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राष्ट्रीय शिक्षा दिवस: शिमला IIAS उच्च शिक्षा का बेहतर संस्थान, शोध के चलते विश्वभर में है पहचान - महान शिक्षाविद राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन

महान शिक्षाविद राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सपनों का नतीजा है कि शिमला में भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान की स्थापना हुई और आज ये संस्थान अपने शोध कार्य के चलते न केवल देश में बल्कि विश्व भर में पहचाना जाता है.

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान

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Published : Nov 11, 2019, 6:50 PM IST

शिमला: यूं तो भारत में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की स्मृति को समर्पित है, लेकिन शिमला शहर में एक ऐसी इमारत है जिसे महान शिक्षाविद ने भारत में उच्च अध्ययन संस्थान को समर्पित किया है.

इस ऐतिहासिक इमारत को ज्ञान के केंद्र के तौर पर विकसित किया गया है. महान शिक्षाविद राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सपनों का नतीजा है कि शिमला में भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान की स्थापना हुई और आज ये संस्थान अपने शोध कार्य के चलते न केवल देश में बल्कि विश्व भर में पहचाना जाता है.

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भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान की इमारत 1888 में बनकर तैयार हुई. ब्रिटिश हुकूमत के दौरान इसे वायसरीगल लॉज के नाम से जाना जाता था. उस समय इमारत में ब्रिटिश वायसरॉय रहा करते थे. आजादी के बाद ये इमारत राष्ट्रपति निवास कहलाने लगी और बाद में सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इसे ऐतिहासिक ज्ञान केंद्र के तौर पर विकसित करने की सोची.

सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति निवास को अध्ययन व शोध के केंद्र के तौर पर पहचान दिलवाने के लिए एक कार्य योजना तैयार की. वर्ष 1965 में 20 अक्टूबर को इस इमारत को भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान बनाया गया. हालांकि संस्थान की सोसाइटी का पंजीकरण 6 अक्टूबर 1964 को हुआ, लेकिन इसका विधिवत शुभारंभ 20 अक्टूबर1965 को किया गया.

संस्थान की स्थापना का मकसद मानविकी व सामाजिक अध्ययन के लिए वातावरण तैयार करना और उसे प्रोत्साहित करना था. भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के पहले अध्यक्ष भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन थे. तत्कालीन शिक्षा मंत्री एमसी छागला इस संस्थान के उपाध्यक्ष बने और संस्थान के प्रथम निदेशक के तौर पर प्रोफेसर निहार रंजन रॉय को कमान सौंपी गई.

इस संस्थान में आज भी समाजिक मानविकी के क्षेत्र में अध्ययन और शोध किया जाता है. इतना ही नहीं यहां किए जाने वाले शोध को विश्व स्तर पर एक अलग पहचान मिली है. हर साल देश विदेशों से विख्यात बौद्धिक हस्तियां यहां अध्येता व राष्ट्रीय अध्येता के तौर पर शोध करती हैं.

संस्थान में एक लाइब्रेरी भी है, जहां तीन लाख के करीब किताबों को रखा गया है. इन किताबों में भाषा सहित संस्कृत और गुरुमुखी के हस्तलिखित दुर्लभ ग्रंथ भी सहेज कर रखे गए हैं. इस संस्थान में केंद्र सरकार ने देश का पहला टैगोर स्थापित किया है.

ब्रिटिश काल में है बनी ये इमारत 1884 में बनना शुरू हुई थी और 1888 में ये इमारत पूरी तरह से बनकर तैयार हो गई थी. अंग्रेजों ने इस इमारत को बनाया था, जिसके चलते इस इमारत की पहचान ब्रिटिश कालीन इतिहास से भी है. इमारत को जिस शैली में तैयार किया गया है वह अद्भुत है.

पत्थरों से बनी यह इमारत वास्तुकला का शानदार नमूना है. सर्वपल्ली राधाकृष्णन इस इमारत को राष्ट्रपति निवास के तौर पर नहीं रखना चाहते थे. वे चाहते थे कि इस इमारत का सदुपयोग राष्ट्र के बौद्धिक विकास के रूप में हो. यही वजह है कि इस इमारत को भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के तौर पर पहचान मिली.

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