शिमला: एनजीटी द्वारा भवन निर्माण के लिए गठित सुपरवाइजर व इंप्लीमेंटेशन कमेटी ने शिमला प्लानिंग एरिया में भवन निर्माण को लेकर दिए एनजीटी के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट से स्टे मांगा है.
गौर रहे कि एनजीटी ने 16 नवंबर 2017 को दिए 165 पेज के आदेश में शिमला प्लानिंग एरिया में ढाई मंजिल से अधिक के भवन निर्माण और ग्रीन व कोर एरिया में भवन निर्माण पर पूरी तरह रोक लगा दी थी.
इसी मामले को लेकर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. प्रदेश सरकार ने हल्फनामा दायर कर एनजीटी के आदेश को गलत ठहराते हुए आठ बिंदुओं पर स्टे की मांग की है, जिसकी सुनवाई 11 मार्च को होगी.
प्रदेश सरकार ने एनजीटी द्वारा दिए गए 29 मुख्य बिंदुओं के आदेश में से आठ पर ही आपत्ति जताई है, जबकि बाकी बिंदुओं को आदेश के पहले से लागू किए जाने की बात दोहराई है. एनजीटी के आदेश का प्रभाव राजधानी के साथ नगर निगम क्षेत्र, कई पंचायतों व 300 गांवों पर हुआ है.
प्रदेश सरकार के अनुसार, एनजीटी के पास ऐसा कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है, जिसके आधार पर वो भवनों व मंजिलों को निर्धारित कर सके. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में शिमला शहर के अलावा 300 गांवों का जिक्र भी किया गया है, जिसमें आदेश के बाद निर्माण कार्य बंद है.
इन बिंदुओं पर राज्य सरकार ने जताई आपत्ति
न्यायालय में दिए हल्फनामे में सरकार ने कहा है कि इससे सभी निर्माण कार्य प्रभावित हो रहे हैं, ऐसी कमेटियों की प्रदेश में जरूरत नहीं है. सरकार ने कहा कि योजनाबद्ध कार्य करने के लिए कुछ नहीं किया गया, जिससे प्राकृतिक आपदा की समस्या आ रही है.
कोर व ग्रीन एरिया में नये आवासीय, संस्थागत व व्यापारिक भवन निर्माण पर रोक के साथ-साथ दो मंजिल व एटिक यानी ढाई मंजिल से अधिक के भवन निर्माण पर शिमला प्लानिंग एरिया में रोक लगा दी गई है, जिसमें 22 पंचायतों के करीब 300 गांव शामिल हैं जो 250 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में आते हैं.
वहीं, कोर व ग्रीन एरिया में जो भवन जर्जर हालत में हैं, चाहे वे चार से पांच मंजिलें हैं, उन्हें गिराकर ढाई मंजिल से ज्यादा बनाने पर रोक. कोर व ग्रीन एरिया में बिना अनुमति बने भवनों को नियमित न करने के साथ-साथ डेविएशन कर अतिरिक्त मंजिल बनाने वाले भवन के पास न करने पर रोक लगाने की सिफारिश की गई थी.
बिना अनुमति पेड़ कटान व भवन निर्माण के लिए खोदाई करने पर पर्यावरण भुगतान के तौर पर पांच लाख रुपये हर उल्लंघन पर वसूले जाएं. वहीं, जो भवन अनियमित थे और नियमित किए जाने थे, उनके लिए पर्यावरण सैस वसूलने और ढाई मंजिल से अधिक के निर्माण पर 5000 रुपये प्रति वर्गमीटर की दर से सैस वसूलने का आदेश दिया गया था.