटेनाटल चेक अप) 83% है. इसके अलावा जननी सुरक्षा योजना का लाभ भी हिमाचल प्रदेश की गर्भवती महिलाओं को मिल रहा है.

हिमाचल के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. राजीव सैजल का कहना है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में इस पहाड़ी राज्य की स्थिति बेहतर है. अमूमन देखा गया है कि राज्य में अभिभावक अपने बच्चों की शादी कम उम्र में नहीं करते हैं.

साक्षरता के कारण लोग जागरुक हैं. ऐसे में कम उम्र में शादी के कारण भविष्य में होने वाली समस्याओं जैसे शिशु मृत्यु दर आदि को लेकर भी हिमाचल की स्थिति अन्य राज्यों के मुकाबले अच्छी है.

Last Updated : Sep 14, 2020, 6:50 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details