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पिता की मौत के बाद मां ही बच्चे की नेचुरल अभिभावक, नाबालिग बच्चों की कस्टडी से जुड़े मामले में हाईकोर्ट की अहम व्यवस्था

नाबालिग बच्चों की कस्टडी से जुड़े मामले में हाईकोर्ट ने अहम व्यवस्था दी है. दरअसल पिता की मौत के बाद बच्चों की कस्टडी को लेकर दादा-दादी और मां के बीच लड़ाई हाईकोर्ट पहुंच गया. मामले में कोर्ट ने कहा कि पिता की मौत के बाद मां ही बच्चों की नेचुरल अभिभावक है. नाबालिग बच्चों के संरक्षण से जुड़े मामले में कोर्ट ने यह अहम व्यवस्था दी है.

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Published : Jun 3, 2023, 12:59 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि पिता की मौत के बाद मां ही बच्चों की नेचुरल अभिभावक है. नाबालिग बच्चों के संरक्षण से जुड़े एक मामले में ये अहम व्यवस्था दी गई. दरअसल, दो नाबालिग बच्चे दादा-दादी के पास रह रहे थे. उनकी कस्टडी को लेकर मामला एसडीएम की अदालत से हाईकोर्ट पहुंचा तो न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने ये व्यवस्था दी. हाईकोर्ट ने दादा-दादी को नाबालिग बच्चों की कस्टडी मां को सौंपने के निर्देश दिए हैं.

क्या है मामला- प्रीति देवी नामक महिला का विवाह सोलन की रामशहर तहसील के बहलम गांव निवासी अमर सिंह के साथ हुआ था. विवाह के बाद पति-पत्नी व परिवार के अन्य सदस्यों के बीच झगड़े बढ़ने लगे. इस कारण प्रीति देवी और उसका पति अमर सिंह परिवार से अलग होकर अपने दो नाबालिग बेटों के साथ नालागढ़ में रहने लगे. पिछले साल 17 जुलाई को अमर सिंह ने सुसाइड कर लिया. जिसके बाद प्रीति के ससुर और अमर सिंह के पिता दर्शन सिंह ने बहू के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाते हुए आरोप लगाया कि बहू की प्रताड़ना से तंग आकर उसके बेटे ने सुसाइड किया. इस पर पुलिस ने प्रीति देवी को गिरफ्तार कर लिया. बाद में 27 जुलाई को ही प्रीति को जमानत पर रिहा कर दिया गया. इस दौरान दोनों नाबालिग बच्चे अपने दादा-दादी के पास रह रहे थे.

बच्चों की कस्डी के लिए कोर्ट पहुंची मां- जमानत पर रिहा होने के बाद प्रीति ने दादा-दादी से अपने बच्चों की कस्टडी के लिए एसडीएम नालागढ़ की अदालत में अर्जी दाखिल की. नवंबर 2022 को एसडीएम नालागढ़ ने दादा-दादी को निर्देश दिए कि वो बच्चों की कस्टडी मां को सौंप दे. इस आदेश के खिलाफ दादा-दादी ने हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में तर्क दिया कि प्रीति के अमर सिंह के साथ अच्छे संबंध नहीं थे और उसने ही पति को आत्महत्या के लिए उकसाया. ऐसे में प्रीति के हाथों में बच्चों का जीवन सुरक्षित नहीं रहेगा.

याचिका में दलील दी गई कि मां के पास बच्चों की देखभाल और पालन-पोषण के लिए कोई साधन नहीं है. साथ ही कहा गया कि याचिकाकर्ता दादा एक पूर्व सैनिक हैं और उनके पास काफी जमीन-जायदाद है. ऐसे में बच्चों को दादा-दादी के पास रखना हितकारक होगा. दूसरी ओर, प्रतिवादी प्रीति का यह तर्क था कि अगर वह अपने पति को आत्महत्या के लिए उकसाती, तो उसने पति के सुसाइड के बाद पुलिस को सूचित न किया होता. प्रीति ने तर्क दिया कि उसी ने पुलिस की मदद से पति को अस्पताल पहुंचाया था.

कोर्ट ने कही बड़ी बात- इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि प्रीति पर पति को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोपी अभी साबित नहीं हुआ है. इसके अलावा, उसे अपने नाबालिग बच्चों की कस्टडी के लिए अक्षम या अपात्र घोषित नहीं किया गया है. इसलिए, पिता की मृत्यु के बाद मां ही नाबालिग बच्चों की संरक्षणकर्ता या अभिरक्षण करने वाली नेक्स्ट पात्र है. अलबत्ता हाईकोर्ट ने ये साफ कर दिया है कि बच्चों के संरक्षण के लिए मां का ये अधिकार संपूर्ण नहीं है. अगर वो अपने कर्तव्य में अक्षम पाई गई तो बच्चों के संरक्षण का अधिकार खो देगी.

वहीं, हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि मजिस्ट्रेट की अदालत में कार्यवाही का रिकॉर्ड व फाइल उचित तरीके से तैयार नहीं की गई है. मजिस्ट्रेट ने किस तारीख को क्या आदेश पारित किया, ये दर्शाने के लिए अलग से कोई आदेश पत्रक नहीं है. इससे जुड़ा रिकॉर्ड आम आदमी की तरह मेंटेन किया गया है. न्यायिक कार्यवाही के रिकॉर्ड को रखने और प्रबंधित करने में इस तरह के अभ्यास को सुधारने की आवश्यकता है. इसके अलावा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव को निर्देश दिए हैं कि वो इस मामले को निजी तौर पर देखें. सथ ही कहा कि यदि जरूरी हो तो हिमाचल प्रदेश राज्य न्यायिक अकादमी में न्यायिक कार्य/फाइलों से निपटाने वाले अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाएं.
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