शिमला/देहरादून: वन विभाग के अनुसंधान विंग ने उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के मनोरम हिल स्टेशन मुनस्यारी में देश का पहला लिचेन गार्डन विकसित किया है. शनिवार को बगीचे का उद्घाटन कर इसे जनता के लिए खोल दिया गया है. वैसे तो लिचेन पर्यावरण के प्रति बहुत संवेदनशील हैं, लिकेन इसका इस्तेमाल वायु प्रदूषण, ओजोन रिक्तीकरण और धातु संदूषण के सस्ते मूल्यांकन के लिए किया जा सकता है.
मुनस्यारी में लिचेन के बगीचे को विकसित करने के लिए एक हॉटस्पॉट के रूप में चुना गया. लीचेन को स्थानीय रूप से 'झीला' या 'पत्थर के फूल' के नाम में भी जाना जाता है. वहीं मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बगीचे के विकसित होने की जानकारी पीटीआई (शारीरिक प्रशिक्षण प्रशिक्षक) को दी. उन्होंने बताया कि लगभग दो एकड़ में फैले इस उद्यान में लिचेन की 80 से अधिक प्रजातियां पाई गई हैं. उन्होंने कहा कि कोरोनो वायरस महामारी के मद्देनजर भीड़ से बचने के लिए बगीचे को सीमित तरीके से खोला गया है, लेकिन देश से संक्रमण के खत्म होते ही, यह बागीचा लोगों के लिए पूर्ण तरीके से खोल दिया जाएगा.
लिचेन को चाहिए साफ वातावरण:
लिचेन को उगाने के लिए स्वच्छ हवा की आवश्यकता होती है. यह एक विशिष्ट क्षेत्र के वायु प्रदूषण के स्तर को निर्धारित करने के लिए एक महत्वपूर्ण जैव संकेतक के रूप में भी कार्य करता है. लिचेन में चट्टानों को मिटाकर खनिजों को अलग करने की क्षमता होती है. वहीं जब लिचेन मर जाते हैं और पृथ्वी में घुल जाते हैं, तो वे मिट्टी में खनिज और कार्बनिक पदार्थों का मिश्रण छोड़ देते हैं. जो अन्य पौधों के विकास में मदद करते हैं. वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि लिचेन हैदराबादी बिरयानी में पड़ने वाला एक महत्वपूर्ण मसाला है, जिसके बिना बिरयानी का स्वाद अधूरा रहता है. इसीलिए हैदराबाद की प्रसिद्ध बिरयानी में एक विशिष्ट स्वाद लाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है. साथ ही इसके सुगंधित गुणों से स्वदेशी इत्र बनाने में भी उपयोग किया जाता है.