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Natural Farming Lahaul Spiti: स्पीति घाटी में स्थानीय महिला किसानों की प्राकृतिक खेती से बढ़ी आमदनी, स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है नॉन केमिकल उपज

हिमाचल में प्राकृतिक खेती कर किसान लाखों की कमाई कर रहे हैं. दरअसल, स्पीति घाटी में प्राकृतिक खेती से महिला किसानों की आमदनी बढ़ी है. आइए जानते हैं लाहौल स्पीति जिले में कैसे स्थानीय महिला किसानों ने प्राकृतिक खेती तकनीक को आजीविका के लिए अपना ऑप्शन बनाया है. पढ़ें पूरी खबर.. (Natural Farming in Lahaul Spiti)

women farmers income increased in spiti valley
स्पीति घाटी में स्थानीय महिला किसानों की प्राकृतिक खेती से बढ़ी आमदनी

By PTI

Published : Oct 24, 2023, 4:59 PM IST

लाहौल स्पीति:हिमाचल प्रदेश के आदिवासी लाहौल स्पीति जिले में 14,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित स्पीति क्षेत्र को अक्सर एक ही कृषि मौसम के कारण "ठंडा रेगिस्तान" कहा जाता है. दरअसल, स्पीति घाटी के काजा के लिडांग गांव के 43 वर्षीय किसान येशे डोल्मा ने कहा कि प्राकृतिक खेती ने मुझे, मेरे खेत और मेरी मिट्टी को समृद्ध किया है, और मैं एकल खेती से सबसे अच्छा आमदनी प्राप्त कर रहा हूं. बता दें कि डोल्मा ने 20 बीघे जमीन पर मटर, फूलगोभी, पत्तागोभी, लाल पत्तागोभी, ब्रोकोली, सलाद, गाजर, मूली, जौ, गेहूं और आलू उगाने के लिए प्राकृतिक खेती तकनीक अपनाई है.

डोल्मा ने कहा कि पहले, कीट अक्सर फूलगोभी और पत्तागोभी जैसी सब्जियों को तैयार होने से पहले ही नुकसान पहुंचा देते थे. हालांकि, प्राकृतिक खेती से, पैदावार में सुधार हुआ है और उपज बेचकर कमाई सालाना 1 लाख रुपये की तुलना में बढ़कर 3 लाख रुपये हो गई है. उन्होंने कहा कि मैं पॉलीहाउस में प्राकृतिक खेती की तकनीक का उपयोग करके पौधे उगाती हूं और उन्हें बेचकर 20,000 रुपये से अधिक का लाभ कमाती हूं. उन्होंने कहा कि मिट्टी और पौधे के स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ है.

बता दें कि प्राकृतिक खेती बिना केमिकल, कम लागत वाली कृषि तकनीक है जो देसी गाय के गोबर और मूत्र पर आधारित है और किसानों की बाजार पर निर्भरता कम करती है. किसान सभी कृषि आदानों को खेत में ही तैयार करते हैं. प्राकृतिक खेती की तकनीक खेती की लागत को कम करती है और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार के अलावा पौधों की बीमारियों को रोकने में भी सहायक रही है. प्राकृतिक उपज खेती का सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है क्योंकि यह केमिकल से मुक्त है.

हिमाचल प्रदेश में अब 1.74 लाख किसान, जिनमें बड़ी संख्या में महिला किसान भी शामिल हैं, जो कि आंशिक या पूरी तरह से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं. राज्य में प्राकृतिक खेती खुशहाल योजना (पीके3वाई) के तहत 2 लाख से अधिक किसानों को प्राकृतिक खेती में प्रशिक्षित किया गया है. वहीं, कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, अब तक 24,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि का उपयोग प्राकृतिक खेती के लिए किया जाता है.

स्पीति के एकांत गांव लोसर के 45 वर्षीय महिला किसान तेनजिन डोल्मा ने कहा, हम अपनी आजीविका को बनाए रखने के लिए बेस्ट ऑप्शन की तलाश करते हैं, क्योंकि यहां खेती का केवल एक ही मौसम होता है. उन्होंने कहा कि परंपरागत रूप से, हम कृषि में केमिकल का उपयोग नहीं करते हैं, जिसके कारण परिणाम फायदेमंद होते हैं.

दरअसल, डोलमा 15 बीघे में प्राकृतिक खेती करती हैं, एक छोटे से पॉलीहाउस में मटर, आलू, जौ और कई सब्जियों की खेती करती हैं, डोलमा ने कहा कि मैंने प्राकृतिक खेती तकनीक के अनुसार मटर की लाइन में बुआई करने की कोशिश की है और देखा है कि इससे मटर की फली लंबी निकलती है. प्राकृतिक खेती के साथ, दो किलो बीज से दो बैग (प्रत्येक का वजन 50 किलोग्राम) मटर पैदा होता है. अब, हम अपने खुद के बीज का उत्पादन कर रहे हैं और मटर बेचकर 1.5 लाख रुपये से अधिक कमाते हैं. वहीं, छेरिंग लामो अपने पति तानपा के साथ स्पीति में 4,587 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मोटर योग्य सड़क से जुड़े दुनिया के सबसे ऊंचे गांव कोमिक में रहती हैं. वे अपनी 12 बीघे भूमि पर मटर और जौ की खेती करते हैं और प्राकृतिक खेती अपनाने के बाद उत्पादन में वृद्धि हुई है. इस क्षेत्र में मटर एक प्राथमिक नकदी फसल है.

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